सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी रिव्यू: वरुण–जान्हवी की रोमकॉम बुरी तरह फ्लॉप, जानें क्यों स्किप करें
करण जौहर इन दिनों फैक्ट्री की तरह फिल्में बना रहे हैं। ऐसा लगता है मानो उनके ओटीटी प्लेटफॉर्म से कोई अनुबंध हो, जिसके तहत उन्हें तय संख्या में फिल्में हर साल देनी हों। क्वांटिटी के इस दबाव में क्वालिटी लगातार गिरती जा रही है। निर्देशक शशांक खेतान, वरुण धवन और जान्हवी कपूर जैसे कलाकार हमेशा करण के लिए आसानी से उपलब्ध रहते हैं और यही कारण है कि करण इन्हीं चेहरों को लेकर बार-बार फिल्में बनाने में जुटे रहते हैं।
शशांक खेतान और वरुण धवन की जोड़ी ने हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया (2014) और बद्रीनाथ की दुल्हनिया (2017) जैसी सफल रोमकॉम फिल्में दी हैं। लेकिन सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी इस बार पूरी तरह फ्लॉप रही। कहने को तो यह भी रोमांटिक कॉमेडी है, लेकिन न रोमांस दिल को छूता है और न ही कॉमेडी मुस्कान लाती है।
फिल्म की कहानी घिसी-पिटी है। सनी (वरुण धवन) का दिल अनन्या (सान्या मल्होत्रा) तोड़कर विक्रम (रोहित सराफ) से शादी करने का फैसला लेती है। दूसरी तरफ विक्रम तुलसी (जान्हवी कपूर) को छोड़कर अनन्या से शादी करना चाहता है। सनी और तुलसी दोनों अपने-अपने एक्स की शादी में पहुंचते हैं ताकि शादी रोककर उनका दिल फिर जीत सकें।
लेकिन यह सेटअप ही अविश्वसनीय है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि विक्रम और अनन्या अपनी शादी में तुलसी और सनी को शामिल होने क्यों देते हैं? फिल्म इसका कोई तार्किक कारण नहीं देती। कॉमेडी के नाम पर कुछ भी परोसा गया है, लेकिन सीन्स इतने कमजोर हैं कि कहानी की खामियां छिप नहीं पातीं।
फिल्म की ओपनिंग सीन में वरुण धवन को लेकर बाहुबली जैसा प्रसंग गढ़ा गया है, जो बेहद खराब है और शुरुआत से ही फिल्म का मूड बिगाड़ देता है। सनी और तुलसी के बीच रोमांस भी कृत्रिम लगता है क्योंकि स्क्रिप्ट उन्हें करीब लाने के लिए कोई दमदार सिचुएशन नहीं बनाती। नतीजा यह है कि उनके बीच का रिश्ता बनावटी और बेअसर लगता है।
सनी-अनन्या हो या विक्रम- तुलसी, कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि इनमें सच्चा प्यार है। फिर ऐसे हालात क्यों बनाए गए कि शादी तोड़ने के लिए ये इतनी मेहनत कर रहे हैं? स्क्रीनप्ले इस बिंदु को बिल्कुल भी जस्टिफाई नहीं कर पाता। वरुण का बार-बार मिडिल क्लास बैकग्राउंड बताना भी बनावटी है, जबकि उनके पिता ज्वैलरी शोरूम चलाते दिखाए गए हैं।
शशांक खेतान को बड़ा बजट और चमकदार सेट्स मिले। गानों की फिल्मांकन भव्यता दिखती है, लेकिन कमजोर लेखन और ढीला निर्देशन सब पर भारी पड़ता है।
अभिनय की बात करें तो वरुण धवन एनर्जी लाते जरूर हैं, लेकिन उनका परफॉर्मेंस बार-बार रिपीटेड लगता है। उन्हें रोल्स और एक्टिंग दोनों में वैरायटी लानी होगी। जान्हवी कपूर की एक्टिंग औसत है, जबकि सान्या मल्होत्रा पूरी तरह मिसकास्ट हैं। रोहित सराफ को अभिनय पर अभी बहुत मेहनत करनी होगी। मनीष पॉल कुछेक दृश्यों में थोड़ी हंसी जरूर दिलाते हैं। गानों में एक-दो अच्छे हैं और उनका पिक्चराइजेशन प्रभावी है, लेकिन वे फिल्म को बचा नहीं पाते।
सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी में न रोमांस है, न कॉमेडी और न ही कोई भावनात्मक जुड़ाव। यह फिल्म पूरी तरह समय की बर्बादी साबित होती है और इसे स्किप करना ही बेहतर है।