• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. एकादशी
  4. Devshayani ekadashi
Written By WD Feature Desk
Last Modified: शुक्रवार, 27 जून 2025 (12:55 IST)

आषाढ़ी देवशयनी एकादशी पूजा की शास्त्र सम्मत विधि

Scriptural method of worshiping Ashadhi Devshayani Ekadashi
ashadi ekadashi puja vidhi: आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी तथा हरिशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसी दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु को विधिवत रूप से आरती भोग आदि लगाकर सुलाया जाता है। आओ जानते हैं कि आषाढ़ी देवशयनी एकादशी पूजा की शास्त्र सम्मत विधि।
 
• एकादशी तिथि प्रारंभ: 5 जुलाई 2025 को शाम 06 बजकर 58 मिनट पर
• एकादशी तिथि समाप्त: 6 जुलाई 2025 को रात 09 बजकर 14 मिनट पर होगा।
• देवशयनी व्रत तोड़ने या पारण का समय- 07 जुलाई 2025 को सुबह 05 बजकर 29 मिनट से 08 बजकर 16 मिनट तक। 
• पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय- रात 11:10 मिनट पर।
 
1. षोडशोपचार पूजा: 1. पाद्य, 2. अर्घ्य, 3. आचमन, 4. स्नान, 5. वस्त्र, 6. आभूषण, 7. गंध, 8. पुष्प, 9. धूप, 10. दीप, 11. नैवेद्य, 12. आचमन, 13. ताम्बूल, 14. स्तुतिपाठ, 15. तर्पण और 16. नमस्कार।
2. दश उपचार दशोपचार: पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र निवेदन, गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य।
3. पंचोपचार पूजन: 1. गंध, 2. पुष्प, 3. धूप, 4. दीप और 5. नैवेद्य के बाद आरती।
 
आषाढ़ी एकादशी पूजा विधि:
  1. इस दिन भगवान विष्णु का षोडशोपचार किया जाता है। 
  2. षोडशोपचार या पंचोपचार पूजा करें अर्थात 5 या 16 क्रियाओं से पूजन करते हैं।
  3. इसके लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा की तैयारी करें।
  4. पूजा स्थल को पवित्र करने के बाद सातिया बनाएं और उस पर चावल की एक मुट्ठी रखें।
  5. सातिये के उपर आसन को स्थापित करें और फिर पास में कलश की स्थापना करें।
  6. इसके बाद कलश की पूजा करें और तब आसन पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।
  7. इसके बाद भगवान का षोडशोपचार पूजन करें।
  8. सबसे पहले प्रतिमा के समक्ष दीप धूप जलाएं। 
  9. भगवान विष्णु को पीले वस्त्र पहनाएं। 
  10. फिर उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें।
  11. फिर माला पहनाएं और पीले फूल अर्पित करें।
  12. इसके बाद उन्हें हल्दी, कंकू, चावल अर्पित करके चंदन का तिलक लगाएं। 
  13. इसके बाद पान और सुपारी अर्पित करें। फिर भोग लगाएं और सभी सामग्री अर्पित करें।
  14. इसके बाद आरती उतारें और इस मंत्र द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति करें…
  15. अंत में ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें।
 
हरिशयन मंत्र- देवशयनी एकादशी पर रात्रि में भगवान विष्णु का भजन व स्तुति करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को शयन कराना चाहिए।
 
'सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्। 
विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।'
- अर्थात्, हे प्रभु आपके जगने से पूरी सृष्टि जग जाती है और आपके सोने से पूरी सृष्टि, चर और अचर सो जाते हैं। आपकी कृपा से ही यह सृष्टि सोती है और जागती है, आपकी करुणा से हमारे ऊपर कृपा बनाए रखें।
ये भी पढ़ें
देवशयनी आषाढ़ी एकादशी की पौराणिक कथा