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Written By WD Feature Desk
Last Modified: मंगलवार, 19 अगस्त 2025 (15:38 IST)

ऋषि पंचमी कब है, क्या करते हैं इस दिन, पूजा का शुभ मुहूर्त और मंत्र

rishi panchami 2025
हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी का भी बड़ा महत्व माना गया है। यह पर्व भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पंचमी यानी हरतालिका तीज के के दो दिन और गणेश उत्सव की गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद आता है। ऋषि पञ्चमी इस बार 28 अगस्त 2025 गुरुवार की रहेगी। वैसे तो ऋषि पंचमी का त्योहार सप्त ऋषियों को श्रद्धांजलि देने और महिलाओं द्वारा रजस्वला दोष से मुक्ति और शुद्ध होने के कारण यह व्रत रखा जाता है, लेकिन प्रदेश और स्थान के अनुसार इसे मनाए जाने के अलग अलग कारण भी है। इसी दिन से दिगंबर जैन समुदाय का 10 दिवसीय पर्युषण महापर्व की शुरुआत भी होती है। ऋषि पंचमी पर कश्यप ऋषि की जयंती भी रहती है। 
 
पंचमी तिथि प्रारम्भ- 27 अगस्त 2025 को अपराह्न 03:44 बजे प्रारंभ। 
पंचमी तिथि समाप्त- 28 अगस्त 2025 को शाम 05:56 बजे समाप्त। उदयातिथि के अनुसार 
28 अगस्त को ऋषि पंचमी का व्रत रखा जाएगा।
 
ऋषि पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त:
सुबह: 04:28 से 05:57 तक।
दोपहर: 11:56 से 12:48 तक।
शाम: 06:47 से 07:54 तक। 
 
ऋषि पंचमी पर सप्तऋषि पूजन का मंत्र -
'कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः'॥
 
क्या करते हैं इस दिन?
  • इस दिन महिलाएं मासिक धर्म के दोष से मुक्ति, सुख, शांति और समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन कश्यप ऋषि सहित सप्तऋषियों का पूजन किया जाता है। इसके बाद ऋषिपंचमी से संबंधित व्रत कथा पढ़ते या सुनते हैं। 
  • इस दिन प्रात: काल जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर सप्त ऋषियों की पूजा की तैयारी करते हैं।
  • इसके लिए हल्दी से दीवार या भूमि पर तारे सितारों के साथ सप्त ऋषियों की आकृति बनाकर उनकी पूजा करते हैं।
  • अपने घर के स्वच्छ स्थान पर हल्दी, कुमकुम, रोली आदि से चौकोर मंडल बनाकर उस पर सप्तऋषियों की स्थापना करें। 
  • गंध, पुष्प, धूप, दीप नैवेद्यादि से पूजन करके निम्न मंत्र से सप्तऋषियों को अर्घ्य दें।
  • तपश्चात बिना बोया पृथ्वी में पैदा हुए शाकादिका आहार करके ब्रह्मचर्य का पालन करके व्रत करें। 
  • इस प्रकार सात वर्ष व्रत करके आठवें वर्ष में सप्तर्षिकी पीतवर्ण सात मूर्ति युग्मक ब्राह्मण-भोजन कराकर उनका विसर्जन करें।
  • इस संबंध में यह भी मान्यता है कि भारत के कहीं-कहीं दूसरे स्थानों पर, किसी प्रांत में महिलाएं पंचताडी तृण एवं भाई के दिए हुए चावल कौवे आदि को देकर फिर स्वयं भोजन करती है।
  • इस व्रत और पूजा से संतान को लाभ मिलता है और घर परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है।
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