दीपावली में, जब आप अपने आंगन में दीप जलाते हैं और लक्ष्मी पूजा के दौरान सर्वप्रथम गणेश जी की आराधना करते हैं—उनके हाथी स्वरूप को नमन करते हुए प्रार्थना करते हैं कि वे बाधाएं दूर करें और समृद्धि लाएं—क्या दिल में एक टीस नहीं उठती? वे गजराज, जिनकी पूजा हम देवताओं की तरह करते हैं, आज अपने ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। कल्पना कीजिए, उन विशालकाय प्राणियों की आंखों में वह उदासी, वह भय—जिनकी चिंघाड़ कभी जंगलों को जीवंत कर देती थी, अब दर्द भरी पुकार बन गई है। वे बेघर हो रहे हैं, अपने प्राचीन जंगलों से खदेड़े जा रहे हैं और हम—उनके भक्त—उनकी इस पीड़ा के साक्षी मात्र बनकर रह गए हैं। क्या यह हमारी सांस्कृतिक विरासत पर एक करारा तमाचा नहीं?
भारत में गजराज, यानी एशियाई हाथी न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक हैं, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के 'इंजीनियर' भी—वे बीज फैलाते हैं, नदियां साफ रखते हैं और जैव विविधता को संतुलित करते हैं। लेकिन 2025 की ताजा रिपोर्ट्स हमें झकझोर देती हैं:
जंगली हाथियों की संख्या में 18% की भारी गिरावट, मानव-हाथी संघर्ष में सैकड़ों मौतें, और सिकुड़ते आवास। यह संकट केवल हाथियों का नहीं, बल्कि पूरे पर्यावरण और हमारी साझा विरासत का है।
संकट की सच्चाई: डरावने आंकड़ों से त्रासदी की झलक : भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की 'सिंक्रोनस ऑल इंडिया एलीफेंट एस्टीमेशन' (SAIEE) 2025 रिपोर्ट—जो पहली बार डीएनए-आधारित तकनीक पर आधारित है—एक कड़वी सच्चाई उजागर करती है। इसमें जंगली हाथियों की आबादी का औसत अनुमान 22,446 बताया गया है, जो 18,255 से 26,645 के बीच है। यह 2017 के 27,312 के अनुमान से 18% कम है। 21,000 से अधिक गोबर के नमूनों का आनुवंशिक विश्लेषण, कैमरा ट्रैप्स का विस्तृत नेटवर्क और 6,67,000 किलोमीटर पैदल सर्वेक्षण ने यह सटीक लेकिन चिंताजनक आंकड़ा तैयार किया। विशेषज्ञों का कहना है कि यह गिरावट पिछले आंकड़ों से सीधे तुलनीय नहीं, लेकिन एक नई 'आधार रेखा' स्थापित करती है।
भारत दुनिया के 60% से अधिक जंगली एशियाई हाथियों का घर है, जो आईयूसीएन द्वारा 'संकटग्रस्त' (एंडेंजर्ड) घोषित प्रजाति है। रिपोर्ट के अनुसार, हाथी अब अपने ऐतिहासिक आवास के मात्र 3.5% क्षेत्र में सिमट चुके हैं। कर्नाटक में सबसे अधिक 6,000 से ज्यादा हाथी हैं, जो राज्य की सफल संरक्षण नीतियों का प्रमाण है। पश्चिमी घाट (कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल) में करीब 12,000 हाथी निवास करते हैं, जबकि पूर्वोत्तर के असम और ब्रह्मपुत्र बाढ़ मैदानों में 6,500 से अधिक। लेकिन यहां भी, आवास हानि और विखंडन प्रमुख खतरे हैं। 1996 से 2008 के बीच असम में ही 4 लाख हेक्टेयर जंगल पर अतिक्रमण हुआ, जो हाथियों के प्राचीन प्रवास मार्गों को काट रहा है।
संवेदनशील प्राणी: हाथियों की दैवीय दुनिया और मानव-हाथी संघर्ष की कड़वी हकीकत
हाथी सामाजिक और बुद्धिमान प्राणी हैं—वे झुंड में रहते हैं, असाधारण स्मृति रखते हैं और भावनाओं से जुड़े होते हैं। भारतीय उपजाति (एलिफास मैक्सिमस इंडिकस) एशियाई हाथी की चार उप-प्रजातियों में से एक है, जो भारत के अलावा भूटान, नेपाल, म्यांमार जैसे 10 अन्य देशों में पाई जाती है। प्रजनन मौसम में नर हाथी 'मस्त' होकर पेड़ उखाड़ फेंकते हैं या गैंडों जैसे बड़े जानवरों से भिड़ जाते हैं, लेकिन यह प्रकृति का हिस्सा है। समस्या तब पैदा होती है जब मानव अतिक्रमण इनके रास्तों पर कब्जा कर लेता है।
मानव-हाथी संघर्ष (Human Elephant Conflict) भारत का सबसे बड़ा वन्यजीव संकट बन चुका है। 2020-21 से 2023-24 के बीच मानव मौतें 464 से बढ़कर 629 हो गईं, यानी सालाना औसत 450 मौतें। 2019-2023 के पांच वर्षों में कुल 2,829 मानव हताहत हुए। हाथियों की मौतें भी कम नहीं—इसी अवधि में 528 हाथी मारे गए। electrocution प्रमुख कारण है: ओडिशा में 71, असम में 55, कर्नाटक में 52, तमिलनाडु में 49 मौतें। ट्रेन दुर्घटनाएं और बिजली के तार भी हर साल सैकड़ों हाथियों को निगल जाते हैं। असम के सोनितपुर जिले में 2023-24 में 36 हाथी मारे गए, जबकि 31 मनुष्य। छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में HEC हॉटस्पॉट्स बढ़ रहे हैं, जहां फसल क्षति और संपत्ति नुकसान करोड़ों का है। परंतु सवाल वही है: क्या हाथी हमारे इलाकों में घुस रहे हैं, या हम उनके घरों में?
संघर्ष के बीच उम्मीद: ऐलिफेंट कॉरिडोर और संरक्षण प्रयास
फिर भी, भारत के संरक्षण प्रयास प्रेरणादायक हैं। 2010 में 88 पहचाने गए हाथी कॉरिडोर अब 2023 तक बढ़कर 150 हो चुके हैं, जो 15 राज्यों में फैले हैं। पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक 26 कॉरिडोर (कुल का 17%) हैं, उसके बाद कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, असम और ओडिशा। ये कॉरिडोर दो जंगलों को जोड़ते हैं, ताकि हाथी सुरक्षित प्रवास कर सकें। पर्यावरण मंत्रालय की 2023 रिपोर्ट में इनकी वैलिडेशन की गई, और 126 कॉरिडोर राज्य सीमाओं के अंदर हैं। इसके अलावा, 33 हाथी रिजर्व कुल 65,814 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कवर करते हैं।
प्रोजेक्ट एलीफेंट, जो 1992 से चल रहा है, अब प्रोजेक्ट टाइगर एंड एलीफेंट के रूप में विलयित हो गया है। 2024-25 के लिए इसका बजट 290 करोड़ रुपये है, जो पिछले वर्ष से 18% अधिक है।
सफलता की कहानियां भी हैं: कर्नाटक ने आवास संरक्षण से 6,000+ हाथियों को बचाया, जबकि वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया जैसी एनजीओ कॉरिडोर सुरक्षा पर काम कर रही हैं। 2024 में प्रोजेक्ट RE-HAB ने घायल हाथियों के इलाज के लिए फंडिंग बढ़ाई। वैश्विक स्तर पर, एशियन एलीफेंट सपोर्ट जैसे संगठनों ने असम में 2,105 डॉलर जुटाए। लेकिन चुनौतियां बरकरार हैं—बढ़ती जनसंख्या (कॉरिडोर इलाकों में घनी आबादी) और विकास परियोजनाएं (खनन, राजमार्ग)।
ईश्वर के प्रतीक गजराज पर आया यह संकट हमें चेतावनी देता है कि अगर हमने इन शानदार प्राणियों के 3.5% बचे आवास को भी खो दिया, तो जैव विविधता का नुकसान अपूरणीय होगा। भारत ने 150 कॉरिडोरों को मजबूत करने, आवास बहाली और HEC कम करने के लिए नीतियां बनाई हैं, लेकिन सफलता जन जागरूकता पर निर्भर है।
भारत के हृदय में बसे ये गजराज, भगवान गणेश के प्रतीक एशियाई हाथी, केवल हमारी आस्था का आधार नहीं, बल्कि हमारी साझा धरोहर का, हमारी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य का सवाल है। क्या हम वाकई उन प्राणियों को भूल जाएंगे, जिन्हें हम हर पूजा में सबसे पहले याद करते हैं? दिल दहला देने वाली यह हकीकत हमें झकझोरती है,—क्योंकि हर खोया हुआ हाथी एक टूटा हुआ सपना है, एक खोई हुई कहानी।
आइए, इस दिपावली पर न केवल दीप जलाएं, बल्कि संकल्प लें। वन्यजीव संरक्षण—वन्य कॉरिडोरों की रक्षा, वन्य प्राणियों को बचाने की मुहिम के लिए आगे आएं। क्योंकि अगर गजराज की गरज फिर से जंगलों में गूंजनी है, तो यह हमारी जिम्मेदारी है।