दिल्ली चुनाव में शाहीन बाग और CAA पर अपने प्रोपेगेंडा का शिकार बनी भाजपा?
दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार ने उसकी चुनावी रणनीति पर भी सवाल उठा दिया है। भाजपा ने दिल्ली चुनाव शुरु से अंत तक शाहीन बाग और CAA कानून पर लड़ा लेकिन अब चुनावी नतीजे बताते हैं कि भाजपा अपने चुनावी एजेंडे में बुरी तह विफल रही है और उसको मुंह की खानी पड़ी।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं कि भाजपा ने दिल्ली चुनाव में जोर शोर के साथ शाहीन बाग के सहारे राष्ट्रवाद का मुद्दा उठाया है लेकिन विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दा हावी रहता है न कि राष्ट्रवाद का मुद्दा।
वह कहते हैं कि भाजपा ने जिस तरह शाहीन बाग और नागरिकता का मुद्दा उठाकर पूरा चुनाव लड़ा वह उसी के गले की फांस बन गया। दिल्ली के उन वोटरों को शाहीन बाग और नागरिकता के मुद्दे से कोई खास मतलब ही नहीं था जो इससे प्रभावित ही नहीं था। ऐसे वोटर जिनको शाहीन बाग के प्रदर्शन से कोई परेशानी नहीं थी और उस पर इस मुद्दे का कोई प्रभाव भी नहीं पड़ा।
वह कहते हैं कि दूसरी तरफ नागरिकता के मुद्दें को लेकर भी कोई डर, भय या उन्माद का माहौल नहीं था। वह कहते हैं कि भाजपा ने जिस तरह चुनाव में इसको मुद्दा बनाया है उसके साफ लगता है कि वह अपने प्रोपेगेंडा का शिकार बन गई। भाजपा को लगा कि इस संवदेनशील मुद्दें पर लोग डिवाइड हो जाएंगे लेकिन वैसा कुछ हुआ नहीं।
वह कहते है भाजपा की आने वाले समय भाजपा का मुश्किलें और बढ़ने वाली है। भाजपा की असली चुनौती बंगाल में होगी जहां नेरेटिव स्थानीय मुद्दा का नहीं है और अमित शाह ने जिस तरह बंगाल को अपना व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का विषय बनाया है।