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Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 20 अगस्त 2025 (16:39 IST)

पर्युषण महापर्व 2025: जानें धार्मिक महत्व और जैन धर्म के 5 मूल सिद्धांत

paryushan ka mahatv
Jain festival Paryushan: श्वेतांबर जैन समाज का पर्युषण महापर्व, जो कि आठ दिनों तक चलता है, तथा दिगंबर जैन समुदाय का दसलक्षण महापर्व, जो कि 10 दिनों तक पर्युषण पर्व के रूप में मनाया जाता है, यह जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व माना जाता है।ALSO READ: श्वेतांबर जैन समाज के पर्युषण प्रारंभ, जानें कब मनेगी मिच्छामि दुक्कड़म

यह पर्व आत्मा की शुद्धि, आत्म-नियंत्रण और क्षमा का प्रतीक है। पर्युषण केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह आत्म-निरीक्षण और आत्म-सुधार का एक सुनहरा अवसर है। इस बार श्वेतांबर जैन समुदाय 20 अगस्त से तथा दिगंबर जैन समाजजन 28 अगस्त से अपने पर्युषण पर्व मनाएंगे।
 
पर्युषण का धार्मिक महत्व: पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है 'पवित्रता के समीप रहना'। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य सांसारिक सुखों का त्याग कर अपनी आत्मा को शुद्ध करना है। जैन धर्म में पर्युषण को आध्यात्मिक विकास का सबसे बड़ा अवसर माना जाता है। इन आठ दिनों में जैन धर्म के अनुयायी कठिन व्रत, उपवास, स्वाध्याय (शास्त्रों का अध्ययन), ध्यान और जप करते हैं।
 
पर्युषण के दौरान, जैन धर्म के पांच मूल सिद्धांतों पर विशेष ध्यान दिया जाता है:
 
• अहिंसा : किसी भी जीवित प्राणी को शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान न पहुंचाना।
 
• सत्य : हमेशा सच बोलना।
 
• अचौर्य (अस्तेय): चोरी न करना।
 
• ब्रह्मचर्य: आत्म-नियंत्रण और संयम का पालन करना।
 
• अपरिग्रह: सांसारिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति का त्याग करना।
 
पर्व के मुख्य कार्य और अंतिम दिन: पर्युषण के आठ दिनों में, जैन मुनि और साध्वी भक्तों को धार्मिक उपदेश देते हैं और पवित्र जैन ग्रंथ कल्प सूत्र का पाठ किया जाता है, जिसमें भगवान महावीर के जीवन और शिक्षाओं का वर्णन है।
 
पर्व के अंतिम दिन को संवत्सरी कहा जाता है, जो इस पर्व का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन सभी लोग एक-दूसरे से 'मिच्छामी दुक्कड़म' कहते हैं। इसका अर्थ है, 'यदि मैंने जाने-अनजाने में आपको कभी दुख पहुंचाया हो, तो मैं आपसे क्षमा चाहता हूं।' यह क्षमा-याचना और मेल-मिलाप का पर्व है, जहां सभी अपने मन में उठे वैर-भाव को समाप्त कर देते हैं।
 
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