दिल्ली में डॉक्टरों को नहीं मिल रहा वेतन, करना पड़ रहा वित्तीय संकट का सामना
नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में कई डॉक्टरों को वेतन न मिलने से उन्हें वित्तीय संकट से जूझना पड़ रहा है। यहां स्थित कस्तूरबा अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मारुति सिन्हा ने कहा कि उनके बेटे ने चिकित्सा की पढ़ाई के लिए प्रतिष्ठित कॉलेज की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है लेकिन वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए वह उसकी पढ़ाई का खर्च उठा पाएंगी या नहीं इस पर संशय है।
उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा संचालित हिन्दू राव, कस्तूरबा और राजेन बाबू टीबी अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि उन्हें वेतन नहीं मिला है और अब वे तनाव तथा वित्तीय परेशानियों से जूझ रहे हैं।
इन तीनों अस्पतालों के रेजिडेंट डॉक्टरों ने जंतर-मंतर पर शुक्रवार को विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था जिसमें डॉ. सिन्हा ने भी भाग लिया। सिन्हा ने कहा कि हम डॉक्टर हड़ताल पर नहीं जाना चाहते। यह अंतिम विकल्प होता है।
उन्होंने कहा कि मैं स्थाई डॉक्टर हूं और हमारी मांग पूरी न होने पर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन डॉक्टर एसोसिएशन ने सोमवार से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का आह्वान किया है। रेजिडेंट डॉक्टरों को कम से कम जुलाई का वेतन मिला, लेकिन हमें 3 महीने से कुछ नहीं मिला। सिन्हा एमसीडीए की महासचिव हैं।
एमसीडीए, निकाय द्वारा संचालित अस्पतालों के वरिष्ठ स्थाई डॉक्टरों का संघ है और इसकी स्थापना 1974 में हुई थी। दिल्ली में निकाय द्वारा संचालित अस्पतालों में लंबित वेतन का संकट गहराने के साथ ही कई चिकित्सकों का कहना है कि वे महामारी से मुकाबला कर सकते हैं, लेकिन कोरोना योद्धा खाली पेट नहीं लड़ सकते।
स्वामी दयानंद अस्पताल के डॉ. केपी रेवानी ने कहा, वेतन के बिना हमारी सारी योजनाएं रुक गई हैं। उन्होंने कहा, हमारे बच्चों की ट्यूशन फीस, ईएमआई, कर्ज का भुगतान, कार के ऋण का भुगतान, घर का ऋण, यह सब कैसे चुकाएंगे? क्या थाली बजाने और हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा करने से परिवार का पेट भरेगा?
एमसीडीए के अध्यक्ष आरआर गौतम ने कहा कि समाज उन्हें भगवान मानता है, लेकिन लोगों को समझना चाहिए कि डॉक्टर भी इंसान होते हैं। (भाषा)