नई दिल्ली। सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों को चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में लागत मूल्य बढ़ने के बावजूद पेट्रोल और डीजल की कीमतों को स्थिर रखने की वजह से कुल 18,480 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा।
सार्वजनिक क्षेत्र की तीन तेल विपणन कंपनियों की तरफ से शेयर बाजारों को दी गई जानकारी के मुताबिक, अप्रैल-जून तिमाही में पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ाने की वजह से उनका घाटा काफी बढ़ गया। ऐसा उनके विपणन मार्जिन में गिरावट आने के कारण हुआ।
पेट्रोल-डीजल के अलावा घरेलू एलपीजी के विपणन मार्जिन में कमी आने से इन पेट्रोलियम कंपनियों को बीती तिमाही में हुआ तगड़ा रिफाइनिंग मार्जिन भी घाटे में जाने से नहीं बचा पाया।
इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC), हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (HPCL) और भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL) को लागत के अनुरूप पेट्रोल और डीजल की कीमतों में प्रतिदिन बदलाव करने का अधिकार मिला हुआ है लेकिन बढ़ती खुदरा मुद्रास्फीति के दबाव में चार महीने से पेट्रोलियम उत्पादों के दाम नहीं बढ़ाए गए हैं।
इस दौरान अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतें बढ़ने से इन कंपनियों की लागत भी बढ़ गई। इन कंपनियों ने रसोई गैस की एलपीजी दरों को भी लागत के अनुरूप नहीं बदला है।
आईओसी ने गत 29 जुलाई को कहा था कि अप्रैल-जून तिमाही में उसे 1,995.3 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ। एचपीसीएल ने भी गत शनिवार को इस तिमाही में रिकॉर्ड 10,196.94 करोड़ रुपए का घाटा होने की सूचना दी जो उसका किसी भी तिमाही में हुआ सर्वाधिक घाटा है। इसी तरह बीपीसीएल ने भी 6,290.8 करोड़ रुपए का घाटा दर्ज किया है।
इस तरह इन तीनों सार्वजनिक पेट्रोलियम विपणन कंपनियों को एक तिमाही में मिलकर कुल 18,480.27 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है जो किसी भी तिमाही के लिए अब तक का रिकॉर्ड है।
दरअसल आलोच्य तिमाही में आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल ने बढ़ती लागत के अनुरूप पेट्रोल और डीजल की कीमतों में संशोधन नहीं किया ताकि सरकार को सात प्रतिशत से अधिक चल रही मुद्रास्फीति पर काबू पाने में मदद मिल सके।
पहली तिमाही में कच्चे तेल का आयात औसतन 109 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के भाव पर किया गया था। हालांकि खुदरा बिक्री की दरों को लगभग 85-86 डॉलर प्रति बैरल की लागत के हिसाब से समायोजित किया गया था। इस तरह तेल कंपनियों को प्रति बैरल कच्चे तेल पर करीब 23-24 डॉलर का नुकसान खुद उठाना पड़ा।
आम तौर पर तेल कंपनियां आयात समरूपता दरों के आधार पर शोधित तेल कीमत की गणना करती हैं। लेकिन अगर विपणन खंड इसे आयात समरूपता दर से कम दाम पर बेचता है तो कंपनी को नुकसान उठाना पड़ता है।
हालांकि सरकार ने कहा है कि तेल कंपनियां खुदरा कीमतों में संशोधन के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन गत छह अप्रैल से अब तक खुदरा बिक्री दरों में कोई बदलाव नहीं किए जाने की ठोस वजह सरकार नहीं बता पाई है।
एक पहलू तो यह है कि राजनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण चुनावों से पहले तेल कीमतों को स्थिर रखा गया है। इन तीनों कंपनियों ने पिछले साल उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले दरों में संशोधन करना बंद कर दिया था। वह दौर 137 दिनों तक चला था और अप्रैल के पहले हफ्ते के बाद से फिर से चालू है।
हालांकि सरकार ने मई में पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती की थी लेकिन उसका लाभ खुदरा उपभोक्ताओं को मिला था। उत्पाद शुल्क में कटौती के कारण हुई कमी को छोड़कर पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर मौजूदा रोक अब 123 दिन पुरानी है।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने पिछले महीने एक रिपोर्ट में कहा था कि आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल ने पेट्रोल और डीजल को 12-14 रुपए प्रति लीटर के नुकसान पर बेचा जिससे तिमाही के दौरान उनका राजस्व प्रभावित हुआ। (भाषा)