गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. PM Modi us visit : friendship of India and america
Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 20 जून 2023 (07:53 IST)

मोदी का अमेरिका दौराः भारत और अमेरिका की दोस्ती कहां तक जाएगी?

PM Modi and US President Joe biden
जेरेमी होवेल, बीबीसी न्यूज़
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाक़ात करेंगे। इससे पहले के कुछ साल, भारत और अमेरिका के बीच क़रीबी बढ़ने के साल थे।
 
अमेरिकी कांग्रेस की कमिटी का कहना है कि अमेरिका को भारत से पश्चिम के गठबंधन नाटो के सहयोगी ‘प्लस ग्रुप’ में शामिल होने के लिए कहना चाहिए। हालांकि भारत अमेरिका और पश्चिम का क़रीबी सहयोगी नहीं बनना चाहेगा। इसे समझने के लिए अतीत में भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते पर एक नज़र डालनी चाहिए।
 
भारत अमेरिका संबंधः अतीत की परछाई
साल 1947 में आज़ादी के बाद भारत ने अमेरिका से दूरी बना ली। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत ने सोवियत संघ के ख़िलाफ़ शीत युद्ध में अमेरिका का साथ देने से इनकार कर दिया। साल 1961 में उन्होंने भारत को गुटनिरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा बनाया जो कि तटस्थ विकासशील देशों का समूह था।
 
लंदन में विदेशी मामलों के थिंक टैंक चैटम हाउस के डॉ। जैमी शी का कहना है, “ब्रिटिश शासन से आज़ाद होने के बाद, भारत अब किसी और पश्चिमी देश के आदेश पर चलना नहीं चाहता था।”
 
भारत ने अमेरिका से हथियार ख़रीदे लेकिन जब 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ तो अमेरिका ने हथियारों की आपूर्ति करने से मना कर दिया। इसके बाद भारत ने रूस की ओर रुख़ किया।
 
इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फ़ॉर स्ट्रैटिजिक स्टडीज़ (आईआईएसएस) के अनुसार, मौजूदा समय में भारत की 90% बख़्तरबंद गाड़ियां, 69% लड़ाकू विमान और 44% युद्धपोत और पनडुब्बी रूसी निर्मित हैं।
 
हालांकि हाल के सालों में भारत ने अमेरिका के साथ कई सारे रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं और अमेरिकी हथियारों की ख़रीदारी की है।
 
बावजूद इसके, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब 2020 में भारत दौरे पर आए, तब मुक्त व्यापार समझौते के लिए प्रधानमंत्री मोदी को वो मना नहीं पाए। और इन सबके अलावा, भारत ने अन्य शक्तिशाली देशों से अपने दोस्ताना संबंध बनाए रखा है।
 
यूक्रेन पर हमले के लिए रूस की निंदा करने से भारत ने न केवल इनकार किया बल्कि मॉस्को पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध लगाने के बावजूद रूसी तेल ख़रीदना जारी रखा।
 
चीन के साथ व्यापार भी तेज़ी से बढ़ता जा रहा है और व्यापार में भारत का शीर्ष पार्टनर बनने के लिए चीन अमेरिका के साथ होड़ कर रहा है।
 
आईआईएसएस में दक्षिण एशिया मामलों के विश्लेषक विराज सोलंकी ने कहा, “भारत ने भिन्न-भिन्न मुद्दों पर अलग-अलग महाशक्तियों से अलग-अलग संबंध विकसित किए हैं, लेकिन वो किसी के साथ सहयोगी बनने का वादा नहीं करता है।”
 
भारत ने अमेरिका के साथ रिश्ते कैसे मज़बूत किए?
साल 2016 से भारत और अमेरिका ने चार रक्षा सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए। 2000 और 2021 के बीच भारत ने अमेरिका से 21 अरब डॉलर के सैन्य उपकरण ख़रीदे। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के क्वॉड समूह में भारत भी शामिल हुआ है।
 
सोलंकी का कहना है कि ऊपरी तौर पर तो क्वॉड का मक़सद हिंद और प्रशांत महासागरों में समुद्री रास्तों की सुरक्षा और व्यापार को बढ़ावा देना है लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर इसका मक़सद चीन पर अंकुश लगाना है।
 
वो कहते हैं, “दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर भारत की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं जबकि अमेरिका चीन के बढ़ते वैश्विक प्रभाव की काट ढूंढ रहा है।”
 
भारत का चीन के साथ कैसे संबंध हैं?
भारत और चीन के बीच संबंधों पर सीमा विवादों का असर रहा है। पूर्वी भारत के अरुणाचल प्रदेश के इलाक़े पर चीन अपना दावा करता है। जबकि चीन के साथ उत्तरी पश्चिमी से लगे अक्साई चिन इलाक़े पर भारत अपना दावा ठोंकता है।
 
इन इलाक़ों को लेकर 1962 में दोनों देशों के बीच युद्ध भी हो चुका है और 1967, 2013, 2017 और 2020 में सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़पें भी हुई हैं।
 
भविष्य में चीन के साथ टकराव की आशंका एक ऐसी वजह है, जिससे भारत अपने सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण कर रहा है और घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा दे रहा है, जिसके बारे में उसका दावा है कि 2025 तक इसका आकार 25 अरब डॉलर तक हो जाएगा।
 
चीन के साथ भारत की कटुता अन्य क्षेत्रों में दिखाई देती है। इसने बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल होने से इनकार कर दिया। ये चीन की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसके तहत पूरी दुनिया में नए बंदरगाह और यातायात लिंक के निर्माण किए जाने हैं ताकि वो अधिक से अधिक सामान निर्यात कर सके। भारत ने चीनी सोशल मीडिया ऐप टिक टॉक को भी बैन कर दिया है।
 
क्या भारत नाटो का सहयोगी बन सकता है?
एक अमेरिकी कांग्रेस कमिटी ने जून के शुरुआत में सिफ़ारिश की थी कि भारत को नाटो प्लस में शामिल होने के लिए निमंत्रित किया जाना चाहिए। ये अमेरिका की अगुवाई वाला ग्रुप है जिसमें नाटो के रक्षात्मक गठबंधन और 5 अन्य देश शामिल हैं- ऑस्ट्रेलिया, जापान, इसराइल, न्यूज़ीलैंड और दक्षिण कोरिया।
 
अमेरिका और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच सामरिक प्रतिस्पर्धा पर हाऊस सिलेक्ट कमिटी का कहना है कि अगर भारत इसमें शामिल होता है तो इससे चीन पर अंकुश लगाने और ग्रुप के अंदर ख़ुफ़िया सूचनाओं के आदान प्रदान में मदद मिलेगी।
 
हालांकि व्हाइट हाउस को दिया गया ये महज एक सुझाव भर है क्योंकि कांग्रेस कमिटी के पास अमेरिकी विदेश नीति निर्धारित करने का अधिकार नहीं है।
 
चीन ने नाटो को चेतावनी दी है कि वो हिंद-प्रशांत इलाक़े में और पार्टनर न बनाए। चीन के रक्षा मंत्री ली शांगफ़ू ने कहा कि ऐसा करने से झगड़े बढ़ेंगे और यह इलाक़ा ‘विवादों और टकरावों के भंवर’ में फंस जाएगा।
 
एसओएस यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन से जुड़ी डॉ. पल्लवी रॉय का कहना है कि भारत नाटो प्लस में शामिल होने को लेकर उदासीन है। वो कहती हैं, “नाटो को अभी रूस विरोधी संगठन के रूप में देखा जा रहा है और भारत रूस को अलग थलग नहीं करना चाहेगा।”
ये भी पढ़ें
जलवायु परिवर्तन क्या होता है, चाय बागान के मजदूरों से पूछिए