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Last Modified: गुरुवार, 2 जनवरी 2020 (20:48 IST)

कौन थे फैज अहमद फैज और क्यों मचा है उनकी नज्म पर बवाल?

कौन थे फैज अहमद फैज और क्यों मचा है उनकी नज्म पर बवाल? - Who is Faiz Ahmad Faiz and why there is controversy on his poem
नई दिल्ली। मशहूर पाकिस्तानी शायर फैज अहमद फैज (Faiz Ahmad Faiz) की नज्म 'हम देखेंगे' को लेकर इन दिनों भारत में बवाल मचा हुआ है। उनकी नज्म को हिन्दू विरोधी कहा जा रहा है। यहां तक कि आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) ने एक समिति गठित कर दी है, जो यह देखेगी कि फैज की यह रचना क्या वाकई हिन्दू विरोधी है। 
 
फैज की गिनती दुनिया के नामी शायरों में होती है। उनका जन्म 13 फरवरी, 1911 में पंजाब के सियालकोट जिले (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। फैज की शुरुआती शिक्षा उर्दू, अरबी तथा फारसी में हुई। उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री भी प्राप्त की थी। 
 
फैज ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हुए और सेवाएं भी दीं, लेकिन भारत विभाजन के समय उन्होंने इस्तीफा दे दिया और लाहौर (पाकिस्तान) लौट गए। वहां उन्होंने संपादन का कार्य भी किया। उन्होंने तत्कालीन पाकिस्तानी हुकूमत के खिलाफ भी आवाज बुलंद की। लियाकत अली सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के कारण उन पर तख्तापलट की साजिश के आरोप भी लगे। इसके चलते उन्हें 1951 से 1955 जेल में भी रहना पड़ा।
 
उन्हें पाकिस्तान से निष्कासित भी किया गया, लेकिन जुल्फिकार अली भुट्‍टो के विदेश मंत्री बनने के बाद उनकी वतन वापसी हुई। भुट्‍टो की फांसी के बाद फैज ने 1977 में सैन्य शासक जिया उल हक के शासन के खिलाफ ‘हम देखेंगे' नज्म लिखी थी। फैज को भुट्‍टो का करीबी माना जाता था। 
 
भारत में क्यों है विवाद : दरअसल, नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान आईआईटी कानपुर में उनकी रचना पढ़ी गई थी, जिसे हिन्दू विरोधी माना जा रहा है। इसकी जांच के लिए आईआईटी कानपुर ने एक समिति भी बनाई है, जो यह तय करेगी कि फैज की यह नज्म वाकई हिन्दू विरोधी है। 
 
दरअसल, इस नज्म की की कुछ लाइनों पर एक वर्ग को आपत्ति है। जैसे- 'सब बुत उठवाए जाएंगे और बस नाम रहेगा अल्लाह का' पंक्तियों पर गहरी आपत्ति है। बुत को जहां लोग मूर्ति से जोड़कर देख रहे हैं, वहीं बस नाम रहेगा अल्लाह से आशय यह लगाया जा रहा है कि सिर्फ इस्लाम रहेगा। हालांकि भारत के मशहूर शायर मुनव्वर राणा इसको स्पष्ट कर चुके हैं कि बुत का अर्थ खामोशी से है, वहीं अल्लाह का अर्थ यहां भगवान से है। 
 
 
फैज की रचना हम देखेंगे...
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिरां
रूई की तरह उड़ जाएंगे
हम महकूमों के पांव-तले
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएंगे
हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ाएब भी है हाज़िर भी
जो मंज़र भी है नाज़िर भी
उट्ठेगा अनल-हक़ का नारा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो
और राज करेगी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो
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