गुरुवार, 21 नवंबर 2024
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कैसे हुई थी प्रभु श्रीराम की मृत्यु

कैसे हुई थी प्रभु श्रीराम की मृत्यु | ram ki mrityu kaise hui thi
*5114 ईसा पूर्व प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था। उनकी मृत्यु के बारे में रामायण के अलावा अन्य रामायण और पुराणों में अलग-अलग वर्णन मिलता है।
 
 
*एक कथा अनुसार, सीता की सती प्रामाणिकता सिद्ध होने के पश्चात सीता अपने दोनों पुत्रों कुश और लव को राम की गोद में सौंपकर धरती माता के साथ भूगर्भ में चली गई। सीता के चले जाने से व्यथित राम ने यमराज की सहमति से सरयू नदी के तट पर गुप्तार घाट में जल समाधि ले ली।
 
 
*एक अन्य कथा अनुसार, हनुमानजी को अयोध्या में अनुपस्थिति देखकर यमदेव ने नगर में प्रवेश किया और एक संत का रूप धारण कर वे राम के महल पहुंच गए। उन्होंने वहां राम से मिलने का समय ले लिया।
 
 
*जब संत वेश में यम श्रीराम से मिले तो उन्होंने दोनों के बीच की वार्ता को गुप्त रखने के लिए यह शर्त रखी कि यदि हमारे बीच कोई आएगा तो द्वारपाल को मृत्युदंड दिया जाएगा। राम ने वचन दे दिया और हनुमानजी की अनुपस्थिति में लक्ष्मण को द्वारपाल बनाकर खड़ा कर दिया।
 
 
*तब यम ने अपने असली रूप में आकर कहा, प्रभु आपका धरती पर जीवन पूर्ण हो चुका है। अब आपको अपने लोक लौटना चाहिए। तभी इस वार्तालाप के बीच में ही द्वार पर ऋषि दुर्वासा आ गए और लक्ष्मण से अंदर जाने की जिद करने लगे अन्यथा श्रीराम को शाप देने की धमकी देने लगे।
 
 
*लक्ष्मण अब दुविधा में पड़ गए। आज्ञा का उल्लंघन करे तो मृत्युदंड मिलेगा और नहीं करे तो मेरे प्रभु श्रीराम को शाप मिलेगा। ऐसे में उन्होंने कठोर निर्णय लेते हुए दुर्वासा को अंदर जाने की अनुमति दे दी। 
 
*वार्तालाप भंग होने के कारण अब श्रीराम भी दुविधा में पड़ गए कि लक्ष्मण को मृत्युदंड देना होगा। उन्होंने ऐसे में लक्ष्मण को राज्य निकाला दे दिया, लेकिन लक्ष्मण ने अपने भ्राता के वचन को निभाने के लिए राज्य से बाहर जाने के बजाय सरयू में जल समाधि ले ली।
 
 
*लक्ष्मण के सरयू नदी में समाधि लेने से राम दुखी हुए और उन्होंने भी जल समाधि लेने का निर्णय लिया। सरयू नदी में जल समाधि लेने के वक्त उनके साथ हनुमान, जामवंत, सुग्रीव, भरत, शत्रुघ्‍न आदि सभी लोग खड़े थे।
 
 
*श्रीराम सरयू नदी के अंदर समा गए, तब फिर कुछ देर बाद नदी के भीतर से भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने अपने भक्तों को दर्शन दिए। इस प्रकार से राम ने अपना स्थूल रूप त्याग कर वास्तविक स्वरूप विष्णु का रूप धारण किया और वैकुंठ धाम की ओर प्रस्थान किया।