Last Modified: नई दिल्ली (भाषा) ,
बुधवार, 5 दिसंबर 2007 (20:26 IST)
'आंतरिक सुरक्षा की स्थिति चुनौतीपूर्ण'
देश आंतरिक सुरक्षा स्थिति को लोकसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने ही चुनौतीपूर्ण बताया, लेकिन इससे मुकाबले के लिए विपक्ष ने जहाँ पोटा जैसे कड़े कानून की वकालत की, वहीं सत्ता पक्ष ने इसे निरर्थक करार देते हुए कहा कि मौजूदा प्रावधानों का ईमानदारी से पालन कर बुराई से निबटा जा सकता है।
आतंकवाद के प्रति नरम रवैया अपनाने का केन्द्र सरकार पर आरोप लगाते हुए भाजपा ने कहा कि पोटा कानून को समाप्त कर इस सरकार ने देश के साथ विश्वासघात किया है।
आतंरिक सुरक्षा पर सदन में अल्पकालिक चर्चा की शुरुआत करते हुए भाजपा के उप नेता विजय कुमार मल्होत्रा ने आरोप लगाया कि यह सरकार आतंकवाद के प्रति नरम है और उसमें आतंकवाद से लड़ने की इच्छाशक्ति का अभाव है।
मल्होत्रा ने सरकार पर आरोप लगाया कि वोट बैंक की राजनीति की खातिर पोटा कानून को समाप्त कर सरकार ने देश के साथ बड़ा विश्वासघात किया है और आने वाली पीढ़ी उसे कभी माफ नहीं करेगी।
उन्होंने संसद पर हमले के मामले में अफजल गुरु को तत्काल फाँसी देने, वित्तीय गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखने और मदरसों का पंजीकरण करने की माँग की।
इसके उलट सत्तारूढ़ कांग्रेस के निखिल कुमार ने सवाल उठाया कि पोटा जैसे कड़े कानून ने आतंकवादी घटनाओं को रोकने में कितनी मदद की। उन्होंने कहा कि ईमानदार प्रयास किए जाएँ तो मौजूदा कानूनों से ही इस बुराई से मुकाबला किया जा सकता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में विकासहीनता को नक्सलवाद की समस्या की जड़ बताते हुए उन्होंने कहा कि शासन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने और ग्रामीण जनता की शिकायतों के निवारण के लिए सब डिवीजन स्तर पर जन अदालतों के गठन की आवश्यकता है।
संप्रग सरकार को बाहर से समर्थन दे रही माकपा के मोहम्मद सलीम ने आंतरिक सुरक्षा की चुनौती से निबटने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाए जाने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि देश के हर हिस्से का जोखिम विश्लेषण उस तर्ज पर किया जाना चाहिए जैसे अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों को होने वाले खतरे का आकलन किया जाता है।
माओवाद को आतंरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बताते हुए उन्होंने कहा कि इससे राजनीतिक और चुनावी लाभ-हानि के गणित से ऊपर मुकाबला करना होगा। चर्चा अधूरी रही।