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ठुकरा रहा था मुझे बड़ी देर से ज़माना, मैं आज सब ‘जहान’ को ठुकरा के पी गया

ठुकरा रहा था मुझे बड़ी देर से ज़माना, मैं आज सब ‘जहान’ को ठुकरा के पी गया - wine in lockdown
ग़म इस कदर बढ़े कि घबरा के पी गया, इस दिल की बेबसी पे तरस खा के पी गया,
ठुकरा रहा था मुझे बड़ी देर से ज़माना, मैं आज सब जहान को ठुकरा के पी गया।

इतने महीनों से सारी दुन‍िया की मेडि‍कल र‍िसर्च टीमें नहीं कर पाई, वो अब भारत में होने वाला है। 4 मई इत‍िहास में ल‍िखा जाने वाला वो द‍िन है, जब भारत में कोरोना के वैक्‍सीन की ईजाद का ‘श्रीगणेश’ हो गया।

हो सकता है हमारे देश के शोधार्थी चीन पहुंचकर वहां की लैब का मुआयना और र‍ि‍सर्च करें। क्‍योंक‍ि वायरस की ड‍ीटेल में पहुंचकर इसे जड़ से खत्‍म करने का ऐत‍िहास‍िक ‘क्‍ल‍िन‍िकल ट्रायल’ शुरू हो चुका है।

जी हां, हमारी सरकार ने कई शहरों में शराब के ठेकों को खोलने के आदेश जारी कर द‍िए हैं। अब कोरोना से जुड़े हर सवाल का जवाब आपके अपने नजदीकी ठेके या अहाते में म‍िल जाएगा।

सुनने में यह थोड़ा अजीब लग सकता है, लेक‍िन क्‍या आपको नहीं लगता क‍ि ज‍िन मयखानों में बैठकर कई शायरों ने बड़े-बड़े दीवान रच डाले। शायरी के मोटे-मोटे दस्‍तावेज ल‍िख डाले, क्‍या वहां बैठकर कोरोना का वैक्‍सीन ईजाद नहीं हो सकता।

यान‍ी शराब के ज‍िन शौकीनों का अब तक इत‍िहास में ति‍रस्‍कार क‍िया जाता रहा, वे अब न स‍िर्फ कोरोना का वैक्‍सीन बनाएंगे, बल्‍कि‍ अब तक गि‍र रही देश की अर्थव्‍यवस्‍था को संभालने का भी काम करेंगे। यानी उधर ठेके खुले और इधर द‍िमाग खुलना शुरू हो गए हैं।

शायद इसील‍िए ही लॉकडाउन 3.0 में ‘जान’ बच गई तो ‘जहान’ के ठेकों पर शराब के शौकीनों की भीड़ उमड़ गई है, ज‍िसे कोरोना भी नहीं रोक पाया है।

ग़म इस कदर बढ़े कि घबरा के पी गया, इस दिल की बेबसी पे तरस खा के पी गया,
ठुकरा रहा था मुझे बड़ी देर से ज़माना, मैं आज सब जहान को ठुकरा के पी गया।

आलम यह है क‍ि कर्नाटक से लेकर छत्‍तीसगढ तक मयखानों के सामने लंबी कतारें लग गई हैं। लखनऊ से लेकर हुबली और बि‍लासपुर तक ठेकों के सामने हाज‍िरी लगी हुई है। कोई सुबह 6 बजे से आकर लाइन में लग गया तो कोई च‍िलच‍िलाती धूप में अपनी बारी का इंतजार कर रहा है।

शराब के शौकीनों की ये बेबसी और बेताबी देखते ही बन रही है। लॉकडाउन के इतने द‍िन उन्‍होंने बगैर शराब के काट द‍िए, अब जैसे ही मयखाने के दरवाजे खुले, वहां शौकीनों का मजमा लगना शुरू हो गया।

इतने द‍िनों की बेबसी के बाद एक ही शेर याद आ रहा है।

आए हैं समझाने लोग, हैं कितने दीवाने लोग
दैर-ओ-हरम में चैन जो मिलता, क्यूं जाते मयखाने लोग।

बोतल खरीदने के ल‍िए शौकीन कई जगहों पर बहुत अच्‍छे से सोशल ड‍िस्‍टेंस‍िंग का पालन कर रहे हैं, जैसे मि‍ल‍िट्री का कोई रुल हो, लेक‍िन पीने के बाद इसका क‍ितना पालन हो सकेगा, कौन क‍ितना लड़खडाएगा यह देखने वाली बात होगी। हालां‍क‍ि कुछ जगहों पर बोतल खरीदने की हड़बड़ी भी नजर आई हैं।

अब कोई कुछ भी कहे इस द‍िल की लगी के बारे में, लेक‍िन पीने में कोई बुराई नहीं। यह तो आदमी को शरीफ बना देती है। बुरा तो वो शख्‍स है पीकर ज‍िसकी जबान लड़खड़ाए।

ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूं 
क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया। 
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