वित्त वर्ष 2025-26 के पहले कारोबारी दिन यानी मंगलवार, 1 अप्रैल को भारतीय शेयर बाजार में भारी गिरावट देखने को मिली। सेंसेक्स में 1500 अंकों (लगभग 2%) से अधिक की गिरावट दर्ज की गई और यह 75,900 के स्तर पर कारोबार कर रहा है। वहीं, निफ्टी भी करीब 350 अंकों (लगभग 1.5%) की गिरावट के साथ 23,200 के स्तर पर पहुंच गया। यह इस साल की सबसे बड़ी एकदिवसीय गिरावट है। इससे पहले 28 फरवरी को सेंसेक्स में 1414 अंकों (1.90%) की गिरावट देखी गई थी। इस गिरावट ने निवेशकों के बीच चिंता बढ़ा दी है। आइए, इस गिरावट के कारणों और इसके प्रभावों का विश्लेषण करते हैं।
बाजार का हाल बेहाल: सेंसेक्स के 30 में से 29 शेयरों में गिरावट देखी गई, जिसमें HDFC बैंक, सनफार्मा, HCL टेक, इंफोसिस और बजाज फिनसर्व जैसे बड़े नामों में करीब 3% की गिरावट दर्ज की गई। निफ्टी के 50 में से 40 शेयर लाल निशान में रहे। सेक्टोरल इंडेक्स की बात करें तो रियल्टी में 3%, आईटी में 2.39% और फार्मा सेक्टर में 1.91% की गिरावट रही। यह दर्शाता है कि बाजार में बिकवाली का दबाव व्यापक स्तर पर है, खासकर उन सेक्टरों में जो वैश्विक व्यापार और निवेश पर निर्भर हैं।
वैश्विक बाजारों का मिश्रित रुख: ग्लोबल मार्केट में मिलाजुला रुख देखा गया। एशियाई बाजारों में जापान का निक्केई 0.58%, हॉन्गकॉन्ग का हैंगसेंग 0.96% और चीन का शंघाई कम्पोजिट 0.43% की बढ़त के साथ कारोबार कर रहा है। वहीं, 28 मार्च को अमेरिकी बाजार में डाओ जोंस 1% की तेजी के साथ 42,001 पर बंद हुआ, जबकि नैस्डेक में 0.14% की गिरावट और S&P 500 में 0.55% की बढ़त रही। यह मिश्रित प्रदर्शन वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता को दर्शाता है, जो भारतीय बाजार पर भी असर डाल रहा है।
निवेशकों का व्यवहार: FII बनाम DII; 28 मार्च को विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने 4,352.82 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जबकि घरेलू संस्थागत निवेशकों (DII) ने 7,646.49 करोड़ रुपये की खरीदारी की। पूरे मार्च महीने में FII ने 2,014.18 करोड़ रुपये की नेट खरीदारी की, वहीं DII ने 37,585.68 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे। यह आंकड़ा बताता है कि घरेलू निवेशक बाजार में विश्वास बनाए हुए हैं, लेकिन FII की बिकवाली दबाव का प्रमुख कारण बनी हुई है।
गिरावट के तीन प्रमुख कारण: ट्रम्प का रेसिप्रोकल टैरिफ: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पिछले महीने घोषणा की थी कि भारत जैसे देशों से आयात पर 100% से अधिक टैरिफ वसूलने की नीति के जवाब में अमेरिका भी ऐसा ही करेगा। 1 अप्रैल से यह टैरिफ लागू होने की संभावना है, जिसका असर भारतीय ऑटोमोबाइल, फार्मा और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर पड़ सकता है। यह नीति भारतीय निर्यात को प्रभावित कर सकती है, जिससे निवेशकों में घबराहट बढ़ी है।
FII की लगातार बिकवाली: विदेशी निवेशक पिछले कुछ समय से भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे हैं। मार्च में उनकी नेट खरीदारी के बावजूद, 28 मार्च को हुई भारी बिकवाली ने बाजार पर दबाव बढ़ाया। यह संभव है कि FII अन्य उभरते बाजारों या सुरक्षित निवेश विकल्पों की ओर रुख कर रहे हों, जिससे भारतीय शेयरों में गिरावट आई।
वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता: अमेरिकी GDP के 2025 की पहली तिमाही में 2.8% तक गिरने के अनुमान ने वैश्विक मंदी की आशंका को बल दिया है। इसके अलावा, तेल की बढ़ती कीमतें, मजबूत अमेरिकी डॉलर और भू-राजनीतिक तनाव ने निवेशकों का भरोसा कम किया है। यह अनिश्चितता भारतीय बाजार में अस्थिरता का कारण बन रही है।
यह गिरावट निश्चित रूप से चिंता का विषय है, लेकिन कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं। घरेलू निवेशकों की मजबूत खरीदारी बाजार में स्थिरता का संकेत देती है। वैश्विक बाजारों में मिश्रित रुख और अमेरिकी टैरिफ का असर अल्पकालिक हो सकता है, बशर्ते भारत सरकार और RBI इस दबाव को कम करने के लिए कदम उठाएं। हालांकि, अगर FII की बिकवाली जारी रही और वैश्विक मंदी गहराई, तो सेंसेक्स और निफ्टी में और गिरावट देखने को मिल सकती है।
सेक्टोरल स्तर पर, आईटी और फार्मा जैसे निर्यात-निर्भर क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है, जबकि रियल्टी में गिरावट घरेलू मांग में कमी का संकेत दे सकती है। निवेशकों को सलाह है कि वे अभी सतर्क रहें और गुणवत्तापूर्ण स्टॉक्स में लंबी अवधि के लिए निवेश पर ध्यान दें। बाजार में यह अस्थिरता खरीदारी का अवसर भी हो सकती है, बशर्ते निवेशक जोखिम का सही आकलन करें।
वित्त वर्ष 2025-26 की शुरुआत भारतीय शेयर बाजार के लिए चुनौतीपूर्ण रही है। ट्रम्प के टैरिफ, FII की बिकवाली और वैश्विक अनिश्चितता ने बाजार को प्रभावित किया है। हालांकि, मजबूत घरेलू निवेश और संभावित नीतिगत कदम इस गिरावट को सीमित कर सकते हैं। आने वाले दिनों में बाजार की दिशा वैश्विक संकेतों और सरकारी प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगी। निवेशकों के लिए यह समय धैर्य और रणनीति का है।