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Last Updated :चुराचांदपुर/विष्णुपुर , बुधवार, 19 जुलाई 2023 (17:04 IST)

Manipur Ethnic Violence: केंद्रीय बलों की और तैनाती चाहते हैं ग्रामीण, निवासियों में खौफ बरकरार

Manipur Ethnic Violence: केंद्रीय बलों की और तैनाती चाहते हैं ग्रामीण, निवासियों में खौफ बरकरार - Demand for central forces in Manipur villages
Manipur Ethnic Violence: मेइती और कुकी (Meitei and Kuki) समुदाय के बीच जातीय हिंसा से जूझ रहे मणिपुर के गांवों में कई अन्य समुदाय भी संघर्ष के खतरों का सामना कर रहे हैं और उनका हर दिन भय तथा अनिश्चितता के बीच गुजर रहा है।

फूलजंग (Phooljung) और फाओगाकचाओ गांवों के बीच क्वातका नगर परिषद के वार्ड संख्या 9 में निवासियों के चेहरे पर खौफ स्पष्ट नजर आता है, क्योंकि उन्हें अघोषित गोलीबारी और स्थानीय अधिकारियों के कथित बेपरवाह रवैये का सामना करना पड़ रहा है।
 
छोटी-छोटी झोपड़ियों से घिरी इस बस्ती में दीवारों और छतों पर हिंसा के ताजा निशान हैं जिन पर लगातार होने वाली गोलीबारी के दौरान गोलियों से अनगिनत चोटें आई हैं। झोपड़ी के अंदर पड़े फर्नीचर और रसोई के बर्तन अनगिनत छेदों वाले हैं जिनमें से हर छेद, घर की कमजोर दीवारों को पार कर आई एक गोली लगने की पीड़ा बताता है।
 
फाओगाकचाओ के ग्रामीणों की तरफ से वाहिद रहमान उस गंभीर स्थिति का वर्णन करते हैं जिसमें वे खुद को घिरा पाते हैं। उन्होंने कहा कि हम हाशिये पर रह रहे हैं, भविष्य के बारे में कोई निश्चितता नहीं है। गोलीबारी अचानक शुरू होती है और घंटों तक चल सकती है। हमने अपने कुछ साथी ग्रामीणों को स्थिति से बचने के लिए पास के रिश्तेदारों के पास भागते देखा है, लेकिन हम जैसे लोग जिनके पास जाने के लिए कोई और जगह नहीं है, हम उन खतरों के खौफ के साथ जीने के लिए मजबूर हैं जिनका हम सामना कर रहे हैं।
 
घर से कुछ दूर पर ही हिंसा का सामना कर रहे फूलजंग के कुछ निवासियों का कहना है कि वे महसूस करते हैं कि स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें छोड़ दिया है। इफाफ मयूम वाई. खान के शब्द फूलजंग के उनके साथी ग्रामीणों के साथ गूंजते हैं।
 
मयूम ने अपने गांव में बताया कि इस जगह से महज 2-3 किलोमीटर दूर मई में मेइती और कुकी समुदायों के बीच झड़पें शुरू हुईं। तब से हमारी शांति नष्ट हो गई है। हमारे जीवन का दर्द समझने वाला कोई नहीं आया, न तो स्थानीय विधायक और न ही कोई सरकारी अधिकारी।
 
हिंसा के इस दौर में निर्दोष लोगों की भी जान गई है। इस महीने के पहले हफ्ते में गोलीबारी और बम विस्फोट के दौरान इलाके में रहने वाले 6 साल के 1 बच्चे की जान चली गई। क्षेत्र की स्थिति से निराश मयूम ने कहा कि हम अपने गांव में सेना, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल या असम राइफल्स की तैनाती चाहते हैं ताकि हम शांति से रह सकें।
 
ऐसा नहीं है कि सिर्फ फूलजंग के ग्रामीण ही हिंसा का यह दंश झेल रहे है, क्योंकि कांगपोकपी और इंफाल पश्चिम के पास रहने वाला गोरखा समुदाय खुद को इसी तरह की स्थिति में घिरा पाता है। सेनापति जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग-2 के पास रहने वाले एक ग्रामीण संजय बिष्ट ने कहा कि हम शांति चाहते हैं। इस क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिए किसी को हस्तक्षेप करना चाहिए।
 
सुरक्षा बल 'बफर जोन' बनाने के लिए परिश्रमपूर्वक काम कर रहे हैं, जैसे चुराचांदपुर और बिष्णुपुर के बीच स्थापित किया गया है। हालांकि यह अशांति को खत्म करने के लिए अपर्याप्त साबित हुआ है। स्थिति की गंभीरता को उजागर करते हुए एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि मणिपुर के लिए दंगे नई बात नहीं हैं। हर 6-7 साल में किसी न किसी वजह से दंगे होते ही रहते हैं। लेकिन ये पिछले सभी दंगों से बिलकुल अलग हैं। हमने समाज के भीतर ऐसा विभाजन कभी नहीं देखा।
 
जब अतिरिक्त बलों की तैनाती की योजना के बारे में सवाल किया गया तो अधिकारी ने जोर देकर कहा कि हमने किसी भी समुदाय (कुकी और मेइती) से कोई सकारात्मक कदम नहीं देखा है, जो निकट भविष्य में किसी भी संघर्षविराम का संकेत देता हो। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से हमें पहाड़ियों और घाटी से सटे क्षेत्रों में प्रभावी बफर जोन बनाने के लिए अधिक कर्मियों की आवश्यकता है।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta
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