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Last Modified: शनिवार, 3 अगस्त 2019 (07:51 IST)

डोनाल्ड ट्रंप के ’कश्मीर राग’ का क्या है चीन कनेक्शन- नज़रिया

डोनाल्ड ट्रंप के ’कश्मीर राग’ का क्या है चीन कनेक्शन- नज़रिया - China connection of Donald Trump Kashmir interest
प्रोफेेसर मुक्तदर खान, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर कश्मीर मामले के समाधान के लिए मध्यस्थता की इच्छा जताई है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से मुलाक़ात के बाद ट्रंप ने कहा था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे मध्यस्थता करने की गुजारिश की थी।
 
भारत ने इस पर आपत्ति जताई थी और कहा था कि यह उसकी स्पष्ट नीति है कि इस मामले में पाकिस्तान के अलावा किसी और देश से वह बात नहीं करेगा।
 
अब पत्रकारों के सवालों के जवाब में ट्रंप ने कहा कि वह कश्मीर मसले के समाधान के लिए मध्यस्थता करने को तैयार हैं, बशर्ते भारत और पाकिस्तान इसके लिए तैयार हों।
 
भारत के विदेश मंत्री एस। जयशंकर ने अपने अमेरिकी समकक्ष माइक पोम्पियो से बातचीत में कह दिया कि कश्मीर पर यदि चर्चा होगी तो सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच। इस बार भले ही डोनल्ड ट्रंप का रुख़ थोड़ा बदला हुआ है मगर दिलचस्प बात है कि वह कश्मीर मामले पर बने हुए हैं।
 
यह कहा जा सकता है कि पहली बार उन्होंने इमरान ख़ान से मुलाक़ात के बाद इस संबंध में बयान दिया हो मगर दोबारा उन्होंने कम अंतराल पर इसे लेकर टिप्पणी की है।
 
वैसे डोनल्ड ट्रंप जो कहना चाहते हैं, वह कह देते हैं। जब से वह राष्ट्रपति बने हैं, तबसे सच और झूठ की दरार खत्म हो गई है। फ़ैंटसी और रिएलिटी, फैक्ट और फिक्शन का फर्क मिट गया है।
 
ट्रंप की अभिलाषा
दुनिया के बड़े विवादों में अगर रूस से जुड़े विवाद, जैसे कि यूक्रेन और क्रीमिया को अलग कर दिया जाए तो बचते हैं- कोरियाई प्रायद्वीप का विवाद, इसराइल-फ़लस्तीन का विवाद और कश्मीर मसला।
 
ट्रंप उत्तर कोरिया के साथ कई सम्मेलन रख चुके हैं और उनके दामाद जेरेड कुशनर फलस्तीन में शांति स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। जो रह गया है, वह है भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर का मसला। वह इसमें दखल दे रहे हैं। मुझे लगता है कि नोबेल पीस प्राइज़ लेने की कोशिश कर रहे हैं।
 
अक्टूबर 2017 में अमेरिका की नैशनल सिक्यॉरिटी स्ट्रैटिजी लॉन्च की गई थी। इसमें भारत को बड़ा महत्व दिया गया था। इसमें भारत के साथ गठजोड़ बनाने और इंडो-पैसिफिक इलाके पर फोकस रखने की बात की गई थी। ट्रंप प्रशासन के इस दस्तावेज़ में बार-बार दोहराया गया था कि अमरीका और भारत की रणनीतिक साझेदारी बहुत अहम है।
 
मगर चंद हफ्तों की हलचल पर नज़र डालें तो ऐसा नहीं लगता कि ट्रंप भारत को अभी भी उतनी अहमियत से देखते हैं, जितनी गंभीरता से उनका सिक्यॉरिटी डॉक्यूमेंट देखता है।
 
क्यों बने ऐसे हालात
ऐसा लगता है कि ट्रंप एक-आध बार और कश्मीर मसले पर कुछ कहेंगे और भारत उनकी पेशकश को खारिज कर देगा। अगर ट्रंप अपने सलाहकारों से इस मसले पर बात करते तो उन्हें मालूम होता है कि 1948 से ही भारत ने तय किया है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और दूसरे देशों को उसके आंतरिक मामलों में दख़ल देने का कोई अधिकार नहीं है।
 
भारत कहता रहा है कि यह मामला द्विपक्षीय यानी पाकिस्तान और उसके बीच ही हल होगा। वह इस मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण के सख़्त खिलाफ है। इस मसले पर अभी तक भारत-पाकिस्तान के बीच 1948, 1965 और 1999 में तीन युद्ध हो चुके हैं मगर यह हल नहीं हो पाया।
 
दरअसल भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते आजकल खराब हो चुके हैं और इसकी वजह है- व्यापार। यह सिलसिला तब शुरू हुआ जब ट्रंप प्रशासन ने भारत को ट्रेडिंग में दिया गया स्पेशल स्टेट खत्म कर दिया था।
 
चाइना एंगल
 
भारत और अमेरिका के बीच 150-160 बिलियन डॉलर का ट्रेड होता है। भारत की ओर से 100 बिलियन डॉलर का एक्सपोर्ट होता है जबकि अमेरिका भारत के लिए 50-60 बिलियन डॉलर का निर्यात करता है।
 
यह अजीब मसला बन गया है कि अमेरिका की ओर भारत का ट्रेड बैलेंस सकारात्मक रहता है और वह भी क़रीब 60 बिलियन डॉलर। मगर इस मामले में अमेरिका घाटे में रहता है।
 
ट्रंप मानते हैं कि घाटे की वजह यह है कि अमेरिका ने तो भारत के लिए आयात शुल्क कम रखा है मगर वह अमरीकी सामान पर बहुत ज़्यादा आयात शुल्क वसूलता है। इसके अलावा दूसरी बात यह है कि चीन को भारत व्यापार में छूट देता है मगर अमरीका को नहीं। उल्टा वह अमेरिका से छूट लेता है।
 
अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ कॉमर्स ऑफिस में भारत का अध्ययन करने वाले इस बात से नाखुश हैं। वे ट्रंप से कह चुके हैं कि भारत व्यापार के मामले में जहां चीन से नरमी से पेश आता है, वहीं अमेरिका के साथ सख़्ती से पेश आता है। इस तरह की चीज़ों से ट्रंप नाराज हो जाते हैं। वित्तीय घाटे को लेकर वह चीन से भी नाराज हैं।
 
मुझे लगता है कि इस कारोबारी असंतुलन के कारण ही वह कश्मीर का मसला खड़ा करके दबाब डालना चाह रहे हैं ताकि बदले में भारत से रियायतें ले सकें।
 
(मुक्तदर ख़ान अमरीका के डेलावेयर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर हैं। आलेख बीबीसी संवाददाता आदर्श राठौर से बातचीत पर आधारित।)
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