पंढरपुर मेला क्यों लगता है जानिए 5 रोचक बातें
Pandharpur Wari 2025: पंढरपुर मेला क्यों लगता है: पंढरपुर मेला, जिसे पंढरपुर वारी के नाम से भी जाना जाता है, महाराष्ट्र का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण वार्षिक तीर्थयात्रा उत्सव है। यह मेला मुख्य रूप से भगवान विठोबा अर्थात् भगवान कृष्ण का ही एक रूप हैं, के प्रति भक्तों की अटूट श्रद्धा और प्रेम के कारण लगता है। यह एक मास-पैदल यात्रा है जो हर साल महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से लाखों वारकरी यानी भगवान विठोबा के भक्त द्वारा की जाती है। इस यात्रा का समापन आषाढ़ मास की एकादशी को पंढरपुर में होता है, जिसे आषाढी एकादशी कहते हैं।
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आइए यहां जानते हैं पंढरपुर मेले (वारी) के बारे में 5 रोचक बातें:
1. विश्व की सबसे बड़ी पैदल तीर्थयात्राओं में से एक: पंढरपुर वारी को दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी संगठित पैदल तीर्थयात्राओं में से एक माना जाता है। इसमें हर साल 10 लाख से अधिक लोग शामिल होते हैं।
2. पालकी परंपरा: इस यात्रा का मुख्य आकर्षण विभिन्न संतों की सजी हुई पालकियां होती हैं, जिनमें संतों की पादुकाएं/ खड़ाऊं होती हैं। सबसे प्रमुख पालकियां आळंदी से संत ज्ञानेश्वर और देहू से संत तुकाराम की होती हैं।
3. अनूठा भक्ति संगीत : पूरी यात्रा के दौरान, वारकरी लगातार 'ज्ञानबा तुकाराम', 'पुंडलिक वरदा हरि विठ्ठल' और 'जय जय राम कृष्ण हरि' के जयघोष के साथ-साथ संत-कवियों द्वारा रचित अभंग/ भक्ति गीत और भजन गाते हुए चलते हैं।
4. नदी का चंद्रभागा रूप: पंढरपुर चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है। इस नदी को भीमा नदी के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन पंढरपुर के पास इसका आकार अर्धचंद्रमा जैसा होने के कारण इसे चंद्रभागा कहा जाता है। भक्त यहाँ पवित्र स्नान करते हैं।
5. विठोबा का निराकार रूप: भगवान विठोबा की मूर्ति एक सीधी खड़ी मुद्रा में है, जिसमें उनके हाथ कमर पर रखे हुए हैं और वे एक ईंट पर खड़े हैं। यह उनकी प्रतीक्षा और भक्तों के प्रति उनकी सहज उपलब्धता को दर्शाता है। यह रूप इस बात का भी प्रतीक है कि भगवान सभी के लिए सुलभ हैं और वे हर जगह मौजूद हैं। यह मेला महाराष्ट्र की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान का एक अभिन्न अंग है, जो भक्ति, समुदाय और परंपरा के संगम को दर्शाता है।
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