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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : गुरुवार, 20 अक्टूबर 2022 (15:42 IST)

पहली बर्फबारी से ही कश्मीर बन गया ‘जन्नत-ए-कश्मीर’, खिले पर्यटकों के चेहरे

Kashmir Snowfall
जम्मू। समय से पूर्व और पहली बर्फबारी ने एक बार फिर कश्मीर को ‘जनत-ए-कश्मीर’ का तगमा दिलवा दिया है। धरती के स्वर्ग कश्मीर घाटी में घूमने आने वाले पर्यटकों लिए अच्छी खबर है। घाटी के विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल गुलमर्ग और सोनमर्ग में सीजन की पहली बर्फबारी हुई है। इससे पर्यटक और पर्यटन कारोबार से जुड़ें लोगों के चेहरे खिल उठे हैं। बड़ी संख्या में यहां पर्यटक पहुंचे हैं और हिमपात का नजारा ले रहे हैं।
 
मध्यरात्रि के दौरान गुलमर्ग, सोनमर्ग, गुरेज और करनाह समेत कश्मीर के कई इलाकों में भारी बर्फबारी हुई। गुलमर्ग में दो इंच से अधिक बर्फ जमा हो गई है जबकि घाटी के ऊंचे इलाकों में भारी बर्फबारी हुई है। शहर की जबरवान पर्वत श्रृंखला में भी रात के समय हिमपात हुआ है।
 
श्रीनगर शहर और घाटी के अन्य इलाकों में गुरुवार तड़के से मध्यम स्तर की बारिश हुई है, जिससे तापमान में कई डिग्री की गिरावट आई है।  लोग इस बार पहले से ही स्वेटर और भारी जैकेट जैसे सर्दी के कपड़े पहनने लगे हैं।
 
एक ट्रैवल एजेंट रमजान मलिक ने कहा कि बर्फबारी की खबरों के चलते इस साल, सर्दी के दौरान यहां आने को लेकर लोगों में दिलचस्पी बढ़ गई है। मलिक ने कहा कि पहाड़ों पर मंगलवार को पहली बर्फबारी हुई और बुधवार को उन लोगों के फोन आने लगे जो सर्दी के दौरान यहां आना चाहते हैं। उम्मीद है कि सर्दी के दौरान यहां अच्छी बर्फबारी होगी, जिससे काफी संख्या में पर्यटक आकर्षित होंगे।
 
रात को ताजा बर्फबारी होने की सूचना मिलते ही सैंकड़ों पर्यटक मौसम का आनंद उठाने के लिए गुलमर्ग पहुंच रहे हैं। पर्यटक बर्फबारी में खेलते व सेल्फी लेते हुए नजर आ रहे हैं। गुलमर्ग व उसके आसपास के ऊंचे पहाड़ों को बर्फ की सफेद चादर में लिपटा देख पर्यटक काफी खुश हैं।
 
दिल्ली से आए महेश कुमार ने कहा कि वह कश्मीर में दो से हैं, शनिवार को उन्हें वापस जाना है, वह बर्फबारी का इंतजार कर रहे थे, उन्हें खुशी है कि कश्मीर जिस खूबसूरती के लिए जाना जाता है, वह कुदरत का नजारा उन्होंने यहां स्वयं अपनी आंखों से देख लिया। इसी वजह से कश्मीर को धरती पर स्वर्ग कहा जाता है।

बर्फबारी ने बढ़ाई परेशानी : इस बार भी कश्मीर के साथ-साथ लद्दाख सेक्टर में बर्फ ने समय से बहुत पहले दस्तक क्या दी, करगिल और द्रास के नागरिकों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच गई। ऐसा ही हाल उन हजारों सैनिकों का भी है जो चीन सीमा पर चीन की बढ़त व घुसपैठ को रोकने की खातिर तैनात किए गए हैं। चिंता का कारण स्पष्ट है। न ही नागरिक व नागरिक प्रशासन कोई तैयारी कर पाया और न ही तैनात सैनिकों को सर्दी से बचाने की खातिर तैयारी पूरी की जा सकी है।
 
अक्सर, नवम्बर 15 के बाद करगिल और द्रास समेत लद्दाख के पहाड़ों पर बर्फबारी आरंभ होती थी। लेकिन इस बार 19 अक्तूबर को ही इसकी दस्तक ने सभी को चौंकाया है। द्रास स्थित प्रशासनिक अधिकारी मानते हैं कि चीन सीमा पर सैनिकों की तैनाती की कवायद में ही जुटे रहने के कारण वे करगिल व द्रास के नागरिकों के लिए सर्दी में की जाने वाली तैयारियां ही आरंभ नहीं कर पाए। नतीजतन, राजमार्ग के बंद होने की चिंता के कारण अब सारा जोर वायुसेना पर आ पड़ेगा।
 
यही दशा लद्दाख में चीन सीमा पर तैनात किए गए दो लाख के करीब भारतीय जवानों के प्रति भी है जिनके लिए सर्दियों के लिए आवश्यक सामान की आपूर्ति का काम दावों के बावजूद अभी भी अधूरा है। सप्लाई के साथ साथ भयानक सर्दी से बचाने की खातिर मुहैया करवाये जाने वाले कपड़े इत्यादि की अभी भी कमी महसूस की जा रही है जो सभी तक नहीं पहुंच पाए हैं।