राज शांडिल्य जो कई कॉमेडी शो और फिल्म लिख चुके हैं उन्होंने जनहित में जारी को लिखा है। मैसेज को कॉमेडी में लपेट कर पेश किया है ताकि दर्शकों का मनोरंजन हो सके। कहानी तो अलग किस्म की है ही, उसे अलग रूप देने के लिए उन्होंने फिल्म की नायिका को कंडोम बेचने वाली बना दिया है। जहां पुरुष ही कंडोम बेचने से घबराते हैं वहां पर महिला द्वारा ये काम करने की तो कोई सोच ही नहीं सकता।
नायिका मनु (नुसरत भरुचा) की शादी उसके घर वाले करना चाहते हैं, उनसे बचने के लिए वह कंडोम बेचने वाली नौकरी कर लेती है। इसके बाद उसे प्यार होता है। उसकी शादी होती है, लेकिन ससुराल वालों से भी यह बात छिपी रहती है। आखिरकार भेद खुलता है और तलाक तक की नौबत आ जाती है।
मनु न केवल अपने घरवालों का विरोध झेलते हुए यह काम करती है, बल्कि महिलाओं में जागरूकता लाने के लिए भी इस मुश्किल काम को हाथ में लेती है।
फिल्म के सारे किरदार निम्न मध्यमवर्गीय हैं जो कस्बे में रहते हैं। मान-मर्यादा, घर की इज्जत, महिलाओं द्वारा नौकरी के खिलाफ रहना जैसी बातों में पुरानी पीढ़ी उलझी रहती है। वहीं युवा मनु, उसके दोस्त और पति इन बातों से बेफिक्र होकर साथ में बीयर पीते हैं और कंडोम बेचने के काम को बुरा नहीं मानते। हालांकि इस किस्म के किरदार कस्बों में मिलना मुश्किल है, लेकिन इनके जरिये युवा पीढ़ी की सोच को दर्शाया गया है। दूसरी ओर कुछ निठल्ले किस्म के लोग भी हैं जो बात का बतंगड़ बनाने में नहीं चूकते और मुन के घर पर 'कंडोम निवास' लिख देते हैं।
स्क्रिप्ट में कई किरदार हैं जो निम्न मध्यमवर्गीय की सोच को पेश करते हैं और इस सोच के जरिये कॉमेडी को लेखक राज शांडिल्य ने पैदा किया है। फिल्म के शुरुआती हिस्से में कई हास्य दृश्य हैं। मनु जब कंडोम बेचने निकलती हैं तो कैसे उसका मजाक बनाया जाता है और लोग क्या बातें करते हैं इसको लेकर अच्छे दृश्य बनाए गए हैं। बीच में आकर फिल्म थोड़ी ठहर जाती है, लेकिन जैसे ही पारिवारिक ड्रामा तेजी से घटता है फिल्म पटरी पर लौट आती है।
मनु के ससुर उससे बहुत नाराज रहते हैं। वे चुनाव लड़ते हैं और जीत जाते हैं। इसमें मनु का योगदान भी रहता है। इस योगदान को लेकर कुछ दृश्य बनाए जाते तो निश्चित ही फिल्म का स्तर ऊंचा उठता। दिखाया जा सकता था कि मनु द्वारा लोगों में जागरूकता फैलाए जाने के कारण ही उसके ससुर को जीत मिली है और उससे ससुर का हृदय परिवर्तन होता। इसे कुछ संवादों के जरिये ही बता कर लेखक और निर्देशक एक खास मौका चूक गए।
बहरहाल, लेखक राज शांडिल्य और निर्देशक जय बसंतु सिंह की इस बात के लिए तारीफ की जा सकती है कि ऐसा विषय जिस पर फिल्म थोड़ा इधर-उधर होती तो फूहड़ बन सकती थी या डॉक्यूमेंट्री बन सकती थी, उससे उन्होंने बचाया। फिल्म को फूहड़ता से दूर रखते हुए मैसेज इस तरह से नहीं दिया कि थोपा हुआ लगे। फिल्म ज्यादातर समय दर्शकों हंसाते रहती है।
'जनहित में जारी' में निर्देशक पर लेखक भारी है। राज शांडिल्य ने संवाद, कैरेक्टर्स और सीन बढ़िया लिखे गए हैं इससे निर्देशक जय बसंतु सिंह का काम आसान हो गया है। फिल्म की लंबाई थोड़ी ज्यादा है, इसे कम किया जा सकता था।
जनहित में जारी को चंदेरी और ग्वालियर की रियल लोकेशन पर फिल्माया गया है। कैमरामैन चिरंतन दास ने बाजार, गलियों और नदी किनारे कैमरा घूमा कर छोटे शहरी की खूबसूरती को एक कैरेक्टर की तरह पेश किया है।
नुसरत भरूचा को ऐसा रोल मिला है जो कई हीरोइनों का ड्रीम रोल होता है। उन्होंने पूरी फिल्म का भार कंधे पर पूरी जिम्मेदारी के साथ उठाया है। उनकी एक्टिंग में आत्मविश्वास देखने लायक है, इससे उनके किरदार पर दर्शक तुरंत भरोसा कर लेते हैं। अन्य स्टारकास्ट में कुछ जाने-पहचाने चेहरे और कुछ नए, लेकिन सभी का काम जोरदार है। विजय राज, अनुद सिंह ढाका, ब्रजेन्द्र काला, पारितोष त्रिपाठी ने अपना सौ प्रतिशत दिया है। लंबे समय बाद टीनू आनंद भी नजर आए हैं।
सेक्स के दौरान प्रोटेक्शन पर बात करना कोई गुनाह नहीं है, यह बात कॉमेडी के साथ जनहित में जारी है।
- निर्माता : विनोदु भानुशाली, कमलेश भानुशाली, विशाल गुरनानी, राज शांडिल्य, विमल लाहोटी, श्रद्धा चंदावरकर, बंटी राघव, राजेश राघव, मुकेश गुप्ता
- निर्देशक : जय बसंतु सिंह
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संगीत : संधू एस तिवारी, प्रीनि सिद्धांत माधव, अमोल-अभिषेक
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कलाकार : नुसरत भरुचा, विजय राज, अनुद सिंह ढाका, ब्रजेन्द्र काला, पारितोष त्रिपाठी, टीनू आनंद
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2 घंटे 27 मिनट
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रेटिंग : 3/5