क्या आप नहीं खोजेंगे सोने का शहर?
एलडोराडो की सोने की खदानों की तलाश आज भी जारी
सोना या कीमती वस्तुओं से लगाव, इंसान की पुरानी फितरत रही है। कहीं सोना गड़ा होने की खबर मिले तो इंसान सबकुछ छोड़कर वहाँ चला जाता है। और अगर एक शहर हो जहाँ हर चीज सोने की बनी हो तो क्या होगा?
इंसान की सोने के प्रति दिवानगी की इंतिहा का सबसे बड़ा नमूना है ‘एलडोराडो’ और उससे जुड़े किस्से-कहानियाँ। असल में मान्यता है कि दक्षिणी अमेरिका में स्थित एक गुप्त शहर ‘एलडोराडो’ पूरी तरह सोने से बना था। किसी जमाने में यह क्षेत्र सोने की खदानों और कीमती पत्थरों से भरा पड़ा था। हालत यह है कि आज भी लोग इस खजाने की तलाश में जाते हैं और अपनी जिंदगी हार जाते हैं। आखिर क्या है एलडोरेडो की सच्चाई -क्या है कहानी : कहानी की शुरुआत 1530 के आसपास होती है। म्यूएस्का जन-जाति में एक अजीब ही रिवाज था। वहाँ राजा नियुक्त से पहले एक धार्मिक अनुष्ठान किया जाता था, जिसके तहत एक जिंदा आदमी को सोने की चीजों से भरे गट्ठर के साथ पवित्र मानी जाने वाली गुआटाविटा झील में फेंक दिया जाता था। कहा जाता है कि वह पूरा क्षेत्र सोने की खदानों से भरा पड़ा था और यही कारण है कि इस तरह के अनुष्ठानों में सोने का भरपूर इस्तेमाल किया जाता था। पूरी प्रक्रिया इस तरह होती थी कि जनजाति के सभी लोग झील किनारे जमा होते थे। झील पर सैर के लिए बनाए जाने वाले गट्ठर पर सोना बिछाया जाता था। जिस व्यक्ति पर धार्मिक कार्य किया जाना होता था, उसे पूरी तरह से नग्न कर सोने से लाद दिया जाता था। इससे पहले उसके शरीर के बाल भी नोच लिए जाते थे। सभी लोग अपने सोने के आभूषण गट्ठर पर रख देते थे। इसके बाद गट्ठर को गहरी झील के बीचों-बीच लाया जाता था। गट्ठर पर अनुष्ठान पूरा कराने वाले चार धर्मगुरू भी आते थे। वे भी पूरी तरह से नग्न तथा स्वर्ण धूल से सने हुए होते थे। उधर, झील किनारे बैठे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे अंगीठियाँ जलाते थे, ताकि धूँए से सूर्य की रोशनी कम हो जाए। एक धर्मगुरू झँड़ा खड़ा करता था। इसका मतलब होता था कि अनुष्ठान शुरू होने वाला है, सभी शांत हो जाएँ। कुछ समय अनुष्ठान चलता था और बाद में सभी गट्ठर समेत झील में छलाँग लगा देते थे। माना जाता था कि यह प्रक्रिया पूरी होते ही देश को एक नया और समर्थ राजा मिल गया। म्यूएस्का जन-जाति के लोग अपने हर साम्राज्य में यह कार्य करते थे। (आगे पढ़िए..)
मान्यताएँ यह भी : इस तरह के आयोजन के बाद माना जाता था कि इलाके में सोने की और खदाने मिलेंगी। इस जन-जाति के लोग जहाँ जाते थे, वहाँ सबसे पहले सोने की उपलब्धता ही देखते थे। इनके लिए स्वर्ण देवीय गुणों से परिपूर्ण एक स्वर्गीय धातु थी जिसका इस्तेमाल वे अपने देवताओं की मूर्तियाँ बनाने, मंदिरों के शिखर पर तथा अन्य सामग्री बनाने के अधिकता से करते थे।