Letters to mother: 34 साल पहले प्रधानमंत्री पत्र और कविताएं लिखकर जला देते थे, अब भावना सोमाया के अनुवाद से तैयार हुआ मोदी के ‘मन का दस्तावेज’
आज रिलीज होगी प्रधानमंत्री मोदी के लिखे पत्रों पर आधारित किताब ‘लेटर्स टू मदर’
फिल्म समीक्षक और लेखक भावना सोमाया ने किया मोदी की किताब का अनुवाद
सीएम और पीएम होने से पहले मोदी के लिखे पत्र और कविताएं हार्पर कॉलिन्स ने किया प्रकाशन
नरेंद्र मोदी को हम प्रधानमंत्री के तौर पर जानते हैं। वे ज्यादातर मामलों में चुप रहते है, जो हमें नजर आता है, वो है उनका सख्त चेहरा और सख्त फैसलें।
हमारे और नरेंद्र मोदी के बीच एक दीवार है, जिसकी वजह से हम उन्हें सिर्फ एक प्रधानमंत्री के रूप में देखते हैं। लेकिन इस दीवार के उस तरफ झांक कर जिस लेखक ने नरेंद्र मोदी को देखा है उनका नाम हैं भावना सोमाया।
भावना सोमाया ने मोदी के उस मन को खोलने का काम किया है जो कभी कहीं किसी अंधेरे कमरे में नितांत अकेला बैठकर चुपके-चुपके अपने अंर्तमन को खोजता, देखता और उसे सहलाता था।
भावना ने प्रधानमंत्री मोदी की छुपी हुई एक डायरी के पन्नों या कहें मन के बेहद नितांत पलों के दस्तावेजों का गुजराती से अंग्रेजी में अनुवाद किया है। इसमें कुछ पत्र और कुछ कविताएं हैं। यह उस समय की बात है जब मोदी न तो मुख्यमंत्री थे और न ही प्रधानमंत्री। अंग्रेजी किताब का नाम है ‘लेटर्स टू मदर’। गुजराती में उसका नाम ‘साक्षी भाव’ था। हार्पर कॉलिन्स पब्लिशिंग हाउस ने इस अनुदित किताब का प्रकाशन किया है।
भावना सोमाया अपने जमाने की जानी-मानी फिल्म समीक्षक रहीं हैं, लेखक हैं और अब अनुवादक भी हैं। कभी वो कास्ट्यूम डिजाइनर भी थीं।
17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर इस किताब ‘लेटर्स टू मदर’ को लॉन्च किया जा रहा है। इस मौके पर मुंबई से भावना सोमाया ने ‘वेबदुनिया’ से एक्सक्लूसिव चर्चा की। उनके साथ बातचीत के कुछ खास अंश।
सवाल: मोदी जी के लेखन की प्रेरणा कौन है, अपने पत्रों मेंवे किसे संबोधित करते हैं ? जवाब: अपने बेहद शुरुआती दिनों में मोदीजी रोजाना रात को डायरी में बेहद निजी अहसासों को तारीख के साथ दर्ज करते थे। इनमें पत्र, कविताएं और कुछ प्रोज (गद्य) भी हैं। बाद में वे उसे अलाव में जला देते थे। इनमें मोदी जगत जननी मां को संबोधित करते हैं, यानी मां अम्बा।
सवाल: अनुवाद का ख्याल किसे और कैसे आया, उनका लिखा कैसे बच गया ? जवाब: यह 1986 की बात है। उनके किसी दोस्त ने देखा कि वे अपने लिखे हुए पत्रों और कविताओं को जला देते थे, तो उन्होंने उनसे वो डायरी ले ली और मुझसे उसे अनुदित करने की बात की। उनकी गुजारिश पर मुझे अनुवाद के लिए तैयार होना पड़ा। कुछ पन्नें बच गए जिनका अनुवाद कर किताब की शक्ल दी गई है।
सवाल: आपका इस किताब से जुड़ाव कैसे हुआ ? जवाब: जब मैंने इसका पहला ड्राफ्ट तैयार किया तो पता चला इसमें मोदी जी के अहसास हैं, संघर्ष है। उन्होंने अपने दर्द और भावना को बेहद ईमानदार तरीके से लिखकर उकेरा है। ड्राफ्ट तैयार करते हुए मैं इससे पूरी तरह कनेक्ट हो गई। इसके बाद मैंने रोजाना पांच लेटर्स अनुवाद किए। हालांकि अनुवाद मुश्किल काम है लेकिन मेरे लिए यह चैलेंज की तरह था।
सवाल: किताब को लेकर आपकी मोदी जी से चर्चा हुई ? जवाब: हां, वो नहीं चाहते थे कि किताब प्रकाशित हो। पहले उन्होंने इसे छपवाने से मना कर दिया था। उनका कहना था कि यह मैंने अपनी मां और ईश्वर के लिए लिखा है। जब प्रकाशन की बात की गई तो वे थोड़े सरप्राइज थे। बाद में किसी तरह बात बन गई।
सवाल: आप लेखक हैं, लेकिन अनुवाद का अनुभव कैसा रहा ? जवाब: अनुवाद एक बेहद मुश्किल काम है, इसमें दोगुना काम करना होता है। लेखक के अहसासों से ‘कनेक्ट’ होना होता है। समय लगता है और दोहरी जिम्मेदारी भी होती है।
सवाल: आप मोदी जी को किस रूप में देखती हैं, प्रधानमंत्री या लेखक ? जवाब: पीएम नहीं, सीएम भी नहीं। वो लिखते वक्त सिर्फ एक मनुष्य होते हैं। उनकी आप-बीती एक ‘वर्ल्ड व्यू’ है। वो दुनिया को या जीवन को एक बहुत बड़े कैनवस पर एक बड़े नजरिये से देखते हैं। मुझे यकीन है यह किताब उन्हें देश के लोगों से मिलवाएगी।
सवाल: आपने सिनेमा के इतिहास पर कई किताबें लिखीं हैं, उस दौर के और अब के सिनेमा में, लोगों में और इंडस्ट्री में किस तरह के बदलाव देखती हैं ? जवाब: बहुत बदलाव हो गए हैं। कहानियां बदल गईं, चेहरे बदल गए। तकनीक तो पूरी तरह से नई है। इसकी वजह से सिनेमा भी बदल गया है। अब ज्यादातर चीजें तकनीक पर निर्भर है। लेकिन मुझे कोई शिकायत नहीं, मैंने उस दौर में काम किया और इस दौर में भी खुश हूं।
सवाल: आजकल आप क्या लिख रही हैं, आगे क्या योजना है। कोई किताब आ रही है आपकी ? जवाब: मैं अभी कुछ अनुवाद कर रही हूं। इसके साथ ही 90 के दशक के सिनेमा पर किताब पर काम कर रही हूं। इसके बाद मां-बाप की कहानी पर एक किताब लिखूंगी। फिलहाल मोदी जी की इस किताब ‘लेटर्स टू मदर’ की जिम्मेदारी है कि यह ठीक से लोगों के हाथों में पहुंच जाए। इस किताब के प्रकाशन के लिए मैं ‘हार्पर कॉलिन्स’ का दिल से धन्यवाद और आभार प्रकट करती हूं।