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Written By Naidunia

सिंधु ताई सपकाळ से बातचीत अनुराग तागड़े

सिंधु ताई सपकाळ से बातचीत अनुराग तागड़े -
बच्चे के जन्म के समय गर्भनाल स्वयं महिला को पत्थर से तोड़ना पड़े...इससे बड़ा दुःख किसी महिला की जिंदगी में क्या होगा? सिंधु ताई सपकाळ ने यह दुःख भोगा है और यही नहीं इसके जैसे कई दुःख और भी हैं। सिंधुताई यानी दुःखों का पहाड़ है पर इस पहाड़ से निर्मलता और ममता का झरना बहता है और सहज रुप से समाज सेवा करने का जज्बा आपमें पैदा होता है। सिंधुताई अपने दुःखों को लेकर रोती नहीं हैं बल्कि समाज के सामने ऐसा उदाहरण रखती हैं जो आज तक न कभी देखा गया न सुना गया। सिंधुताई का व्यक्तित्व इतना चुंबकीय है कि दूरभाष पर बातचीत के दौरान भी वह आपको इतनी ममतामई भाव में बेटा कह देती है कि आपको लगता है कि सही मायने आप अपने घर माँ से ही तो बात कर रहे हैं। सिंधुताई ने दूरभाष पर नईदुनिया से विशेष बातचीत की। यह बातचीत न होकर सिंधुताई का प्रेरणादायी उद्बबोधन ही था और इससे एक बात तो तय हो गई कि सिंधुताई न केवल श्रेष्ठ वक्ता हैं बल्कि वे जो भी शब्द बोलती हैं उसे पहले अनुभव की स्याही में डुबोती हैं फिर संसार के सामने रखती हैं।
सिंधुताई वर्तमान में गुजरात की यात्रा पर थीं और वहीं से कुछ समय निकाल कर उन्होंने बात की। आपने बताया कि वे तो यही चाहती है कि अगले जन्म में भी अनाथो की सेवा करे बस भगवान से यही मांग है कि मुझे कोई बच्चा न देना बस मेरा आंचल इतना बड़ा कर देना की अनाथ बच्चों को जरा सी धूप भी न लगे और दुःख इनसे कोसो दूर हो।
अनजाने में की गई सेवा यानी समाजसेवा
सिंधुताई के लिए समाजसेवा यह शब्द अनजान है क्योंकि वे यह मानती ही नहीं कि वे ऐसा कुछ कर रही हैं उनके अनुसार समाजसेवा बोल कर नहीं की जाती। इसके लिए विशेष प्रयत्न भी करने की जरुरत नहीं। अनजाने में आपके द्वारा की गई सेवा ही समाजसेवा है। यह करते हुए मन में यह भाव नहीं आना चाहिए की आप समाजसेवा कर रहे हैं। मन में ठहराकर समाजसेवा नहीं होती। समाजसेवा जैसे शब्द को लेकर ही वे इतने सारे वाक्य एक के बाद एक बोल जाती हैं कि आपको लगता है कि यह महिला सही मायने में अन्नपूर्णा है या सरस्वती। इतने में वे एक बेहतरीन शेर भी सुना देती हैं और आप केवल दाद भर देने का काम करते हैं और समाज सेवा जैसे भारी शब्द भी सिंधुताई के आगे पानी भरते नजर आने लगते हैं।
हजारों महिलाओं के फोन आते हैं
फिल्म मी सिंधुताई सपकाळ का म्युजिक लांच स्वयं महानायक अमिताभ बच्चन ने मुम्बई में किया था। फिल्म का निर्देशन अनंत महादेवन ने किया है और फिल्म को कई बड़े फिल्म फेस्टिवल्स में सराहा गया। सिंधुताई ने बताया कि उनके जीवन पर फिल्म बनने का एक फायदा यह हुआ कि हजारों की संख्या में दुःखी महिलाओं ने उन्हें फोन किए जो जीने की इच्छा छोड़ चुकी थी और फिल्म के कारण उन्हें जीने की इच्छा जागृत हुई। मुझे लगा चलो मेरे जीने का इतना फायदा तो हुआ की अन्य दुःखी महिलाओं को जीने की इच्छा तो हुई। लोग ढूंढते हुए आते हैं मुझे, पर अब भी एक बात सत्य है कि मैं सभी दूर भाषण करने जाती हूँ और इस अकाट्य तर्क को देते हुए वे बातचीत बंद करती है कि भाषण के बिना राशन नहीं रे बेटा...इस वाक्य में उन्होंने वह सभी बात कह दी की आज भी वे अपने अनाथालयों और गौ शालाओं को चलाने के लिए देशभर में घूम कर भाषण देती हैं और अपनी संस्थाओं के लिए आंचल फैला कर सहायता मांगती हैं।
इस जीवित किवदंती से मिलने का मौका संस्था सानंद द्वारा शहरवासियों को दिया है। कार्यक्रम 11 जून को सायं 7 बजे से यूसीसी ऑडिटोरियम खंडवा रोड़ पर आयोजित किया है। एक बार सिंधुताई को सुनेंगे तब न केवल तबियत खुश हो जाएगी बल्कि समाजसेवा की असल परिभाषा भी समझ आ जाएगी।

फोटोः अमिताभ बच्चन ने मुंबई में सिंधुताई सपकाळ का म्युजिक लांच किया था।