क्या आप जानते हैं नरगिस का पूरा नाम, कभी बनना चाहती थीं डॉक्टर
Nargis Dutt death anniversary: कलकत्ता शहर में एक जून 1929 को जन्मी कनीज फातिमा राशिद उर्फ नरगिस के घर में मां जद्दन बाई के अभिनेत्री और फिल्म निर्माता होने के कारण फिल्मी माहौल था। इसके बावजूद बचपन में नरगिस की अभिनय में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उनकी तमन्ना डॉक्टर बनने की थी जबकि उनकी मां चाहती थी कि वह अभिनेत्री बनें।
एक दिन नरगिस की मां ने उनसे स्क्रीन टेस्ट के लिए फिल्म निर्माता एवं निर्देशक महबूब खान के पास जाने को कहा। चूंकि नरगिस अभिनय क्षेत्र में जाने की इच्छुक नहीं थीं इसलिए उन्होंने सोचा कि यदि वह स्क्रीन टेस्ट में फेल हो जाती हैं तो उन्हें अभिनेत्री नहीं बनना पड़ेगा।
स्क्रीन टेस्ट के दौरान नरगिस ने अनमने ढंग से संवाद बोले और सोचा कि महबूब खान उन्हें स्क्रीन टेस्ट में फेल कर देंगे लेकिन उनका यह विचार गलत निकला। महबूब खान ने अपनी फिल्म 'तकदीर' के लिए उन्हें बतौर नायिका चुन लिया। हालांकि नरगिस को सिनेमा का हिस्सा बनने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। नरगिस एक डॉक्टर बनना चाहती थीं, क्योंकि उन्हें एहसास हुआ कि सिनेमा को प्रोफेशन के तौर पर काफी नीचा समझा जाता था।
नरगिस ने 1960 के दशक की शुरुआत में एक रेडियो इंटरव्यू के दौरान बताया था, मैं एक डॉक्टर बनना चाहती थी, क्योंकि उन दिनों लोग फिल्मों के बारे में बहुत ज्यादा नहीं सोचते थे। यह सोचा जाता था कि अच्छे परिवारों की लड़कियों को फिल्मों में शामिल नहीं होना चाहिए। फिल्मों में काम करने वाली महिलाओं का समाज में कोई स्थान नहीं था।
उन्होंने कहा था, मैं इस बात को लेकर तब तक रोई जब तक मैं और नहीं रो सकी, लेकिन जब आंसू छलक पड़े तो मैं और सोचने लगी। मैंने सोचा, मेरी मां फिल्मों में काम करती हैं, लेकिन वह बुरी नहीं है। वह दुनिया की सबसे शानदार महिला हैं।
वर्ष 1945 में नरगिस को महबूब खान द्वारा ही निर्मित फिल्म 'हुमाँयूं' में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1949 नरगिस के सिने करियर में अहम पड़ाव साबित हुआ। इस वर्ष उनकी बरसात और अंदाज जैसी सफल फिल्में रिलीज हुई। प्रेम त्रिकोण पर बनी फिल्म अंदाज में उनके साथ दिलीप कुमार और राजकपूर जैसे नामी अभिनेता थे इसके बावजूद भी नरगिस दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहीं।
वर्ष 1950 से 1954 तक का वक्त नरगिस के सिने करियर के लिए बुरा साबित हुआ। इस दौरान उनकी शीशा, बेवफा, आशियाना, अंबर, अनहोनी, शिकस्त, पापी, धुन, अंगारे जैसी कई फिल्में बॉक्स आफिस पर असफल हो गई। लेकिन वर्ष 1955 मे उनकी राज कपूर के साथ श्री 420 फिल्म रिलीज हुई जिसकी कामयाबी के बाद वह एक बार फिर से शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचीं।
नरगिस के सिने करियर मे उनकी जोड़ी राज कपूर के साथ काफी पसंद की गई। राज कपूर और नरगिस ने सबसे पहले वर्ष 1948 मे प्रदर्शित फिल्म आग मे एक साथ अभिनय किया था। इसके बाद दोनों ने बरसात, अंदाज, जान-पहचान, प्यार, आवारा, अनहोनी, आशियाना, आह, धुन, पापी, श्री 420, जागते रहो, चोरी चोरी जैसी कई फिल्मों में भी काम किया। वर्ष 1956 में प्रदर्शित फिल्म चोरी चोरी नरगिस और राजकपूर की जोड़ी वाली अंतिम फिल्म थी।
हालांकि राजकपूर की फिल्म 'जागते रहो' में भी नरगिस ने अतिथि कलाकार की भूमिका निभायी, इस फिल्म के अंत मे लता मंगेश्कर की आवाज में नरगिस पर 'जागो मोहन प्यारे' गाना फिल्माया गया था। वर्ष 1957 में महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया नरगिस के सिने करियर के साथ ही व्यक्तिगत जीवन मे भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इस फिल्म में नरगिस ने सुनील दत्त की मां का किरदार निभाया था।
मदर इंडिया की शूटिंग के दौरान नरगिस को आग से सुनील दत्त ने बचाया था। इस घटना के बाद नरगिस ने कहा था कि पुरानी नरगिस की मौत हो गई है और नई नरगिस का जन्म हुआ है। नरगिस ने अपनी उम्र और हैसियत की परवाह किए बिना सुनील दत्त को अपना जीवन साथी चुन लिया।
शादी के बाद नरगिस ने फिल्मों में काम करना कुछ कम कर दिया। करीब 10 वर्ष के बाद अपने भाई अनवर हुसैन और अख्तर हुसैन के कहने पर नरगिस ने 1967 में फिल्म 'रात और दिन' में काम किया। इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पहला मौका था जब किसी अभिनेत्री को राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था। नरगिस ने अपने सिने करियर में लगभग 55 फिल्मों में का किया।
नरगिस को अपने सिने करियर में मान-सम्मान बहुत मिला। उन्हें राज्यसभा सदस्य भी बनाया गया। अपने संजीदा अभिनय से सिनेमाप्रेमियों को भावविभोर करने वाली नरगिस 3 मई 1981 को सदा के लिए इस दुनिया से रुखसत हो गईं।