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Last Modified: सोमवार, 26 सितम्बर 2022 (16:54 IST)

बिलकिस एकजुटता पदयात्रा : यात्रा से पहले सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे समेत 4 लोग हिरासत में

Bilkis Bano case
गोधरा (गुजरात)। बिलकिस बानो के साथ एकजुटता व्यक्त करने के वास्ते सोमवार को प्रस्तावित पैदल मार्च से पहले पुलिस ने सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे तथा 3 अन्य को रविवार देर रात हिरासत में ले लिया। पांडे और अन्य कार्यकर्ता 'हिंदू-मुस्लिम एकता समिति' के बैनर तले पड़ोसी दाहोद जिले के उनके पैतृक गांव रंधीकपुर से सोमवार को 'बिलकिस बानो से माफी मांगो' पैदल मार्च शुरू करने वाले थे।

गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों को रिहा किए जाने के खिलाफ और बानो के साथ एकजुटता दिखाने के वास्ते इस पदयात्रा का आह्वान किया गया था।

रैमन मैगसायसाय पुरस्कार विजेता संदीप पांडे और अन्य कार्यकर्ता ‘हिंदू-मुस्लिम एकता समिति’ के बैनर तले पड़ोसी दाहोद जिले के उनके पैतृक गांव रंधीकपुर से सोमवार को ‘बिलकिस बानो से माफी मांगो’ पैदल मार्च शुरू करने वाले थे। मार्च चार अक्टूबर को खत्म होना था।

‘बी-संभाग’ थाने के एक अधिकारी ने कहा, संदीप पांडे और तीन अन्य लोगों को रविवार देर रात करीब साढ़े 10 बजे गोधारा (पंचमहल जिले में) से हिरासत में लिया गया। ‘हिंदू-मुस्लिम एकता समिति’ ने एक बयान में पुलिस की इस कार्रवाई की निंदा की।

समिति ने बयान में कहा कि गुजरात सरकार के इस साल 15 अगस्त को अपनी क्षमा नीति के तहत मामले के 11 दोषियों को रिहा करने के बाद, पदयात्रा बिलकिस बानो से माफी मांगने के लिए आयोजित की जा रही थी। समिति ने बयान में कहा, हम जो कुछ भी हुआ उसके लिए बिलकिस से माफी मांगना चाहते थे और हमारी कामना है कि इस तरह के जघन्य कृत्य गुजरात में दोबारा न हों।

गोधरा कांड के बाद भड़के गुजरात दंगों के समय बिलकिस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं। दंगों के दौरान तीन मार्च 2002 को उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और उनकी तीन वर्ष की बेटी सहित उनके परिवार के सात लोग मारे गए थे।

मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपी गई थी और उच्चतम न्यायालय ने मुकदमे को महाराष्ट्र की एक अदालत में स्थानांतरित कर दिया था। मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इस सजा को बाद में बंबई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने भी बरकरार रखा था।

गुजरात सरकार की ‘क्षमा नीति’ के तहत इस साल 15 अगस्त को गोधरा उपजेल से 11 दोषियों की रिहाई ने जघन्य मामलों में इस तरह की राहत के मुद्दे पर बहस छेड़ दी है। रिहाई के समय दोषी जेल में 15 साल से अधिक समय काट चुके थे।(भाषा)
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