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Written By WD Feature Desk
Last Modified: सोमवार, 5 मई 2025 (16:06 IST)

महावीर स्वामी को कब और कैसे प्राप्त हुआ कैवल्य ज्ञान?

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Mahavir swami Kaivalya Gyan: जैन धर्म में कैवल्य ज्ञान प्राप्त करने की कई तरह की साधनाएं बतायी जाती है। कैवल्य ज्ञान को बौद्ध धर्म में संबोधी, निर्वाण या बुद्धत्व प्राप्त करना माना जाता सकता है और हिंदू धर्म अनुसार इसे समाधि का उच्च स्तर या मोक्ष कहा जा सकता है। हालांकि इसके भी कई स्तर होते हैं। भगवान महावीर स्वामी को कैवल्य ज्ञान कब प्राप्त हुआ था और कैसे उन्होंने यह ज्ञान प्राप्त किया था। 7 मई 2025 को महावीर स्वामी के कैवल्य ज्ञान का दिवस मनाया जाएगा।ALSO READ: महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध में थीं ये 10 समानताएं
 
महावीर स्वामी को कब प्राप्त हुआ था कैवल्य ज्ञान:-
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को भगवान महावीर स्वामी को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उस वक्त उनकी उम्र 42 वर्ष की थी।  महावीर स्वामी को बिहार में जृम्भिका गांव के पास ऋजुकूला नदी-तट पर दिन वैशाख शुक्ल 10, उक्त समयानुसार रविवार 23 अप्रैल ई.पू. 557 को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति का हुई थी। कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने के बाद भगवान महावीर ने जनकल्याण के लिए शिक्षा देना शुरू की। अर्धमगधी भाषा में वे प्रवचन करने लगे, क्योंकि उस काल में आम जनता की यही भाषा थी।
 
महावीर स्वामी को  कैसे प्राप्त हुआ कैवल्य ज्ञान?
भगवान महावीर ने 12 साल तक मौन तपस्या तथा गहन ध्‍यान किया। अन्त में उन्हें 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त हुआ।  उन्होंने 'कैवल्य ज्ञान' की जिस ऊंचाई को छुआ था वह अतुलनीय है। मोक्ष की धारणा वैदिक ऋषियों से आई है। भगवान बुद्ध को निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करने के लिए अपना पूरा जीवन साधना में बिताना पड़ा। महावीर को कैवल्य (मोक्ष) प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या करनी पड़ी और ऋषियों को समाधि (मोक्ष) प्राप्त करने के लिए योग और ध्यान की कठिन साधनाओं को पार करना पड़ता है। अत: सिद्ध हुआ कि मोक्ष को प्राप्त करना बहुत ही कठिन है। मोक्ष प्राप्त करने से व्यक्ति जन्म मरण के चक्र से छुटकर भगवान के समान हो जाता है। मोक्ष मिलना आसान नहीं। दुनिया में सब कुछ आसानी से मिल सकता है, लेकिन खुद को पाना आसान नहीं। खुद को पाने का मतलब है कि सभी तरह के बंधनों से मुक्ति।
 
क्या होता है कैवल्य ज्ञान?
वह अंतरिक्ष के उस सन्नाटे की तरह है जिसमें किसी भी पदार्थ की उपस्थिति नहीं हो सकती। जहां न ध्वनि है और न ही ऊर्जा। केवल शुद्ध आत्मतत्व। हिन्दू धर्म में कैवल्य ज्ञान को स्थितप्रज्ञ, प्रज्ञा कहते हैं। यह मोक्ष या समाधि की एक अवस्था होती है। समाधि समयातित है जिसे मोक्ष कहा जाता है। इस मोक्ष को ही जैन धर्म में कैवल्य ज्ञान और बौद्ध धर्म में संबोधी एवं निर्वाण कहा गया है। योग में इसे समाधि कहा गया है। इसके कई स्तर होते हैं। इसे मन के पार अमनी दशा कहते हैं।
 
यह शब्द संस्कृत के केवला से लिया गया है, जिसका अर्थ है अकेला या पृथक। यह प्रकृति (प्रारंभिक पदार्थ) से पुरुष (आत्म या आत्मा) का पृथक होना है। यह मन, शरीर और इंद्रियों से अलग होकर अपना अस्तित्व कायम करना है। यह वैराग्य और स्वतंत्रता है। तपस्या, योगाभ्यास और अनुशासन करके इस अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है। जो इस अवस्था को प्राप्त कर लेता है उसे केवलिन कहा जाता है। कैवल्य आत्मज्ञान का अंतिम चरण है जिसे मोक्ष या निर्वाण भी कहा जाता है।
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