Negligence of Indigo Airlines: कल्पना कीजिए, आप एयरपोर्ट पर खड़े हैं, आपकी फ्लाइट अचानक कैंसिल हो जाती है। एयरलाइन का स्टाफ आपको एक सैंडविच और अगली फ्लाइट का वादा थमा देता है। आप थक-हारकर इसे स्वीकार कर लेते हैं। अब जरा दृश्य बदलिए। आप लंदन या पेरिस में हैं। वही एयरलाइन, वही गलती और वही फ्लाइट कैंसिल। लेकिन यहां आपको सैंडविच नहीं, बल्कि 600 यूरो की राशि तक का चेक मिलता है। यह कोई सपना नहीं, बल्कि कानून का फर्क है। एक तरफ यूरोप है, जहां लापरवाही पर एयरलाइन्स की शामत आ जाती है और दूसरी तरफ भारत, जहां एयरलाइन्स की 'मनमानी' और 'माफी' के बीच यात्री पिसता रहता है। 2017 में यूरोप की रेयानएयर और 2025 में भारत की इंडिगो की कहानी बिल्कुल एक जैसी है, लेकिन अंजाम में जमीन-आसमान का अंतर है।
दो कहानियां, एक गलती : इतिहास ने खुद को दोहराया
यूरोप, 2017 : आयरिश एयरलाइन रेयानएयर ने अपने पायलटों के रोस्टर में भारी गड़बड़ी की। छुट्टियां और ड्यूटी के घंटे (Flight Duty Time Limitations) का हिसाब बिगड़ा और करीब 20,000 उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। 7 लाख यात्री प्रभावित हुए।
भारत, 2025 : भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो (60% मार्केट शेयर) ने भी वही किया। नए पायलट थकान नियमों (FDTL) को लागू करने में देरी की, रोस्टर नहीं सुधारे और दिसंबर के पहले हफ्ते में 1000 से ज्यादा उड़ानें रद्द हो गईं। कहानी एक जैसी है—खराब मैनेजमेंट। लेकिन इसके बाद जो हुआ, वह भारतीय यात्रियों के लिए एक सबक है।
भारत बनाम यूरोप : सबसे बड़ा सवाल यह है कि एक एयरलाइन की गलती की सजा आपकी जेब क्यों भुगते? आइए देखते हैं कि अगर यह संकट यूरोप में होता, तो आपको क्या मिलता, और भारत में क्या मिल रहा है:
रेयानएयर बनाम इंडिगो : नीयत और नियम का फर्क यूरोप और भारत के बीच का अंतर 'सरकार की इच्छाशक्ति' में छिपा है. 2017 में जब रेयानएयर के 7 लाख यात्री फंसे, तो EU के नियामकों ने यह सुनिश्चित किया कि एयरलाइन को हर यात्री को मुआवजा (23,000 से 55,000 रुपए तक) देना पड़े। वहां कानून का डंडा इतना सख्त है कि एयरलाइन के शेयर गिरते हैं और सीईओ माफी मांगते हैं।
इधर भारत में, इंडिगो के पास 60% से ज्यादा का मार्केट शेयर है। जब 5 दिसंबर को 1,000 से ज्यादा उड़ानें रद्द हुईं, तो क्या हुआ? DGCA ने सलाह दी, कारण बताओ नोटिस जारी किए और डेडलाइन बढ़ा दी। लेकिन क्या किसी यात्री को उसकी मानसिक परेशानी और बर्बाद हुए समय के लिए 50,000 रुपए का मुआवजा मिला? जवाब है— नहीं।
हम पीछे क्यों हैं? 'चलता है' वाला रवैया यूरोप में जब रेयानएयर ने गलती की, तो उसे €25 मिलियन (200 करोड़ रुपए से ज्यादा) का नुकसान झेलना पड़ा और सीईओ को सार्वजनिक माफी मांगनी पड़ी। वहां संदेश साफ है—यात्री राजा है (Passenger is King)। भारत में स्थिति उलटी है। यहां एयरलाइन 'महाराजा' है।
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एकाधिकार (Monopoly) : जब एक ही एयरलाइन (इंडिगो) के पास 60% बाजार हो, तो उसे पता है कि आपके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
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कमजोर कानून: हमारे यहां DGCA के नियम एयरलाइन्स को 'तकनीकी खामी' या 'परिचालन कारण' बताकर मुआवजे से बचने का रास्ता (Loophole) देते हैं।
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न्याय में देरी : कंज्यूमर कोर्ट का रास्ता इतना लंबा है कि यात्री 5,000 रुपए के रिफंड के लिए सालों बर्बाद नहीं करना चाहता।
हमें 'सैंडविच' नहीं, सम्मान चाहिए : इंडिगो का 2025 का यह संकट सिर्फ़ उड़ानों के रद्द होने की खबर नहीं है; यह एक अलार्म है। जब हम दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार (Aviation Market) बनने का दम भरते हैं, तो हमारे अधिकार तीसरे दर्जे के क्यों हैं?
जब तक एयरलाइन्स को यह डर नहीं होगा कि एक कैंसिल फ्लाइट का मतलब लाखों का सीधा नुकसान है, तब तक वे सुधार नहीं करेंगी। फिलहाल तो स्थिति यह है कि यूरोप में यात्री 'राजा' है, और भारत में एयरलाइन 'महाराजा'। इंडिगो का मौजूदा संकट यह बताने के लिए काफी है कि हमें सिर्फ़ नई हवाई पट्टियां नहीं, बल्कि यात्रियों को सुरक्षा देने वाले नए और कड़े कानूनों की भी सख्त जरूरत है।
कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 कागजों में मजबूत है, लेकिन अदालती प्रक्रिया इतनी लंबी है कि आम यात्री वहां जाने की हिम्मत नहीं करता। समय आ गया है कि भारत भी EU261 जैसा सख्त 'पैसेंजर राइट्स चार्टर' अपनाए। जब तक एयरलाइन्स को यह डर नहीं होगा कि 'एक फ्लाइट कैंसिल करने पर 180 यात्रियों को हजारों रुपए देने पड़ेंगे,' तब तक वे रोस्टर सुधारने की जहमत नहीं उठाएंगी। अगली बार जब आप एयरपोर्ट पर फंसे हों, तो याद रखिएगा—आपकी परेशानी की कीमत सिर्फ़ एक 'सॉरी' नहीं है। आप बेहतर के हकदार हैं।