• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. धार्मिक स्थल
  4. Pandharpur Wari 2025
Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 27 जून 2025 (16:44 IST)

पंढरपुर यात्रा कब और क्यों निकाली जाती हैं, जानें इतिहास

Pandharpur Wari 2025
Ashadhi Ekadashi Pandharpur Yatra: पंढरपुर वारी (यात्रा) महाराष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण और सदियों पुरानी तीर्थयात्रा है। इसे वारकरी संप्रदाय का कुंभ भी कहा जाता है। यह पैदल यात्रा लाखों भक्तों द्वारा भगवान विठोबा अर्थात् जो भगवान कृष्ण का ही एक रूप हैं के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा व्यक्त करने के लिए की जाती है। आइए यहां जानते हैं पंढरपुर वारी यात्रा के बारे में...ALSO READ: 6 जुलाई से होंगे चातुर्मास प्रारंभ, जानिए इन 4 माह में क्या नहीं करना चाहिए
 
पंढरपुर वारी कब निकाली जाती है:
पंढरपुर वारी मुख्य रूप से आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष एकादशी यानी आषाढी एकादशी को पंढरपुर पहुंचने के उद्देश्य से निकाली जाती है। वर्ष 2025 में, आषाढी एकादशी 6 जुलाई 2025, रविवार को है। 
- यह एक 21 दिवसीय पैदल यात्रा होती है, जो विभिन्न स्थानों से शुरू होकर पंढरपुर में समाप्त होती है। दो मुख्य पालकियां होती हैं:
1. संत तुकाराम महाराज पालकी: बुधवार, 18 जून 2025 को देहू से प्रस्थान करेगी।
2. संत ज्ञानेश्वर महाराज पालकी: गुरुवार, 19 जून 2025 को आळंदी से प्रस्थान करेगी।
ये दोनों पालकियां 5 जुलाई 2025, शनिवार को पंढरपुर पहुंचेंगी और 6 जुलाई 2025, रविवार को आषाढी एकादशी के पावन अवसर पर भक्त विठ्ठल-रुक्मिणी के दर्शन करेंगे।ALSO READ: देवशयनी आषाढ़ी एकादशी की पौराणिक कथा
 
पंढरपुर वारी क्यों निकाली जाती है: पंढरपुर वारी भगवान विठोबा के प्रति अटूट भक्ति और प्रेम का प्रतीक है। पंढरपुर वारी निकालने के पीछे कई कारण हैं, वारकरी मानते हैं कि इस पैदल यात्रा से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और भगवान विठोबा का आशीर्वाद मिलता है। यह यात्रा मुख्य रूप से संत ज्ञानेश्वर महाराज और संत तुकाराम महाराज द्वारा शुरू की गई परंपरा है। उनके पदचिह्नों पर चलते हुए भक्त उनके अभंग यानी भक्ति गीत गाते हुए उनकी पालकियों के साथ पैदल चलते हैं।
 
वारी किसी भी जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति के भेद के बिना सभी लोगों को एक साथ लाती है। यह एकता, समानता और बंधुत्व का संदेश देती है। इसे भक्ति आंदोलन का एक जीवंत उदाहरण माना जाता है। यह सामाजिक समरसता का पर्व है। इस अवसर पर लाखों वारकरी 'जय जय राम कृष्ण हरि' के जयघोष और भजन-कीर्तन करते हुए इस यात्रा को तय करते हैं, जो एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
 
पंढरपुर वारी का इतिहास : पंढरपुर वारी की परंपरा 800 से अधिक वर्षों से चली आ रही है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत 13वीं शताब्दी में संत ज्ञानेश्वर महाराज ने की थी, जिन्होंने अपनी पालखी के साथ आळंदी से पंढरपुर तक पैदल यात्रा की थी। बाद में, संत तुकाराम महाराज ने भी देहू से पंढरपुर तक अपनी पालखी वारी की परंपरा शुरू की। 
 
इन संत-कवियों ने अपने अभंगों अर्थात् भक्ति कविताओं के माध्यम से भगवान विठोबा के प्रति भक्ति का संदेश फैलाया, जिसने वारकरी संप्रदाय को लोकप्रिय बनाया। बदलते समय के साथ, यह एक विशाल आंदोलन बन गया, जिसमें महाराष्ट्र और आसपास के क्षेत्रों से लाखों भक्त शामिल होने लगे। पंढरपुर वारी केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह महाराष्ट्र की संस्कृति, आध्यात्मिकता और सामाजिक ताने-बाने का एक अभिन्न अंग है, जो हर साल लाखों लोगों को एक सूत्र में पिरोती है।
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।ALSO READ: देवशयनी आषाढ़ी एकादशी की पौराणिक कथा
ये भी पढ़ें
अंशुमान झा करेंगे लखड़बग्घा 2: द मंकी बिजनेस का निर्देशन