अयोध्या का प्राचीन राम मंदिर कैसा था?
Ayodhya ka prachin ram mandir kaisa tha: अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो गया है। 22 जनवरी 2024 को यहां पर श्री राम जी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही मंदिर का उद्घाटन होना है। इतिहाकारों के अनुसार 1527-28 में बाबर के एक सेनापति ने सेना के साथ मिलकर अयोध्या में स्थित भव्य मंदिर को तोड़ दिया था और उसकी जगह बाबरी ढांचा खड़ा किया गया था। 1992 तक यह ढांचा विद्यमान था। इसके बाद इसे ढांचे को कारसेवकों की भीड़ ने ढहा किया था। आओ जानते हैं कि यहां पर वर्तमान बने मंदिर से पहले का बना मंदिर कैसा था। भगवान राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था।
श्रीराम के पुत्र कुश ने बनाया था महल : कहते हैं कि भगवान श्रीराम के जल समाधि लेने के पश्चात अयोध्या कुछ काल के लिए उजाड़-सी हो गई थी, लेकिन उनकी जन्मभूमि पर बना महल वैसे का वैसा ही था। भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार पुन: राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया। इस निर्माण के बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसका अस्तित्व आखिरी राजा, महाराजा बृहद्बल तक अपने चरम पर रहा। कौशलराज बृहद्बल की मृत्यु महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथों हुई थी। महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी हो गई, मगर श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व फिर भी बना रहा।
विक्रमादित्य ने बनाया था भव्य मंदिर : इसके बाद यह उल्लेख मिलता है कि ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य एक दिन आखेट करते-करते अयोध्या पहुंच गए। विक्रमादित्य को इस भूमि में कुछ चमत्कार दिखाई देने लगे। तब उन्होंने खोज आरंभ की और पास के योगी व संतों की कृपा से उन्हें ज्ञात हुआ कि यह श्रीराम की अवध भूमि है। उन संतों के निर्देश से सम्राट ने यहां एक भव्य मंदिर के साथ ही कूप, सरोवर, महल आदि बनवाए। कहते हैं कि उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती थी।
पुष्यमित्र शुंग ने करवाया था जिर्णोद्धार: विक्रमादित्य के बाद के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की। उन्हीं में से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। पुष्यमित्र का एक शिलालेख अयोध्या से प्राप्त हुआ था जिसमें उसे सेनापति कहा गया है तथा उसके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञों के किए जाने का वर्णन है। अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और तत्पश्चात काफी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश में कई बार उल्लेख किया है।
चीनी भिक्षु फा-हियान ने लेख में भव्य मंदिर के होने का उल्लेख : इसके बाद कहते हैं कि चीनी भिक्षु फा-हियान ने यहां देखा कि कई बौद्ध मठों का रिकॉर्ड रखा गया है। यहां पर 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3,000 भिक्षु रहते थे और यहां हिन्दुओं का एक प्रमुख और भव्य मंदिर भी था, जहां रोज हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते थे जिसे राम मंदिर कहा जाता था।
पुरातात्विक तथ्य : अगस्त 2003 में पुरातात्विक विभाग के सर्वे में कहा गया कि जहां बाबरी मस्जिद बनी थी, वहां मंदिर होने के संकेत मिले हैं। भूमि के अंदर दबे खंबे और अन्य अवशेषों पर अंकित चिन्ह और मिली पॉटरी से मंदिर होने के सबूत मिले हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा हर मिनट की वीडियोग्राफी और स्थिर चित्रण किया गया। इस खुदाई में कितनी ही दीवारें, फर्श और बराबर दूरी पर स्थित 50 जगहों से खंभों के आधारों की दो कतारें पाई गई थीं। एक शिव मंदिर भी दिखाई दिया। जीपीआरएस रिपोर्ट और भारतीय सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट अब उच्च न्यायालय के रिकार्ड में दर्ज हैं। 30 सितम्बर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने विवादित ढांचे के संबंध में ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति एसयू खान ने एकमत से माना कि जहां रामलला विराजमान हैं, वही श्रीराम की जन्मभूमि है।