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Written By BBC Hindi
Last Modified: गुरुवार, 11 मई 2023 (07:55 IST)

इमरान खान की गिरफ्तारी से पाकिस्तान सेना का क्या ‘कनेक्शन’

इमरान खान की गिरफ्तारी से पाकिस्तान सेना का क्या ‘कनेक्शन’ - connection of Imran Khan arrest with Pakistan army
नितिन श्रीवास्तव, बीबीसी संवाददाता
Imran Khan News: इसी सोमवार यानी 8 मई की शाम इस्लामाबाद के सेक्टर G-5 इलाक़े में गतिविधियां एकाएक तेज़ हो गई थीं। इस इलाक़े को डिप्लोमैटिक एनक्लेव के नाम से जाता है जहां 40 से ज़्यादा देशों के दूतावास और हाई कमीशन हैं और यहां एंट्री के लिए विशेष पास की ज़रूरत होती है।
 
इसके भीतर एक प्राइम मिनिस्टर स्टाफ़ कॉलोनी है जिसके 'यूटिलिटी स्टोर' में उस शाम लगभग सभी ज़रूरी सामान ख़रीद लिया गया था।
 
दिल्ली स्थित एक बड़े पश्चिमी देश के दूतावास में काम करने वाली एक डिप्लोमैट ने नाम न लिए जाने की शर्त पर बताया, "वहां लगातार बात हो ही रही थी और जैसे ही पाकिस्तानी फ़ौज ने अपने और आईएसआई पर इमरान खान के लगाए हुए आरोपों को बेबुनियाद बताया, इस्लामाबाद डिप्लोमैटिक एनक्लेव में लोग किसी भी आशंका की तैयारी में जुट गए थे। मामला अब सीधे पाकिस्तानी फ़ौज से टकराव का जो था"।
 
9 मई को पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के प्रमुख इमरान खान लाहौर "फ़ौज से न डरने वाला हूँ, न देश छोड़ कर जाने वाला" सदेंश जारी करते हुए इस्लामाबाद हाईकोर्ट पहुंचे।
 
अगले चार घंटो के भीतर पाकिस्तान की नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो (नैब) ने उन्हें 'कमांडो स्टाइल' तरीक़े से अदालत के बायोमेट्रिक रूम के 'शीशे तोड़ते हुए' गिरफ़्तार कर लिया।
 
पाकिस्तान में नैब भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करती है और उसने बाद में जारी किए गए बयान में कहा, "इमरान खान को अल क़ादिर यूनिवर्सिटी ट्रस्ट मामले की जांच के बाद हिरासत में लिया है।"
 
पाकिस्तानी फ़ौज की भूमिका
एक तरफ़ हाईकोर्ट से पाकिस्तानी रेंजर्स द्वारा इमरान खान को 'अगवा' और 'गिरफ़्तार' किए जाने की खबरें आ रहीं थी दूसरी ओर उनके समर्थक सड़कों पर जमा हो रहे थे।
 
राजधानी इस्लामाबाद में बख्तरबंद गाड़ियों और पुलिस की बढ़ती तादाद के बीच इमरान के समर्थकों ने रावलपिंडी आर्मी मुख्यालय के एक हिस्से पर, लाहौर में एक फ़ौजी कमांडर के सरकारी घर पर और कई अन्य जगहों पर विरोध-प्रदर्शन जारी रखे, जिसमें तोड-फोड़ भी हुई।
 
ज़ाहिर है पूर्व प्रधानमंत्री इमरान की गिरफ़्तारी को शहबाज़ शरीफ़ के नेतृत्व वाली पाकिस्तानी सरकार से ज़्यादा पाकिस्तानी फ़ौज से जोड़ कर देखा जा रहा है।
 
इमरान खान को अल क़ादिर ट्रस्ट मामले में गिरफ़्तार किया गया है और भ्रष्टाचार के बड़े आरोप हैं। वैसे तो पाकिस्तान में बड़े राजनेताओं की गिरफ़्तारी या विशाल राजनीतिक प्रदर्शन पहले भी हुए हैं लेकिन फ़ौजी ठिकानों पर हिंसक विरोध प्रदर्शन पहली बार देखने को मिले हैं।
 
ग़ौरतलब है कि पाकिस्तानी फ़ौजों ने अभी तक प्रदर्शनकारियों या फ़ौजी ठिकानों पर हमला करने वाले इमरान-समर्थकों के साथ कड़ाई नहीं की है और न ही अपने संस्थानों की सुरक्षा बढ़ाई है।  
 
हालांकि बुधवार को पाकिस्तान सेना के जनसंपर्क विभाग ने एक बयान जारी कर कहा है कि सेना के ठिकानों पर तोड़फोड़ करने वाले लोगों की पहचान कर लिया गया है और उन पर क़ानून के तहत सख़्त कार्रवाई की जायेगी।
 
न्यूयॉर्क स्थित पाकिस्तानी लेखक, इतिहासकार और पत्रकार रज़ा अहमद रूमी को नहीं लगता कि सोशल मीडिया पर 'फ़ौज के कमज़ोर होने की खबरों में कोई दम है'।
 
उनके मुताबिक़, "पाकिस्तानी सैन्य कमांडरों के अपने-अपने नज़रिए हो सकते हैं लेकिन उनकी ताक़त आंतरिक अनुशासन है जो एक संस्थान तौर पर फ़ौज को मज़बूत करता है।"
 
सवाल फिर भी उठ रहे हैं कि दशकों से अपनी सख़्ती और सरकारों में नियमित दख़लअंदाजी के लिए जानी जाने वाली पाकिस्तानी सेना इतनी नरम क्यों दिख रही है?
 
इस पॉलिसी के पीछे फ़िलहाल तो तीन बड़ी वजह ही समझ में आती हैं। पहली ये कि फ़ौज का अंदेशा हो सकता है कि ये विरोध प्रदर्शन समय के साथ धीमे पड़ जाएंगे, इनका पैमाना सीमित हो जाएगा। पिछले कुछ सालों के इतिहास में जब पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ गिरफ़्तार होकर जेल गए थे तब भी शुरुआती दिनों में व्यापक रहे पीएमएल पार्टी के प्रदर्शन बाद में धीमे पड़ते दिखे थे।
 
हाल ही में बिलावल भुट्टो के साथ भारत दौरे पर आए नया दौर मीडिया के संपादक मुर्तज़ा सोलांगी के अनुसार, "क़ानून सबके लिए बराबर है और पाकिस्तान की अदालतें सभी को सुनवाई का मौक़ा भी देती हैं। क़ानून के तहत होने वाली किसी भी कार्रवाई या फ़ैसले को क़ानूनी तौर पर ही चुनौती देनी चाहिए और क़ानून को हाथ में लेना सही नहीं है"।
 
पाकिस्तानी सेना के मौजूदा रुख़ की दूसरी वजह ये भी हो सकती है कि पाकिस्तानी सेना प्रदर्शनकारियों के साथ हिंसक झड़पों से बचना चाह रही हो क्योंकि अगर ये मामला सड़कों पर खिंचा तो फ़ौज में भी इमरान की लोकप्रियता बढ़ने का ख़तरा हो सकता है।
 
जियो न्यूज़ के सम्पादक एज़ाज़ सईद ने इस्लामाबाद से बीबीसी हिंदी को बताया, "इमरान खान ने एक तरफ़ जनता द्वारा चुनी गई सरकार से बात करने से मना कर दिया है और दूसरी तरफ़ वे फ़ौज की आलोचना कर रहे हैं। इस पूरी प्रक्रिया में फ़ौज ने पहली बार ये खुल कर दोहराया है कि वो न्यूट्रल रहेगी। पाकिस्तानी सेना के अभी तक के एक्शन से भी यही दिखा है। रहा सवाल इमरान पर लगे आरोपों का तो हम सब को पता है कि चाहे भारत हो या पाकिस्तान, राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप सही भी होते हैं, ग़लत भी। फ़ैसला अदालत करेगी"।
 
तीसरी और आख़िरी वजह ये भी हो सकती है कि पाकिस्तानी सेना इमरान खान हिरासत मामले से अपना पल्ला इसलिए भी झाड़ रही हो क्योंकि कथित भ्रष्टाचार का ये मामला किसी फ़ौजी अदालत या बॉडी ने नहीं दायर किया है और नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो (नैब) एक असैनिक संस्था है।
 
इस तरह पाकिस्तानी सेना अपने को इमरान के उन कथित आरोपों से भी दूर रखना चाह रही है जिसमें उनकी पार्टी ने एक साल पहले सत्ता से बाहर होने की वजह उस समय के आर्मी चीफ़ जनरल क़मर जावेद बाजवा का "समर्थन खींच लेना" बताया था।  
 
इमरान खान और फ़ौज के रिश्ते
2018 में जब इमरान खान सत्ता में आकर प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने एक "नए पाकिस्तान" का वादा किया था।
हालांकि इमरान ने हमेशा इस बात को ख़ारिज किया है कि वे पाकिस्तानी सेना के 'ब्लू आइड बॉय' रहे हैं लेकिन कई जानकार राजनीति में उनके उत्थान को इससे जोड़ कर देखते हैं।
 
ख़ुद इमरान खान के मुताबिक़ उनकी सरकार और पाकिस्तानी फ़ौज में शुरुआती दो साल तक रिश्ते "हारमोनियस" या सामंजस्यपूर्ण रहे।
 
लेकिन 2021 आते-आते पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल फ़ैज़ अहमद और इमरान सरकार के बीच तनाव दिखा और उनके पदभार संभालने पर आर्मी चीफ़ बाजवा के साथ इमरान खान के ताल्लुकात कथित तौर पर "बिगड़ गए"।  
 
2022 में वायरल हुए एक वीडियो में तो इमरान खान ने यहां तक दावा किया कि "अगर उन्हें सत्ता से हटाने की कोशिश की गई तो वे ख़तरनाक हो जाएंगे"।
 
कुछ पाकिस्तान विश्लेषकों ने तभी कहा था कि इमरान खान का सीधा इशारा पाकिस्तान फ़ौज पर ही था।
 
यूनिवर्सिटी ऑफ़ वॉरिक में पाकिस्तान के समाजशास्त्र और सुरक्षा मामलों की असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ज़ोहा वसीम को लगता है कि, "मंगलवार को हुई ताज़ा कार्रवाई बिना पाकिस्तानी फ़ौज की पूरी इजाज़त के होना मुश्किल लगता है"।
 
उनके मुताबिक़, "भले ही पाकिस्तानी रेंजर्स की तैनाती राज्य सरकारों की रिक्वेस्ट पर और पाकिस्तान सरकार की रज़ामंदी से ही होती है लेकिन पाकिस्तान में पैरामिलिट्री फ़ोर्सेस पाकिस्तान आर्मी को ही रिपोर्ट करती हैं। पाकिस्तान रेंजर्स के सीनियर अफ़सर आर्मी से ही डेप्यूटेशन पर आते हैं और वापस जाकर उन्हें प्रमोशन भी मिलता है।" 
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