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Last Modified: मंगलवार, 19 अक्टूबर 2021 (00:24 IST)

कश्मीर घाटी में तालिबानी खतरे के उकसावे का जवाब क्या है

कश्मीर घाटी में तालिबानी खतरे के उकसावे का जवाब क्या है - What is the response to the provocation of the Talibani threat in the Kashmir Valley
कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन ने एक हिंदी समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा कि घाटी या वादी हाल के दिनों के घटनाक्रमों की जो रिपोर्टिंग भारतीय मीडिया के एक बड़े पॉकेट में की जा रही है, वह कुछ बढ़ा-चढ़ाकर भी की गई हो सकती है।अनुराधा भसीन कह रही हैं कि पलायन तो हो रहा है, लेकिन भगदड़ जैसे हालात नहीं हैं।

दूसरी तरफ़ अनुराधाजी यह भी कह रही हैं कि घाटी में काम कर रहे पत्रकारों को भी पुलिस के फोन आते रहते हैं।हो सकता है पुलिस ऐसा सही खबरें निकलने से बचाने के लिए कर रही हो। विदेशी मीडिया तो खैर मैनेज होता नहीं, मग़र भारत के मीडियाकर्मियों को विभिन्न दबावों में काम करना पड़ता है।खासकर घाटी के संदर्भ में। फिर भी यह ख़बर तो पुष्ट हो ही चुकी है कि अकेले इसी साल में अब तक वहां बीस नागरिक आतंकी गतिविधियों में मारे जा चुके हैं।

सिर्फ़ अक्टूबर माह में अब तक दस हत्याएं हो चुकी हैं, और उग्रवादियों से हुई विभिन्न मुठभेड़ों में नौ सुरक्षाकर्मी शहीद हुए हैं सो अलग।सनद रहे कि बराक ओबामा ने पहली बार जैसे ही अमेरिका की सत्ता सम्हाली थी, उन्होंने ऐलानिया कह दिया था कि अफगानिस्तान में अब अमेरिकी फौजों का काम पूरा हो चुका है। इसलिए उन्‍हें कभी भी वापस बुलाया जा सकता है।

अलहदा बात है कि तकनीकी कारणों के चलते तब ऐसा हो नहीं पाया था, लेकिन उसी समय जैश ए मोहम्मद के सरगना अजहर मसूद ने चेता दिया था कि जैसे ही अमेरिकी सेनाओं की अफ़ग़ानिस्तान से रवानगी होगी हम कश्मीर घाटी से भारतीय फौजों को खदेड़ना शुरू कर देंगे।इसी बीच अक्टूबर 16 को वादी में फिर दो अप्रवासी कश्मीरियों की हत्या कर दी गई, जबकि लोग केन्द्र सरकार की इस घोषणा को सुनते-सुनते ऊब गए हैं कि संविधान से अनुच्छेद 370  और 35ए के विलुप्त किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर की स्थितियां सामान्य होती जा रही हैं।

सवाल है कि यदि केंद्र सरकार का कथन सही है तो हाल में जब कुछ सैनिकों की सरहद पर एक साथ शहादत हुई, तब उसके तत्काल बाद गृहमंत्री अमित शाह को गोवा के एक कार्यक्रम में यह क्यों कहना पड़ा कि पाकिस्तान अपनी हदें पार न करे वरना दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक करनी पड़े। मीडिया में अब जो खबरें आ रही हैं वे वाकई चिंतनीय हैं। इन समाचारों में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर के पुंछ और राजौरी इलाकों में धीरे-धीरे अलकायदा तो अपनी जड़ें नहीं जमा रहा है।

बता देना उचित रहेगा कि अलकायदा उस वैश्विक प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन का नाम है जिसकी स्थापना ओसामा बिन लादेन ने की थी। इसी लादेन को 9/11 में न्यूयॉर्क ट्रेड सेंटर पर हुए आत्मघाती आतंकी हमले का मास्टर माइंड माना गया था। आगे चलकर जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उनके कार्यकाल में ही ओसामा बिन लादेन को अमेरिका के ड्रोन विमानों ने मार गिराया था। उस वक़्त लादेन पाकिस्तान की एक गुफा में छुपकर ऑपरेशन चला रहा था।

अमेरिका के उक्त विमानों ने ही लादेन की मृत देह को प्रशांत महासागर के हवाले कर उसका अंतिम संस्कार कर दिया था। रेखांकित किए जाने वाली बात यह है कि उसके पहले लादेन ने अपने फ्रेंच जीवनीकार को कहा था कि मैं यदि मर भी गया तो मेरे जैसे हजारों ओसामा बिन लादेन खड़े हो जाएंगे।इसी के आसपास लगभग बीस साल तक अफगानिस्तान में विशेष रूप से अमेरिका के ढाई लाख से ज़्यादा नियमित सैनिक, बम वर्षक और लड़ाकू विमान तैनात रहे, जिनकी वापसी की अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति जो. बाइडेन ने अचानक कर दी और अगस्त 31 तक तो ये फौजी अपने लगभग सभी टीम-टाम वहीं छोड़कर रवाना हो गईं।

अनेक रक्षा विशेषज्ञों ने तभी से सावधान करना शुरू कर दिया था कि अलकायदा और आईएस जैसे चरमपंथी संगठन फ़िर सिर उठा सकते हैं। आशंका व्यक्त की जा रही है कि हाल में कुंदूज और कंधार में आत्मघाती हमलों में जो अनगिनत शिया समुदाय के लोग मारे गए, उसके पीछे आईएस की खुरासान शाखा का हाथ था।सनद रहे कि पुंछ, राजौरी, जम्मू संभाग के तहत एलओसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) से सटे हुए हैं।

मीडिया के एक वर्ग की मानें तो सुरक्षा एजेंसियों की एक नादानी महंगी पड़ी। लगभग सात महीने पहले ही पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (पीए एफएफ) इंटरनेट मीडिया ने पुंछ और राजौरी जिलों में अपनी गतिविधियों को फिर से शुरू करने का ऐलान किया था, लेकिन सुरक्षाबल इस चेतावनी को फर्जी समझ बैठे।बताया जाता है कि पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट उन नए पांच-छह संगठनों में से एक गिना जाता है, जिनका गठन हाल के करीब दो सालों में हुआ है।

इस संगठन के साथ ही गजनवी फोर्स को जैश ए मोहम्मद का छठा संगठन और हिट स्क्वाड भी माना जाता है।बताया यह जा रहा है कि अलकायदा, तालिबान समर्थक अन्य आतंकी संगठनों का अफगानिस्तान पर क़ब्ज़े के बाद अगला मकसद कश्मीर में ज़ेहाद का है। इसीलिए ये संगठन धीरे-धीरे सीमावर्ती जिलों में अपना नेटवर्क बढ़ाना चाहते हैं।

माना यह भी जा रहा है कि उक्त संगठन के लड़ाके उत्तरी कश्मीर से घुसे, मग़र फ़िलहाल उनकी प्राथमिकता पुंछ और राजौरी जिले माने जा रहे हैं। ये सारे संगठन पाकिस्तान का मुखौटा भी माने जाते हैं और यह बारम्बार लिखा-कहा जा चुका है कि पाकिस्तान भले ही रोज़मर्रा की मुश्किलों से मुखातिब हो, लेकिन वह कश्मीर का राग अलापना छोड़ता ही नहीं।

वैसे, भारत के सैन्यबल पाकिस्तान के अलावा चीन की बॉर्डर पर प्वाइंट टू प्वाइंट नज़र रखे हुए हैं, लेकिन यह भी याद रखा जाना चाहिए कि तालिबान के कई नेता अब कश्मीर में हरकतें करते रहने की धमकियां देते रहे हैं। इन लोगों का तर्क रहा है कि कश्मीर के लोग हमारे भाई हैं और हम उनकी आज़ादी की लड़ाई में सहयोग क्यों नहीं करें। (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)
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