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Written By WD Feature Desk
Last Modified: शुक्रवार, 13 जून 2025 (17:14 IST)

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के 10 प्रेरणादायक विचार, जो जीवन को नई दिशा देते हैं

maithili sharan gupt ke vichar
Mailithili sharan gupt poetry: हिंदी कविता जगत में जिन महान कवियों ने राष्ट्रभक्ति, संस्कृति और मानवता को अपनी रचनाओं के माध्यम से जीवंत किया, उनमें मैथिलीशरण गुप्त का स्थान सर्वोपरि है। उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि ऐसे ही नहीं मिली थी, उनके शब्द, उनके विचार और उनकी कविताएं समाज के हर वर्ग को दिशा देती हैं। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने स्वतंत्रता आंदोलन के समय थे। उन्होंने अपने लेखन से न केवल भारत की आत्मा को स्वर दिया, बल्कि आम जीवन की जटिलताओं में भी स्पष्टता, साहस और कर्तव्य का बोध कराया। इस लेख में हम आपको मैथिलीशरण गुप्त के 10 विचारों से परिचित कराएंगे, जो जीवन की कठिन राहों में प्रेरणा के दीपक का काम करते हैं।
 
1. दुःख शोक, जब आ पड़े,
सो धैर्य पूर्वक सब सहो। 
होगी सफलता क्यों नहीं,
कर्तव्य-पथ पर दृढ़ रहो। 
 
2. भरा नहीं है भावों से,
जिसमें बहती रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
 
3. जिसे ना निज गौरव और वंश का अभिमान हो,
वह नर नहीं, नर-पशु निरा और मृतक समान हो।
 
4. स्त्री और पुरुष दोनों एक-दूजे के पूरक हैं,
कोई किसी से श्रेष्ठ नहीं, यही सच्चा विवेक है।
 
5. उन्नति के द्वार खोलती है, केवल कर्मशीलता।
जो सोया है भाग्य के सहारे, उसकी हार है निश्चित।
 
6. चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से
मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से
 
7. उत्सर्ग, प्रेम, सहानुभूति, करुणा ही सच्चा धर्म है।
जिसमें ये भाव न हों, वह धार्मिक कहलाने योग्य नहीं।
 
8. कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को
 
9. मस्तक ऊँचा हुआ मही का,
धन्य हिमालय का उत्कर्ष।
हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा,
भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष
 
10. मृषा मृत्यु का भय है
जीवन की ही जय है
जीवन ही जड़ जमा रहा है
नीत नव वैभव कमा रहा है
पिता पुत्र में समा रहा है
यह आत्मा अक्षय है
जीवन की ही जय है।
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