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Last Modified: रांची , सोमवार, 14 जुलाई 2025 (13:49 IST)

झारखंड में किसानों को मिल रहा सीपियों को सोने में बदलने का प्रशिक्षण

hemant soren
Jharkhand News: झारखंड तेजी से भारत के मीठे पानी के मोती उत्पादन केंद्र के रूप में उभर रहा है। राज्य सरकार और केंद्र इस विशिष्ट क्षेत्र को ग्रामीण युवाओं और किसानों के लिए आजीविका के एक प्रमुख अवसर में बदलने के लिए व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम और बुनियादी ढांचे का विकास कर रहे हैं। इस परिवर्तन को तब गति मिली जब केंद्र ने झारखंड सरकार के सहयोग से प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत 22 करोड़ रुपए के निवेश के साथ हजारीबाग को प्रथम मोती उत्पादन क्लस्टर के रूप में विकसित करने की अधिसूचना जारी की।
 
विशेष प्रशिक्षण : राज्य योजना के तहत 2019-20 में एक पायलट (प्रायोगिक) परियोजना के रूप में शुरू हुआ यह कार्यक्रम अब कौशल विकास पर केंद्रित एक संरचित पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में विकसित हो गया है, जिसमें किसानों को मोती की खेती की जटिल कला सिखाने के लिए राज्य भर में विशेष प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं।
 
कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) कोष से 2024 में रांची में स्थापित, पुर्टी एग्रोटेक प्रशिक्षण केंद्र, इस प्रशिक्षण क्रांति का केंद्र बनकर उभरा है। यह केंद्र अब तक राज्य भर के 132 से ज़्यादा किसानों को उन्नत मोती उत्पादन तकनीकों का प्रशिक्षण दे चुका है, और ये प्रशिक्षित किसान अब अपने-अपने जिलों में दूसरों को भी अपना ज्ञान दे रहे हैं, जिससे कई गुना ज्यादा फायदा हो रहा है।
 
क्या कहते हैं इंजीनियर बुधन सिंह : एनआईटी जमशेदपुर के मैकेनिकल इंजीनियर बुधन सिंह पूर्ति ने कहा कि प्रशिक्षण सफल मोती उत्पादन की रीढ़ है। हम गोल मोती उत्पादन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, क्योंकि इससे डिजाइनर मोतियों की तुलना में अधिक लाभ मिलता है। पूर्ति प्रशिक्षण केंद्र चलाते हैं और गोल मोती उत्पादन में राज्य में मोती तराशने वाले कुछ विशेषज्ञों में से एक बन गए हैं।
 
प्रशिक्षण कार्यक्रम कुशल सर्जिकल ग्राफ्टिंग तकनीकों, विशिष्ट उपकरणों के उपयोग और शल्य चिकित्सा के बाद सावधानीपूर्वक प्रबंधन पर जोर देते हैं। ये ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं, जो मोती उत्पादन की उत्तरजीविता दर और गुणवत्ता निर्धारित करते हैं। तकनीकी विशेषज्ञता पर यह ध्यान अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि गोल मोतियों की खेती में उच्च उत्तरजीविता दर और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए सटीकता की आवश्यकता होती है।
 
इस क्षेत्र की संभावनाओं को पहचानते हुए, रांची स्थित सेंट जेवियर्स कॉलेज ने मोती उत्पादन में छह महीने से लेकर डेढ़ साल तक के सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किए हैं, जिनमें अकादमिक शोध को व्यावहारिक क्षेत्रीय अनुभव के साथ एकीकृत किया गया है। प्रोफेसर रितेश कुमार शुक्ला ने बताया कि झारखंड में मोती उत्पादन एक उभरता हुआ क्षेत्र बनने जा रहा है और युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करेगा। विज्ञान के ज्ञान और क्षेत्रीय अनुभव से उद्यमशीलता कौशल विकसित करने में मदद मिलेगी। (भाषा/वेबदुनिया)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 
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