डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (WWF/ वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर) विश्वव्यापी प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और जैव विविधता के संरक्षण पर केंद्रित एक प्रमुख वैश्विक संरक्षण संगठन है। इसकी स्थापना 1961 में हुई थी। अपने कार्यालयों के नेटवर्क के माध्यम से – विश्व के 100 से अधिक देशों में कार्यरत यह संगठन – हमारी पृथ्वी पर प्राकृतिक पर्यावरण को बनाए रखने के प्रति समर्पित है। वह एक ऐसे भविष्य का निर्माण करना चाहता है, जिसमें लोग प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर सकें और मिलजुल कर रह सकें।
इस संगठन का ध्येय है, विश्व की जैविक विविधता का संरक्षण करना, नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित करना तथा प्रदूषण एवं प्राकृतिक संसाधनों के अपव्ययी उपभोग को कम करना। यह संगठन वनों की कटाई को रोकने, जलवायु परिवर्तन से निपटने और लुप्तप्राय प्रजातियों और उनके आवासों की रक्षा सहित कई मुद्दों पर काम करता है।
नाम बदला : WWF की 1961 में स्थापना के समय इसे मूल रूप से 'विश्व वन्यजीव निधि' कहा जाता था, लेकिन वन्यजीवों से परे इसके व्यापक संरक्षण कार्यों को दर्शाने के लिए इसका नाम बदलकर अब 'वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर' कर दिया गया है। किंतु, नाम बदलने के बाद भी इसे आमतौर पर इसके प्रारंभिक अक्षरों WWF से ही जाना जाता है।
अपने व्यपक वनों-पर्वतों और विविध प्रकार के जीव-जंतुओं के कारण भारत भी WWF का एक प्रमुख कार्यक्षेत्र है। कई प्रबुद्ध भारतीय भी उसके लिए काम करते हैं। उदाहरण के लिए, बर्फीले हिमालय की ऐसी ऊंचाइयों पर, जहां हवा इतनी विरल है कि हर सांस एक चुनौती बन जाती है, WWF के शोधकर्ताओं ने एक असंभव से लगने वाले मिशन पर काम शुरू किया – और अब एक असाधारण सफलता प्राप्त की है।
कैमरों ने खोले रहस्य : WWF के भारतीय शोधकर्ताओं ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग और पश्चिम कामेंग के दुर्गम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में, समुद्र तल से लगभग 5,000 मीटर की ऊंचाई पर के 83 चुने हुए स्थानों पर 136 कैमरा-ट्रैप लगाए। बाद में अपने कैमरों की तस्वीरों में उन्होंने जो कुछ पाया, वह उनकी सारी उम्मीदों से बढ़चढ़ कर निकला।
WWF के इन भारतीय शोधकर्ताओं के कैमरों में 'पल्लास' बिल्ली की तस्वीरें भी मिलीं। ये तस्वीरें भारत की हिमालयी ऊंचाइयों पर इस प्रजाति के होने का पहला दस्तावेज़ी प्रमाण बनीं। अपने विशिष्ट रोएंदार फर और आंखों की गोल पुतलियों वाली यह छोटी, गठीली जंगली बिल्ली पहले केवल मध्य एशिया के मैदानी इलाकों में ही पाई जाती थी। पल्लास बिल्ली दुनिया के सबसे दुर्लभ जानवरों में से एक है। वैश्विक स्तर पर 'सबसे कम चिंताजनक' के रूप में वर्गीकृत होने के बावजूद, इस बिल्ली का अध्ययन करना बेहद मुश्किल है, क्योंकि वह मानव संपर्क से सदा बचती है और आमतौर पर केवल शाम के समय ही सक्रिय होती है।
प्रजातियों की सनसनीखेज़ सूची : पल्लास बिल्ली ही कैमरों की तस्वीरों में क़ैद एकमात्र आश्चर्य नहीं थी। कैमरों ने पांच अन्य जंगली प्रजातियों – हिम तेंदुआ, तेंदुआ, धूमिल तेंदुआ, तेंदुआ बिल्ली और संगमरमरी बिल्ली को भी तस्वीरों में क़ैद किया था। इससे हिमालय के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में एक ऐसी जैव-विविधता का पता चला है, जिसने अनुभवी शोधकर्ताओं को भी आश्चर्यचकित कर दिया।
इस अभियान ने कई रिकॉर्ड तोड़े। अन्य तस्वीरों के अलावा, 4600 मीटर की ऊंचाई पर तेंदुए, 4650 मीटर की ऊंचाई पर धूमिल तेंदुए और 4326 मीटर की ऊंचाई पर संगमरमरी बिल्ली होने की पुष्टि हुई। 4194 मीटर की ऊंचाई पर एक हिमालयी भूरे उल्लू और 4506 मीटर की ऊंचाई पर भूरे सिर वाली एक विशाल उड़न गिलहरी का मिलना भी नए रिकॉर्ड बने। इनमें से कुछ आंकड़े पर्वतीय आँकड़े पर रहने वाले जानवरों संबंधी पहले से ज्ञात वैश्विक सीमाओं को भी पीछे छोड़ सकते हैं।
मनुष्य और पशु संतुलन : हिमालयी ऊंचाइयों पर पल्लास बिल्ली का पाया जाना, इन बिल्लियों के रहने की ज्ञात ऊंचाई की अब तक की सीमा के महत्वपूर्ण रूप से विस्तार के समान है और इस बात को रोखांकित करता है कि पूर्वी हिमालय का पारिस्थितिकी तंत्र कितना लचीला, तब भी कितना संवेदनशील है।
जंगली बिल्लियों के अलावा, कैमरों ने ब्रोक्पा कहलाने वाले चरवाहों और उनके पशुओं को भी दर्ज किया। सदियों से, इस क्षेत्र में मनुष्य और पशु साथ-साथ रहते आए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य और प्रकृति के बीच सहवास का यह एक ऐसा नाज़ुक संतुलन है, जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए। हम अभी भी हिमालय की दुर्गम ऊंचाइयों पर के जीव-जंतुओं के बारे में बहुत कम जानते हैं। इसलिए और अधिक खोज तथा उनके संरक्षण के कार्यों के लिए निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है – ताकि यह अनोखा हिमालयी परिदृश्य और उसकी अनोखी जैवप्रजातियां भविष्य में भी आबाद रहें।