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Last Updated : रविवार, 9 मई 2021 (13:29 IST)

जज्बे को सलाम, रोज औसतन 40 मरीजों की सेवा करता है कोल्‍हापुर का जितेंद्र

जज्बे को सलाम, रोज औसतन 40 मरीजों की सेवा करता है कोल्‍हापुर का जितेंद्र - Jitendra of Kolhapur serves an average of 40 patients daily
नई दिल्ली। कोरोनावायरस (Coronavirus) के इस संकट में जहां बहुत से लोग दवाओं और अन्य जरूरी सामान को कई गुना ऊंचे दामों पर बेचकर मानवता को दागदार करने का काम कर रहे हैं, वहीं महाराष्ट्र के कोल्हापुर में ऑटो चलाने वाले जितेन्द्र शिंदे इसे मानव मात्र की सेवा का अवसर मानकर हर दिन औसतन 40 जरूरतमंदों को अस्पताल पहुंचाकर अपने मां-बाप की सेवा न कर पाने का मलाल कम कर रहे हैं।

जितेन्द्र शिंदे का फोन दिनभर घनघनाता है। कहीं किसी को अस्पताल जाना है तो जितेन्द्र उसे तत्काल अस्पताल पहुंचाते हैं, चाहे इसके लिए उन्हें कितनी भी दूर जाना पड़े, मरीज ठीक हो जाए तो उसे खुशी-खुशी उसके घर भी पहुंचाते हैं, बदकिस्मती से कोरोना से पीड़ित किसी मरीज की मौत हो जाए और उसकी मृत देह को शमशान पहुंचाने वाला कोई न हो तो जितेन्द्र उसे उसके अंतिम पड़ाव तक भी ले जाते हैं और उसके धर्म के अनुसार उसके अंतिम संस्कार की व्यवस्था करते हैं। यही नहीं प्रवासी मजदूरों को खाना खिलाने और उनकी घर वापसी में मदद के काम में भी जितेन्द्र बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

जितेन्द्र सिंह ने बताया कि वह मात्र 10 बरस के थे, जब उनके माता-पिता का देहांत हो गया। उन्हें इस बात का दुख हमेशा सालता रहा कि वे आखरी वक्त में अपने माता-पिता की सेवा नहीं कर पाए। कोरोना काल में उन्होंने मानवता की सेवा का बीड़ा उठाकर अपने दिल के इस बोझ को कम करने का प्रयास किया।

इस दौरान वे 15 हजार से ज्यादा मरीजों को अस्पताल पहुंचा चुके हैं, जिनमें एक हजार से ज्यादा कोरोना मरीज शामिल हैं। पिछले एक वर्ष में वे अपनी डेढ़ लाख रुपए की जमा पूंजी इस काम पर खर्च कर चुके हैं। इस दौरान वे 70 से अधिक गर्भवती महिलाओं और दिव्यांगजन को भी अपने ऑटो में अस्पताल पहुंचा चुके हैं।
हर दिन अपने ऑटो में 200 रुपए का ईंधन भरवाने वाले जितेन्द्र शिंदे से जब पूछा कि लोगों की नि:शुल्क सेवा करते हैं तो घर का खर्च कैसे चलता है, तो उन्होंने फोन अपनी पत्नी लता को थमा दिया। लता ने बताया कि वे घरों में खाना पकाने का काम करती हैं, उनकी बहू अस्पताल में काम करती हैं और घर चलाने में मदद करती हैं। लता बताती हैं कि छह लोगों के परिवार का खर्च वह मिलजुलकर चला लेते हैं और उनके पति दिन-रात जरूरतमंदों की सेवा करते हैं।
जितेन्द्र ने बताया कि वे पीपीई किट पहनकर मरीजों को लाने ले जाने का काम करते हैं। बहुत बार तो उनके साथी ऑटो चालक कोरोना होने के संदेह में उन्हें ऑटो स्टैंड पर ऑटो लगाने नहीं देते। अब वे हालांकि कोरोनारोधी टीके की दोनों खुराक ले चुके हैं, लेकिन कोरोना से बचाव के एहतियात में कोई कमी नहीं आने देते। मरीजों या सामान्य लोगों के बैठने से पहले और उतरने के बाद ऑटो को पूरी तरह से सैनिटाइज करते हैं और खुद भी पूरी सावधानी बरतते हैं।
मदद के इस सिलसिले की शुरुआत के बारे में पूछने पर शिंदे बताते हैं कि मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह में उन्हें एक प्रवासी मजदूर का फोन आया, जिसे कोरोना के लक्षण थे। शिंदे उसे तत्काल कोल्कापुर के सीपीआर अस्पताल ले गए। कुछ दिन बाद उसी व्यक्ति का फोन दोबारा आया और उसने बताया कि वह कोरोना को मात देने में कामयाब रहा।

इस एक कॉल के बाद शिंदे को वह सुकून मिल गया, जिसकी उन्हें बरसों से तलाश थी। फिर तो यह सिलसिला ही चल निकला। दिन हो या रात शिंदे मदद मांगने वाले को निराश नहीं करते और आपदा में फंसे किसी भी मजबूर की मदद करने का अवसर हाथ से जाने नहीं देते।(भाषा)
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