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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020 (17:17 IST)

नजरिया : मोदी-शाह की जोड़ी भी नहीं भेद पाई दिल्ली की केजरी ’वॉल’

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई से बातचीत

नजरिया :  मोदी-शाह की जोड़ी भी नहीं भेद पाई दिल्ली की केजरी ’वॉल’ - Arvind kejriwal historical victory in Delhi vidhansabha Election
दिल्ली चुनाव के नतीजों ने अरविंद केजरीवाल के फिर से दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने पर मोहर लगा दी है। दिल्ली में चुनाव में मोदी शाह की जोड़ी भी केजरीवाल की विकास के मोर्चे पर मात नहीं दे पाई।
 
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की इस ऐतिहासिक जीत की जितनी अधिक चर्चा नहीं है उससे अधिक चर्चा भाजपा की बुरी तरह हार की है। भाजपा जिसने दिल्ली चुनाव में अपने पूरी ताकत झोंकते हुए आठ हजार से अधिक छोटी बड़ी सभी रैलियां और नुक्कड़ सभाएं की थी उसके लिए दिल्ली की हार बहुत बड़ी हार है। 
 
भाजपा का चुनावी चाणक्य माने जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह ने घर-घर जाकर चुनावी कैंपेन किया तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीधे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर सियासी हमला किया। पार्टी ने हिंदुत्व का कार्ड खेलते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से ताबड़तोड़ चुनावी सभाएं कराई तो केंद्रीय मंत्रियों समेत 250 से अधिक सांसदों ने दिल्ली की 70 विधानसभा में मोहल्ले –मोहल्ले और झुग्गी बस्तियों की खाक छानी लेकिन पूरी तरह ताकत झोंकने के बाद भी भाजपा बुरी तरह चुनाव हार गई। 
 
दिल्ली में भाजपा की इस बड़ी हार पर वेबदुनिया से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि एक नहीं कई मायनों में भाजपा के लिए यह हार बहुत ही बड़ी है। वह कहते है कि दिल्ली चुनाव के नतीजे ठीक वैसे ही रहे है जिसकी ओर इशारा चुनाव की तारीखों के एलान होने से पहले और उसके बाद के आने वाले ओपिनियन पोल कर रहे थे।

ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि फिर भाजपा ने किस फीडबैक के आधार पर दिल्ली में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। वह कहते है कि राजनीति में हर कुछ सत्ता पाने के लिए होता है और अगर कुछ लाभ नहीं हो रहा था क्यों भाजपा की तरफ से इतनी मेहनत हो रही थी इसको लेकर कई सवाल अब उठ खड़े हो रहे है। वह कहते हैं कि अगर भाजपा ने बिना जीत के लक्ष्य लिए यह पूरी मेहनत की तो यह तो और भी दुर्भाग्यपूर्ण है। 
 
दिल्ली चुनाव को नजदीक से देखने वाले राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं कि भाजपा पूरे चुनाव में केजरीवाल को चुनौती  देने के लिए एक चेहरा सामने नहीं ला पाई। वह भाजपा की रणनीति पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि भाजपा के पास विकल्प नहीं थे उनके पास केजरीवाल को चुनौती देने के लिए हर्षवर्धन जैसा मजबूत विकल्प था, हर्षवर्धन के चेहरे के साथ भाजपा 2013 की तरह फिर चुनावी मैदान में उतर सकती थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। 
 
वेबदुनिया से बातचीत में रशीद किदवई कहते हैं कि हाल के दिनों में यह तीसरा चुनाव है जिसमें भाजपा की हार हुई है। वह कहते हैं कि भाजपा की पूरी राजनीति केवल मोदी के चेहरे के आसपास घूम रही है और सभी को एक आसान रास्ता मिल गया है। वह कहते हैं कि जैसे फिल्मों केवल सुपरस्टार के भरोसे हिट नहीं होती उसके लिए स्टार के साथ पटकथा भी होनी चाहिए, ठीक वैसा ही राजनीति में भी होता है। 
 
दिल्ली चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा चेहरा ही था और भाजपा के सामने भी यह सवाल था कि अरविंद केजरीवाल का विकल्प कौन होगा। इसके साथ ही भाजपा चुनावी मुद्दा को चुनने में भी चूक कर बैठी। भाजपा ने मोदी सरकार के कामकाज और राष्ट्रवाद के जिन मुद्दों को उठाया उस पर लोकसभा चुनाव में दिल्ली की जनता भाजपा का साथ देकर उसको सभी सात लोकसभा सीटें पहले ही जितवा चुकी थी ऐसे में इस बार सही मायनों में दिल्ली विधानसभा चुनाव के मुद्दे अलग ही थे।