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Written By WD Feature Desk
Last Modified: मंगलवार, 16 सितम्बर 2025 (18:12 IST)

Pitra Paksh 2025:श्राद्ध के लिए क्यों मानी जाती है कुशा अनिवार्य, जानिए पौराणिक महत्त्व

Pitra Paksh 2025
Significance of Kusha in Pitra Paksh: पितृपक्ष के 15 दिनों में जब भी श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान जैसे अनुष्ठान होते हैं, तो एक नाम सबसे ज्यादा लिया जाता है- कुश घास। साधारण दिखने वाली यह घास धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों में इतनी महत्वपूर्ण क्यों मानी गई है? इसके पीछे न केवल वैज्ञानिक कारण हैं, बल्कि पुराणों में इसका एक गहरा और पवित्र इतिहास भी छिपा है। आइए जानते हैं कि इस घास का जन्म कैसे हुआ और पितृपक्ष में इसका उपयोग क्यों अनिवार्य है।

कैसे हुआ कुश का जन्म?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुश का जन्म भगवान विष्णु के वराह अवतार से हुआ था। जब भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को समुद्र से बाहर निकाला, तब उनके शरीर से जो रोएं (बाल) गिरे, वे ही धरती पर कुश घास के रूप में उत्पन्न हुए। इसी कारण इसे विष्णु रोम भी कहा जाता है। इस कथा के कारण इसे अत्यंत पवित्र और दैवीय माना गया है।
एक और मान्यता के अनुसार, जब भगवान शिव असुरों का संहार कर रहे थे, तब उनके शरीर से निकले पसीने की बूंदों से कुश का जन्म हुआ। इन दोनों ही कथाओं में यह स्पष्ट होता है कि कुश का संबंध किसी साधारण वस्तु से नहीं, बल्कि स्वयं देवताओं से है, यही कारण है कि इसे इतना पवित्र माना जाता है।

श्राद्ध में क्यों है कुशा का महत्व?
पितृपक्ष के दौरान, जब हम अपने पितरों के लिए श्राद्ध करते हैं, तो कुशा का उपयोग कई कारणों से अनिवार्य माना गया है:
1. पवित्रता और शुद्धिकरण: कुश को एक प्राकृतिक शुद्धिकारक माना जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों में इसका उपयोग नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने और वातावरण को शुद्ध करने के लिए किया जाता है। माना जाता है कि कुश के स्पर्श से श्राद्ध और तर्पण की क्रिया में किसी भी तरह की अशुद्धि नहीं आती।
2. पितरों को जोड़ने का माध्यम: श्राद्ध के दौरान, कुश को पितरों के प्रतीकात्मक रूप में इस्तेमाल किया जाता है। कुशा के आसन पर बैठकर तर्पण करने से यह माना जाता है कि हम सीधे अपने पितरों को जल और भोजन अर्पित कर रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि पितर कुश के माध्यम से ही हमारे द्वारा दिए गए भोजन को स्वीकार करते हैं।
3. कुश की अंगूठी (पवित्री): श्राद्ध कर्म करते समय, उंगली में कुश से बनी अंगूठी पहनना अनिवार्य है, जिसे पवित्री कहा जाता है। यह अंगूठी कर्मकांड करने वाले व्यक्ति को पवित्रता प्रदान करती है और उसे बाहरी अशुद्धियों से बचाती है।
4. ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव कम करना: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुशा में ऐसी शक्ति होती है जो श्राद्ध के दौरान नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को कम करती है।
इस प्रकार, कुश केवल एक घास नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, पवित्रता और पितरों के प्रति सम्मान का प्रतीक है। पितृपक्ष में इसका प्रयोग हमें हमारे पूर्वजों से जोड़ता है और श्राद्ध कर्म को पूर्ण और फलदायी बनाता है। यह हमें यह भी याद दिलाता है कि प्रकृति में मौजूद हर वस्तु का अपना एक विशेष महत्व है, खासकर जब वह हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन से जुड़ी हो।

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