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Last Modified: नई दिल्ली , शुक्रवार, 9 अगस्त 2024 (23:32 IST)

हिजाब पर पाबंदी लगाने वाले सर्कुलर पर रोक, SC ने कॉलेज को लगाई फटकार, किया यह सवाल...

Supreme Court
Supreme Court stays circular banning hijab : उच्चतम न्यायालय ने हिजाब, बुर्का, टोपी और नकाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने संबंधी मुंबई के एक कॉलेज के परिपत्र पर शुक्रवार को रोक लगा दी और कहा कि छात्राओं को यह चयन करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वे क्या पहनें। पीठ ने एजुकेशन सोसाइटी को कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा कि क्या वह बिंदी और तिलक पर भी प्रतिबंध लगाएगी।
 
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने इस तरह का परिपत्र जारी करने के लिए ‘एन जी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज’ चलाने वाली ‘चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी’ को कड़ी फटकार लगाई और पूछा कि क्या वह बिंदी और तिलक पर भी प्रतिबंध लगाएगी।
 
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति कुमार ने सोसाइटी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान से पूछा कि इस तरह का परिपत्र जारी करके कॉलेज छात्राओं को कैसे सशक्त बना रहा है। न्यायमूर्ति कुमार ने कहा, महिलाओं को क्या पहनना है, यह बताकर आप उन्हें कैसे सशक्त बना रहे हैं?
कुमार ने कहा, मुझे लगता है कि जितना कम कहा जाए, उतना अच्छा है। महिलाओं की चयन की स्वतंत्रता कहां है? छात्राओं की यह चयन करने की स्वतंत्रता कहां है कि उन्हें क्या पहनना है? शैक्षणिक संस्थानों को छात्राओं पर यह निर्णय नहीं थोपना चाहिए कि उन्हें क्या पहनना है।
 
दीवान ने दलील दी कि कॉलेज एक सह-शिक्षा संस्थान है और इस निर्देश के पीछे की मंशा यह सुनिश्चित करना है कि छात्रों की धार्मिक आस्था उजागर न हो। वकील ने कहा कि यह परिपत्र हिजाब, बुर्का या नकाब तक सीमित नहीं है, बल्कि फटी जींस और ऐसे अन्य परिधानों तक भी लागू है।
 
इस दलील से पीठ प्रभावित नहीं हुई और न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, क्या छात्रों के नाम से उनकी धार्मिक पहचान उजागर नहीं होगी? धर्म उनके नाम में भी है। ऐसे नियम न थोपें। न्यायमूर्ति कुमार ने कहा, आपको अचानक यह तथ्य ज्ञात हुआ है कि वे इसे पहन रहे हैं और आप अचानक निर्देश दे रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। आजादी के इतने साल बाद आपको पता चला है कि इस देश में इतने सारे धर्म हैं।
पीठ ने सोसाइटी को नोटिस जारी किया और 18 नवंबर तक उसे जवाब देने को कहा। उसने आदेश दिया, हम विवादित परिपत्र के खंड दो पर आंशिक रूप से रोक लगाते हैं, जिसमें कहा गया है कि परिसर में हिजाब, टोपी या बैज पहनने की अनुमति नहीं होगी। हमें उम्मीद और भरोसा है कि इस अंतरिम आदेश का कोई दुरुपयोग नहीं करेगा।
 
पीठ ने आदेश के किसी भी दुरुपयोग की स्थिति में ‘एजुकेशनल सोसाइटी’ और कॉलेज को अदालत का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता दी। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्वेस और अधिवक्ता अबीहा जैदी ने दलील दी कि परिपत्र के कारण छात्राएं कक्षाओं में उपस्थित नहीं हो पा रहीं।
 
गोंसाल्वेस ने कहा कि छात्राएं पिछले चार साल से हिजाब पहन रही हैं और अब उन्हें कक्षाओं में आने से रोका जा रहा है। दीवान ने कहा कि मुस्लिम समुदाय की 441 छात्राएं हैं जो खुशी-खुशी कॉलेज में पढ़ रही हैं और उन्हें अपना बुर्का या हिजाब रखने के लिए लॉकर दिए गए हैं।
उन्होंने कहा, इन 441 लड़कियों में से किसी को भी कोई समस्या नहीं थी, सिवाय उन तीन लड़कियों के, जिन्होंने परिपत्र के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। अदालत ने वकील से कहा, आप सही हो सकती हैं, क्योंकि उनमें से कई अलग-अलग पृष्ठभूमि से संबंध रखती हैं। हो सकता है कि कुछ के परिवार के सदस्य उन्हें इसे पहनने के लिए कहें या वे इसे (अपनी इच्छा से) पहनें लेकिन सभी को एक साथ पढ़ने दें। इन नियमों को लागू न करें।
 
न्यायमूर्ति खन्ना ने उनसे कहा, आप इसे ऐसे नहीं बना सकते। इसका समाधान उचित, अच्छी शिक्षा है। हां, आप सही कह सकते हैं कि लड़कियों को कक्षा के अंदर बुर्का पहनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और परिसर में किसी भी धार्मिक गतिविधि की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
 
दीवान ने अदालत से कहा कि कॉलेज 2008 से अस्तित्व में है और बिना किसी सरकारी सहायता के संचालित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर संस्थान कुछ खास छात्राओं को हिजाब और नकाब पहनने की अनुमति देता है, तो वह दूसरों को भगवा शॉल और अपनी धार्मिक पहचान की प्रतीक अन्य पोशाक पहनकर आने से कैसे रोकेगा।
 
उन्होंने कहा, हम एक गैर-राजनीतिक, धार्मिक रूप से तटस्थ संस्थान हैं। हम केवल यह चाहते थे कि हिजाब या नकाब पहनना छात्राओं के लिए बातचीत में बाधा न बने। उन्होंने अदालत से उसकी स्वायत्तता न छीनने का आग्रह किया। न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब की अनुमति देने का बड़ा मुद्दा एक बड़ी पीठ के समक्ष विचाराधीन है।
उच्चतम न्यायालय ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर यह निर्णय सुनाया। उच्च न्यायालय ने कॉलेज के परिसर में हिजाब, बुर्का और नकाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय को बरकरार रखा था। बंबई उच्च न्यायालय ने हिजाब, बुर्का और नकाब पर प्रतिबंध लगाने के फैसले में हस्तक्षेप करने से 26 जून को इनकार कर दिया था और कहा था कि ऐसे नियम छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करते।
 
उच्च न्यायालय ने कहा था कि ‘ड्रेस कोड’ का उद्देश्य अनुशासन बनाए रखना है, जो कि शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और प्रशासन के लिए कॉलेज के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। शीर्ष अदालत ने शैक्षणिक संस्थानों द्वारा जारी किए गए ऐसे आदेशों की वैधता पर अभी अंतिम निर्णय नहीं लिया है।
 
उच्चतम न्यायालय की दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने 13 अक्टूबर, 2022 को कर्नाटक में उठे हिजाब विवाद को लेकर विरोधाभासी फैसला सुनाया था। भारतीय जनता पार्टी नीत तत्कालीन राज्य सरकार ने कर्नाटक के विद्यालयों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता (अब सेवानिवृत्त) ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिसमें प्रतिबंध हटाने से इनकार कर दिया गया था, जबकि न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने कहा था कि राज्य के विद्यालयों और महाविद्यालयों में कहीं भी हिजाब पहनने पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा।
 
कर्नाटक हिजाब विवाद पर फैसला लेने के लिए शीर्ष अदालत ने अभी तक किसी वृहद पीठ का गठन नहीं किया है। मुंबई कॉलेज के फैसले ने एक बार फिर इस अत्यंत विभाजनकारी मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है।(भाषा)
Edited By : Chetan Gour
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