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  4. RSS-BJP's demand to remove socialism-secularism from the preamble of the constitution is an agenda to make India a Hindu nation?
Last Updated : शनिवार, 28 जून 2025 (13:51 IST)

संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद-धर्मनिरपेक्ष हटाने की RSS-BJP की मांग क्या भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का एजेंडा?

Demand to remove socialism and secularism from the preamble of the constitution
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले देश में एक बार फिर संविधान का मुद्दा गर्मा गया है। आरएसएस के  दूसरे नंबर के नेता सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले के संविधान की प्रस्ताव में शामिल समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने की बात कहे जाने बाद भाजपा के सीनियर नेता और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के उनके समर्थन में आने के बाद अब पूरा मुद्दा गर्मा गया है। कांग्रेस ने संविधान की प्रस्ताव में शामिल समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने की भाजपा और आरएसएस की  मांग को संविधान बदलने की साजिश बता दिया है। संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने की मांग ऐसे समय की जा रही है जब देश में एक वर्ग भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग लगातार कर रहा है।

क्या बोले संघ सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले?- राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने संविधान की प्रस्तावना में बाद मे संविधान संशोधन कर जोड़े गए समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द समीक्षा की सलाह दी है।  उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी  और धर्मनिरपेक्ष शब्द आपातकाल के दौरान शामिल किये गए थे और ये कभी भी भीमराव आंबेडकर के संविधान का हिस्सा नहीं थे। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान जब मौलिक अधिकार नहीं थे, संसद काम नहीं कर रही थी, न्यायपालिका पंगु हो गई थी तब ये शब्द जोड़े गए और अब वक्त आ गया है कि  इसकी समीक्षा होनी चाहिए।

RSS के एजेंडे के साथ भाजपा-संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने की आरएसएस की मांग को भाजपा ने भी सपोर्ट किया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि आपाकाल में संविधान में जिस धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द को जोड़ा गया उसको हटाया जाए। मीडिया से  चर्चा में शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि सर्वधर्म समभाव ये भारतीय संस्कृति का मूल है, धर्मनिरपेक्ष हमारी संस्कृति का मूल नहीं है और इसलिए इस पर जरूर विचार होना चाहिए कि आपातकाल में जिस धर्मनिरपेक्ष शब्द को जोड़ा गया उसको हटाया जाए।

दूसरी बात है समाजवाद की आत्मवत सर्वभूतेषु अपने जैसा सबको मानो ये भारत का मूल विचार है "अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्" यह सारी दुनिया ही एक परिवार है, यह भारत का मूल भाव है। जियो और जीने दो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो, सर्वे भवन्तु सुखिना सर्वे संतु निरामया ये भारत का मूल भाव है और इसलिए यहां समाजवाद की जरूरत नहीं है।*हम तो वर्षों पहले से कह रहे हैं, सियाराम मय सब जग जानी, सबको एक जैसा मानो इसलिए समाजवाद शब्द की भी आवश्यकता नहीं है, देश को इस पर निश्चित तौर पर विचार करना चाहिए।

कांग्रेस ने बताया संविधान बदलने की साजिश- संविधान की प्रस्ताव से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने की आरएसएस और भाजपा की मांग पर अब सियासत गर्म हो गई है। कांग्रेस ने इसे संविधान बदलने की साजिश बताया है। कांग्रेस ने कहा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेता खुलकर कह रहे थे कि हमें संविधान बदलने के लिए संसद में 400 से ज्यादा सीट चाहिए, अब एक बार फिर वे अपनी साजिशों में लग गए हैं। वहीं लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने कहा आरएसएस का नकाब फिर से उतर गया, संविधान इन्हें चुभता है क्योंकि वो समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है बीजेपी-आरएसएस को संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहिए. ये बहुजनों और गरीबों से उनके अधिकार छीनकर उन्हें दोबारा गुलाम बनाना चाहते हैं। संविधान जैसा ताकतवर हथियार उनसे छीनना इनका असली एजेंडा है, आरएसएस ये सपना देखना बंद करे. हम उन्हें कभी सफल नहीं होने देंगे. हर देशभक्त भारतीय आखिरी दम तक संविधान की रक्षा करेगा।

समाजवाद,धर्मनिरपेक्षता संविधान की मूल भावना- संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने की मांग और इस पर छिड़े सियासी घमासान पर संविधान विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि जब संविधान में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं भी जोड़े गए थे तब भी संविधान की मूल भावना सेक्युलरिज्म पर ही आधरित थी। हमारे मूल संविधान की प्रकृति और उसमें निहित मूल भावना और उसमें शामिल मौलिक अधिकार, नीति निर्देशक तत्व ही स्टेट का कैरेक्टर सेक्युलर और वेलफेयर स्टेट बनाता था और बाद में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द को जोड़ककर उसी मूल भावना पर और बल दिया गया है।

रामदत्त त्रिपाठी आगे कहते है कि हमारे संविधान सभा और संविधान निर्माताओं ने जो लक्ष्य निर्धारित किए थे वह एक सेक्युलर की परिकल्पना को साकार करता है, संविधान में साफ था स्टेट का कोई धर्म नहीं होगा  और राज्य किसी धर्म विशेष का फेवर नहीं करेगा और जो व्यवस्था होगी वह समाजवादी होगी। संविधान के मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व में ही निहित है कि किसी के साथ पक्षपात नहीं होगा, भाषा, धर्म और संस्कृति के संरक्षण के प्रोविजन पहले से ही है। पूरा संविधान पहले से उसकी भावना का था,अगर समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं जोड़ते थे तब भी भारत सेक्युलर स्टेट था। संविधान की मूल उद्देश्यिका रखी थी उसमे पहले से ही यह सब निहित है।     

जहां तक समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने की भाजपा औ आरएसएस की मांग का सवाल है तो यह विवाद पहले भी रहा है। संघ पहले भी इस पर अपनी आपत्ति जता चुका है और इसकी मांग पहले से करता रहा है। भाजपा और आरएसएस जैसे ताकतवर होता जा रहा है वह अपने मूल एजेंडे पर आ रहे है और वह हिंदुस्तान को एक धर्म विशेष वाला राज्य बनाना चाहते है। आज आरएसएस और भाजपा एक जनमत निर्माण कर रही है लेकिन कांग्रेस इसमें पिछड़ रही है।