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बीजेपी सरकार के नए श्रम क़ानून से किसको फ़ायदा?

बीजेपी सरकार के नए श्रम क़ानून से किसको फ़ायदा? - Labor law
- गुरप्रीत सैनी
समाज के वो सभी वर्ग जो अब तक न्यूनतम मज़दूरी के दायरे से बाहर थे, विशेषकर असंगठित क्षेत्र। चाहे वो खेतिहर मज़दूर हों, ठेला चलाने वाले हों, सर पर बोझा उठाने वाले हों, घरों पर सफ़ाई या पुताई का काम करने वाले हों, ढाबों में काम करने वाले हों, घरों में काम करने वाली औरतें हों या चौकीदार हों। समस्त कार्यबल को नया श्रम क़ानून बनने के बाद न्यूनतम मज़दूरी का अधिकार मिल जाएगा।

श्रम और रोज़गार मामलों के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष कुमार गंगवार ने ये बात उस वक्त कही, जब मंगलवार को संसद के नीचले सदन लोकसभा में 'वेजेज़ कोड बिल' पास किया जा रहा था। सरकार का कहना है कि इस बिल से हर मज़दूर को न्यूनतम वेतन मिलना सुनिश्चित होगा। इसके अलावा वेतन के भुगतान में देरी की शिकायतें भी दूर होंगी। सरकार का कहना है कि ये बिल ऐतिहासिक है और बेहद पुराने हो चुके कई कानूनों की जगह लेने जा रहा है।

गंगवार के मुताबिक इस बिल से पचास करोड़ श्रमिकों को फ़ायदा मिलेगा। संगठित क्षेत्र के साथ-साथ असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को भी इसका फ़ायदा मिलेगा। उनका कहना है कि अब तक 60 प्रतिशत श्रमिक पुराने क़ानून के दायरे में नहीं थे। ध्वनिमत से पास किए गए इस बिल में मिनिमम वेजेज़ एक्ट, पेमेंट ऑफ वेजेज़ एक्ट, पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट और इक्वल रैम्यूनरेशन एक्ट सम्मिलित कर दिया गया है, लेकिन कई श्रम संगठन नए बिल का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि ये बिल श्रमिकों के नहीं, बल्कि उनके मालिकों के हित में है। वो इसे बीजेपी की कॉर्पोरेट सेक्टर को फ़ायदा पहुंचाने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं।

इस बिल के ख़िलाफ़ दो अगस्त यानी शुक्रवार को देशभर की ट्रेड यूनियन और सेंट्रल यूनियन विरोध प्रदर्शन कर रही है। बीबीसी ने जानने की कोशिश की कि ट्रेड यूनियन की आपत्तियां क्या हैं और वो किन मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की जनरल सेकेट्री अमरजीत कौर और न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव के जनरल सेकेट्री गौतम मोदी ने कहा कि बीजेपी सरकार श्रम क़ानून को बदलने की कोशिश कर रही है और ट्रेड यूनियन की मांग है कि बिल को वापस लिया जाए।

दरअसल 32 केंद्रीय श्रम क़ानूनों को चार कोड्स में समाहित किया जा रहा है। इसी के अंतर्गत कोड ऑफ वेजेज़ है जिसमें मेहनताने से जुड़े चार एक्ट समाहित हो रहे हैं। श्रम और रोज़गार मामलों के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष कुमार गंगवार ने कहा, कई बार लोगों को उनका वेतन और मेहनताना महीने के अंत में नहीं मिलता, कई बार तो दो-तीन तक नहीं मिलता। परिवार परेशान होता है। सभी को न्यूनतम मज़दूरी मिले और वो मज़दूरी वक्त पर मिले, ये हमारी सरकार की ज़िम्मेदारी है, जिसे हम इस बिल के ज़रिए सुनिश्चित कर रहे है।

मासिक वेतन वालों को अगले महीने की सात तारीख, साप्ताहिक आधार पर काम करने वाले को सप्ताह के अंतिम दिन और दिहाड़ी करने वालों को उसी दिन वेतन मिले, ये इस बिल में प्रावधान है। केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने परिक्षेत्र में न्यूनतम मज़दूरी की दरें तय करती हैं। अलग-अलग राज्यों में श्रमिकों का मेहनताना अलग-अलग है। लेकिन नए बिल में प्रावधान है कि एक फ्लोर वेज तय किया जाएगा, जिससे कम मेहनताना कहीं नहीं दिया जा सकेगा।

सरकार पावर अपने हाथ में लेना चाहती है : लेकिन न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव के जनरल सेकेट्री गौतम मोदी का कहना है, आज तक जो क़ानून के दायरे में है, ये सरकार उसे खींचकर अपने दायरे में ला रही है। ख़ासतौर से न्यूनतम वेतन के मुद्दे में सरकार पूरा पावर अपने हाथ में लेना चाह रही है। वो एक राष्ट्रीय वेतन तय करना चाह रही है और जो राष्ट्रीय वेतन उसने करने का कहा है 178 रुपए, वो काफ़ी कम है। वहीं ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की जनरल सेकेट्री अमरजीत कौर का कहना है कि 178 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से तो न्यूनतम वेतन 4628 मिलेगा। लेकिन हम ट्रेड यूनियन की मांग है कि न्यूनतम वेतन 18,000 हो। लेकिन सरकार इसे एक चौथाई पर लेकर आ रही है। हमारी मांगें मानने के बजाए वो नेशनल मिनिमम वेज फिक्स करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि सरकार का कहना है कि फ्लोर वेज त्रिपक्षीय वार्ता के ज़रिए तय किया जाएगा।

लोकसभा में गंगवार ने बताया कि श्रम मंत्रालय में कोई भी परिवर्तन करने के लिए सभी बड़े श्रमिक संगठन, नियोक्ताओं और राज्य सरकारों से पहले चर्चा करनी पड़ती है, ये होती है त्रिपक्षीय वार्ता। इसके बाद आम राय के साथ ही कोई भी परिवर्तन करना संभव होता है। उन्होंने बताया कि इस कोड पर भी त्रिपक्षीय वार्ता हुई थी, साथ ही इस वेज कोड का ड्राफ्ट 21 मार्च 2015 से 20 अप्रैल 2015 तक मंत्रालय की वेबसाइट पर पब्लिक डोमेन में डाला गया था। जिससे आम लोगों के सुझावों को भी बिल में शामिल किया गया है।

पिछली लोकसभा में भी 10 अगस्त 2017 को तत्कालीन श्रममंत्री बंडारू दत्तात्रय ने इस बिल को सदन में पेश किया था। जिसके बाद इसे किरिट सौमैया की अध्यक्षता वाली स्टेंडिग कमेटी के पास भेज दिया गया और 18 दिसंबर 2018 को कमेटी ने इस पर अपनी रिपोर्ट दी। सरकार के मुताबिक कमेटी के 24 में से 17 सुझावों को मान लिया गया। लेकिन अमरजीत कौर का आरोप है कि सरकार ने कोडिफिकेशन की प्रक्रिया में त्रिपक्षीय वार्ता को तरजीह नहीं दी।

उनका कहना है कि जिन कोड पर थोड़ी बहुत बात हुई भी थी, उन पर भी उनके किसी पक्ष को स्वीकार नहीं किया गया। वहीं गौतम मोदी कहते हैं कि सरकार की कोशिश है कि मालिक जो सुविधा मांग रहे हैं वो सुविधा उन्हें दी जा रही है। मज़दूरों का आज हक है कि वो अपनी ट्रेड यूनियन के माध्यम से शिकायत कर सकते हैं, लेकिन अब उसे रद्द किया जा रहा है। बीजेपी सरकार ये सब मालिक के हित में कर रही है। ये ना सिर्फ श्रमिकों के हित के खिलाफ है, बल्कि ये उन पर हमले की तरह है।

ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडिशन कोड : अमरजीत कौर कहती हैं, ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ कोड को तो अभी वेब पेज पर डाला था, अभी तो शुरुआती स्तर पर चर्चा हो रही थी। अभी तो चर्चा भी आगे नहीं बढ़ी है। वेज कोड के ज़रिए ये वेज को केलकुलेट करने का क्राइटेरिया बदल रहे हैं। 15वीं इंडियन लेबर कांफ्रेंस में क्राइटेरिया सेट किया गया था, उसे नज़रअंदाज़ किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में पूर्व में एक मामले आया था। जिसमें मांग थी कि इंडियन लेबर कांफ्रेंस ने जो क्राइटेरिया फिक्स किया था, उसमें 25 फ़ीसदी और जुड़ना चाहिए, ताकि वो परिवार की शिक्षा और दूसरी ज़रूरतों को पूरा कर सकें।

उसी के आधार पर सातवें वेतन आयोग ने 18000 रु वेतन केलकुलेट किया था। सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने 26,000 रुपए मांगा था। फिर उस कमिटी ने 21,000 रु तक मान लिया था। लेकिन भारत सरकार ने 18,000 रु घोषित कर नोटिफ़िकेशन निकाल दिया। सेंट्रल सरकार के कर्मचारियों का, जो कॉन्ट्रेक्ट या आउटसोर्स वर्कर हैं, उसके लिए 18,000 रुपए घोषित है और देश की सभी वर्कफ़ोर्स के लिए हमने 18,000 रुपए मांगा, तो उसको 5000 रुपये से नीचे लाया जा रहा है।

सरकार की ये दोहरी नीति तो है ही और वर्कफ़ोर्स को बाहर फेंकने का तरीका भी है। इसी के साथ जो इस वेज कोड के अंदर फिक्स टर्म इंप्लायमेंट आ गया है, इससे तो वेज कभी फिक्स ही नहीं हो पाएगी। क्योंकि आपने कह दिया कि आप पांच घंटे के लिए काम लें, कि दस घंटे के लिए, कि पांच दिन के लिए कि 10 दिन के लिए। उतने दिन का कॉन्ट्रेक्ट होगा तो वेतन केलकुलेट कैसे होगा। ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ को लेकर तेरह क़ानून थे, उसे मिलाकर एक जगह ला दिया गया। साथ में कह दिया है कि जिसके 10 कर्मचारी होंगे उसपर ही लागू होगा। इसका मतलब हुआ कि 93 प्रतिशत वर्कफ़ोर्स इसके बाहर है। वो लोग दिहाड़ी मज़दूर, कांट्रेक्ट वर्कर है।

सरकार को चाहिए था कि वो छूटे हुए श्रमिकों के लिए क़ानून लाए। लेकिन अब ऐसा कर दिया कि जो कवर में थे उनके लिए दिक्कत हो जाएगी और जो अनकवर थे वो तो अनकवर ही रहेंगे। झूठ बोला जा रहा है कि सभी को सेफ्टी और सिक्योरिटी मिल जाएगी। श्रमिकों का स्वास्थ्य ख़तरे पर आने वाला है, क्योंकि आप बीड़ी उद्योग के मज़दूर, पत्थर तोड़ने वाले मज़दूर, सीवर में उतरने वाले मज़दूर, एटोमिक एनर्जी या न्यूक्लियर प्लांट में काम करने वाले मज़दूर, खदान में काम करने वाले मज़दूर या बिजली प्रोडक्शन में काम करने वाले श्रमिक की तुलना नहीं कर सकते। सबकी कठनाइयां अलग-अलग हैं, उनकी बीमारियां, उनके इलाज अलग हैं। अब इन्होंने वर्क कंडीशन और वेलफ़ेयर दोनों को अलग-अलग कर दिया, वो कोड बहुत डेमेजिंग हैं।

कोड ऑन इंडस्ट्रियल रिलेशन : आईआर कोड में तो हड़ताल का हक छीन लिया जाएगा। हड़ताल के पहले की जो गतिविधियां हैं, उनके ऊपर भी अंकुश लगाने की बात है। अगर 50 प्रतिशत लोग केजुअल लीव ले लेते हैं और लीव लेकर हड़ताल करते हैं तो वो कह रहे हैं कि हम उसे भी हड़ताल मानेंगे और कार्रवाई करेंगे। अगर आप ग्रुप बनाकर ज्ञापन लेकर मेनेजमेंट के पास जाए, तो उसे भी व्यवधान माना जाएगा। उसकी भी इजाज़त नहीं होगी। धरने की इजाज़त नहीं होगी। ये लोग ट्रेड यूनियन का मुंह बंद करना चाहते हैं।

महिलाओं के लिए भी संशोधन ग़लत होने जा रहे हैं, जोख़िम भरे उद्योगों में महिलाओं को काम करने की इजाज़त दी जाएगी। फेक्ट्री और खदान में नाइट शिफ़्ट तो पहले से ही कर दिया गया था, अब कोड में भी डाल रहे हैं। साथ ही मौजूदा सोशल सिक्योरिटी के नॉर्म्स को ख़त्म करने की साजिश हो रही है। वित्तमंत्री ने कहा था कि इससे नियोक्ताओं को इनकम टैक्स फ़ाइल करना आसान हो जाएगा। इसका मतलब वर्कर के लिए नहीं नियोक्ता के लिए है ये कोड। सरकार इन बिलों को मौजूद सत्र में संसद से पास कराने की कोशिश करेगी।
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