गोवत्स द्वादशी क्यों मनाते हैं : यह पर्व मुख्य रूप से गाय और बछड़े के प्रति आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं।
पौराणिक मान्यता: इस दिन से जुड़ी एक प्रचलित मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गाय और बछड़े का दर्शन और पूजन किया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। गाय को देवी-देवताओं का निवास स्थान माना जाता है, इसलिए गौ-माता और उनके बछड़े की पूजा से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
किसानों का पर्व: यह पर्व किसानों के लिए भी विशेष महत्व रखता है, क्योंकि गाय और बैल उनके कृषि कार्य का अभिन्न अंग हैं। इस दिन गाय और बछड़ों की सेवा और पूजा करके किसान अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
व्रत के नियम: इस दिन व्रत रखने वाले लोग गाय के दूध और उससे बने उत्पादों जैसे दही, पनीर, घी आदि का सेवन नहीं करते हैं। इसके बजाय, भैंस के दूध और उससे बनी चीजों का उपयोग किया जाता है। साथ ही, वे अन्न का भी सेवन नहीं करते, बल्कि सिर्फ फल या फलाहार लेते हैं।
गोवत्स द्वादशी पूजा का शुभ मुहूर्त : Bach baras ka shubh muhurat
पंचांग के अनुसार, द्वादशी तिथि का आरंभ 19 अगस्त 2025 को दोपहर 03 बजकर 32 मिनट से,
द्वादशी तिथि का समापन 20 अगस्त 2025 को दोपहर 02 बजकर 11 मिनट पर।
पूजा का शुभ मुहूर्त: शाम 06 बजकर 50 मिनट से रात 08 बजकर 28 मिनट तक।
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