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Last Modified: गुरुवार, 17 जुलाई 2025 (15:32 IST)

कौन हैं मरांग बुरु और क्या है झारखंड के आदिवासियों का इनसे संबंध, विवाद भी है

Marang Buru
Who is Marang Buru in Jharkhand: किसी के निधन पर आमतौर पर कहा जाता है कि ईश्वर, भगवान या परम पिता परमेश्वर शोक संतप्त परिजनों को दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करें। लेकिन, झारखंड के मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन (Chief Minister Hemant Soren) ने एक सीआरपीएफ के जवान की शहादत पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि मरांग बुरु शहीद की आत्मा को शांति प्रदान कर शोकाकुल परिजनों को दुख की घड़ी सहन करने की शक्ति दें। आखिर कौन हैं मरांग बुरु और क्या है झारखंड के आदिवासियों से इनका संबंध? आइए जानते हैं विस्तार से... 
 
झारखंड के आदिवासियों के देवता : मरांग बुरु या मारंग बुरु झारखंड के आदिवासियों विशेष रूप से संथाल, मुंडा और हो जनजातियों के लिए एक सर्वोच्च देवता और एक पवित्र पहाड़ है। मरांग का अर्थ महान या सर्वोच्च होता है, जबकि बुरु का अर्थ पहाड़ होता है। इसलिए इसका शाब्दिक अर्थ 'महान पहाड़' या 'सर्वोच्च पर्वत' है। मरांग बुरु का झारखंड से गहरा संबंध है क्योंकि यह इस राज्य के आदिवासियों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न अंग है।
 
पूर्वज के रूप में पूजा : आदिवासियों द्वारा मरांग बुरु को सृष्टि के कारण, शक्ति का सर्वोच्च स्रोत और एक पवित्र पूर्वज के रूप में पूजा जाता है। यह उनकी प्रकृति-पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मरांग बुरु सिद्धांत सरना धरम और सारी धरम दोनों में पाए जाते हैं। देवता की पूजा आदिवासी पुजारियों द्वारा की जाती है,  जिन्हें संथाल में नाइक, भूमिज में लाया या देउरी, मुंडा में पाहन और हो जनजातियों में देहुरी के रूप में जाना जाता है।
 
मरांग बुरु को लेकर विवाद : झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित पारसनाथ पहाड़ी को आदिवासी समुदाय मरांग बुरु के नाम से जानते हैं। यह झारखंड की सबसे ऊंची चोटी है और आदिवासियों के लिए एक अत्यंत पवित्र स्थल है। मुंडा आदिवासी रांची जिले के सोनाहातू प्रखंड के नीमडीह गांव में मरांग बुरु की पूजा करते हैं। हाल के वर्षों में मरांग बुरु (पारसनाथ पहाड़ी) को लेकर आदिवासी समुदाय और जैन समुदाय के बीच धार्मिक अधिकारों को लेकर विवाद बढ़ा है।
 
जैन समुदाय का दावा : जैन समुदाय इसे 'सम्मेद शिखरजी' के रूप में अपना पवित्र तीर्थस्थल मानता है, जबकि आदिवासी समुदाय इस पर अपने पारंपरिक और प्रथागत अधिकारों का दावा करता है। आदिवासियों का मानना है कि इस पहाड़ पर उनके देवता का वास है और वे अपने रीति-रिवाजों और प्रथाओं को जारी रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
 
आदिवासी समुदाय मरांग बुरु पर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार मनाते हैं, जिनमें सेंदरा त्योहार (एक पारंपरिक शिकार अनुष्ठान) और बाहा पर्व (फूलों का त्योहार) प्रमुख हैं। ये त्योहार उनकी संस्कृति और परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। मरांग बुरु सिर्फ एक पहाड़ नहीं, बल्कि आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान, इतिहास और प्रतिरोध का प्रतीक भी है। यह उनके जीवनयापन और अस्तित्व से जुड़ा हुआ है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 
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