Refresh

This website hindi.webdunia.com/osho-quotes/osho-thoughts-120092000062_1.html is currently offline. Cloudflare's Always Online™ shows a snapshot of this web page from the Internet Archive's Wayback Machine. To check for the live version, click Refresh.

गुरुवार, 10 जुलाई 2025
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. ओशो वाणी
  3. ओशो वाणी
  4. osho thoughts
Written By

तुम जैसे हो, बस वैसे ही संतुष्ट हो जाओ -ओशो

osho
तुम जहां हो, वहीं से यात्रा शुरू करनी पड़ेगी। अब तुम बैठे मूलाधार में और सहस्रार की कल्पना करोगे, तो सब झूठ हो जाएगा। फिर इसमें दुखी होने का भी कारण नहीं, क्योंकि जो जहां है वहीं से यात्रा शुरू हो सकती है। इसमें चिंतित भी मत हो जाना कि अरे, दूसरे मुझसे आगे हैं, और मैं पीछे हूं! दूसरों से तुलना में भी मत पड़ना! नहीं तो और दुखी हो जाओगे। सदा अपनी स्‍थिति को समझो। और अपनी स्‍थिति के विपरीत स्‍थिति को पाने की आकांक्षा मत करो। अपनी स्‍थिति से राजी हो जाओ। तुमसे मैं कहना चाहता हूं। तुम अपनी नीरसता से राजी हो जाओ। तुम इससे बाहर निकलने की चेष्टा ही छोड़ो। तुम इसमें आसन जमाकर बैठ जाओ। तुम कहो- मैं नीरस हूं। तो मेरे भीतर फूल नहीं खिलेंगे, नहीं खिलेंगे, तो मेरे भीतर मरुस्थल होगा; मरुद्यान नहीं होगा, नहीं होगा।
 
मरुस्थल का भी अपना सौंदर्य है। मरुस्थल देखा है? मरुस्थल का भी अपना सन्नाटा है। मरुस्थल की भी फैली दूर-दूर तक अनंत सी‍माएं हैं- अपूर्व सौंदर्य को अपने में छिपाए है। मरुस्थल होने में कुछ बुराई नहीं। परमात्मा ने तुम्हारे भीतर अगर स्वयं को मरुस्थल होना चाहा है, बनाना चाहा है, तुम उसे स्वीकार कर लो। तुम्हें मेरी बात कठोर लगेगी, क्योंकि तुम चाहते हो कि जल्दी से गदगद हो जाओ। तुम चाहते हो कि कोई कुंजी दे दो, कोई सूत्र हाथ पकड़ा दो कि मैं भी रसपूर्ण हो जाऊं। लेकिन हो तुम विरस। तुम्हारी विरसता से रस की आकांक्षा पैदा होती है। आकांक्षा से द्वंद्व पैदा होता है। द्वंद्व से तुम और विरस हो जाओगे। तो मैं तुम्हें कुंजी दे रहा हूं। मैं तुमसे कह रहा हूं- तुम विरस हो, तो तुम विरस में डूब जाओ। तुम यही हो जाओ। तुम कहो- परमात्मा ने मुझे मरुस्थल बनाया तो मैं अहोभागी कि मुझे मरुस्थल की तरह चुना। तुम इसी में राजी हो जाओ। तुम भूलो गीत-गान। तुम भूलो गदगद होना। तुम छोड़ो ये सब बातें। तुम बिलकुल शुष्क ही रहो। तुम जरा चेष्टा मत करो, नहीं तो पाखंड होगा। ऊपर-ऊपर मुस्कुराओगे और भीतर-भीतर मरुस्थल होगा। ऊपर से फूल चिपका लोगे, भीतर से कांटे होंगे। तुम ऊपर से चिपकाना ही भूल जाओ। तुम तो जो भीतर हो, वही बाहर भी हो जाओ।
 
और तुमसे मैं कहता हूं- तब क्रांति घटेगी। अगर तुम अपने मरुस्थल होने से संतुष्ट हो जाओ, तो अचानक तुम पाओगे- मरुस्थल कहां खो गया, पता न चलेगा। अचानक तुम आंख खोलोगे और पाओगे कि हजार-हजार फूल खिले हैं। मरुस्थल तो खो गया, मरुद्यान हो गया!
 
संतोष मरुद्यान है। असंतोष मरुस्थल है। और तुम जब तक अपने मरुस्थल से असंतुष्ट रहोगे, मरुस्थल पैदा होता रहेगा। क्योंकि हर असंतोष नए मरुस्थल बनाता है।
 
तुम्हें मेरी बात समझ में आई? बाल उलटी है, लेकिन खयाल में आ जाए, तो कीमियां छिपी है उसमें। तुम जैसे हो, उससे अन्यथा होने की चेष्टा न करो। आंख में आंसू नहीं आते, क्या जरूरत है? सूखी हैं आंखें, सूखी भली। सूखी आंखों का भी मजा है। आंसू भरी आंखों का भी मजा है। और परमात्मा को सब तरह की आंखें चाहिए, क्योंकि परमात्मा वैविध्य में प्रकट होता है। तुम जैसे हो, बस वैसे ही संतुष्ट हो जाओ। और एक दिन तुम अचानक पाओगे कि सब बदल गया, सब रूपांतरित हो गया- जादू की तरह रूपांतरित हो गया!
 
आपने कहा- गदगद हो जाओ, रसविभोर हो जाओ, तल्लीन हो जाओ और जीवन को उत्सव ही उत्सव बना लो। 
ये भी पढ़ें
यूएन में पीएम मोदी और शी जिनपिंग ने कीं लगभग एक जैसी बातें