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Russia-Ukraine conflict: विश्‍व समुदाय संभले, अन्यथा बहुत देर हो जाएगी

Russia-Ukraine conflict: विश्‍व समुदाय संभले, अन्यथा बहुत देर हो जाएगी - The world community rests, otherwise it will be late
रूस द्वारा युक्रेन पर हमला भयभीत अवश्य करता है किंतु इसमें हैरत की कोई बात नहीं। हैरत केवल उन्हें होगी जो मान रहे थे कि अमेरिका और पश्चिमी देश रूस की घेराबंदी के लिए आरोपित कर रहे हैं।

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के नेतृत्व में रूस जिस दिशा में बढ़ रहा था उसकी स्वाभाविक परिणति यूक्रेन पर हमला ही थी।

इतनी भारी संख्या में सैनिकों की लामबंदी, आक्रामक युद्धाभ्यास, परमाणु युद्ध अभ्यास, पूर्वी यूक्रेन के हथियारबंद अलगाववादी नेताओं को हर तरह का समर्थन आदि दुनिया के सामने था।

अंततः पुतिन ने अपनी योजना के अनुसार यूक्रेन के दो श्रेत्रों दोनेत्स्क और  लुहान्स्क को स्वतंत्र घोषित कर उसे मान्यता भी प्रदान कर दी। इसके बाद इन देशों की रक्षा के नाम पर वहां सैनिक हस्तक्षेप का आधार उन्होंने तैयार कर लिया। हमले के बाद पुतिन ने कहा कि रूस की सेना का विशेष ऑपरेशन आरंभ हो रहा है जिसका उद्देश्य यूक्रेन से उसकी सेना को हटाना है। उनकी भाषा बिल्कुल अल्टीमेटम की है कि यूक्रेन की सेना हथियार डाल दे और अपने घर लौट जाए।

दूसरी ओर उन्होंने यूक्रेन के समर्थन में खड़े देशों को भी चेतावनी दी कि अगर उन्होंने किसी तरह का हस्तक्षेप किया तो परिणाम ऐसे होंगे जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की होगी।

कल्पना कर सकते हैं कि पुतिन ने किस दृढ़ता के साथ तैयारी की हुई है। ऐसा नहीं है कि यहां तक पहुंचने के पहले उन्होंने विश्व स्तर पर इसकी प्रतिक्रियाओं और अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के कदमों आदि का आकलन नहीं किया होगा। उन्हें पता है कि रूस इसके बाद प्रतिबंधित होगा। तो उस प्रतिबंध के बारे में भी उन्होंने सोचा होगा और उनके चरित्र को जानने वाले मानेंगे कि इसके जवाब की भी उन्होंने पूरी तैयारी की होगी।

यूक्रेन का क्या होगा और रूस किस सीमा तक सैन्य अभियान को ले जाएगा इसके बारे में हम आप केवल अनुमान लगा सकते हैं। पहले पूरी स्थिति को देखिए।

अमेरिका और नाटो के देश बार-बार रूस को चेतावनी देते रहे पर पुतिन इससे अप्रभावित रहे। अंततः यूक्रेन पर हमला हो गया और कोई देश यूक्रेन की मदद में उस रूप में आगे नहीं आया जिस प्रकार का भीषण हमला उसे झेलना पड़ रहा है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ की विवशता देखिए। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस कह रहे हैं कि हमने सोचा ही नहीं था कि रूस इस तरह हमले कर सकता है। हम आश्वस्त थे कि ऐसा नहीं होगा।

उन्होंने गिड़गिड़ाते हुए रूस से अपनी सेना वापस बुलाने की अपील की। अपील से अगर पुतिन को प्रभावित होना होता तो वे इस प्रकार की कार्रवाई करते ही नहीं। सच कहा जाए तो पूरा दृश्य विश्व के भविष्य की दृष्टि से आतंकित करने वाला है।

सैन्य शक्ति की बदौलत कोई देश इस तरह की कार्रवाई करें और उसे रोकने के लिए विश्व स्तर पर कहीं से भी पहल नहीं हो तो आगे क्या होगा, इसकी कल्पना से ही सिहरन पैदा होती है।

मामला चाहे जितना पेचीदा हो यह समाधान का तरीका नहीं हो सकता। इससे जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली विश्व व्यवस्था हो जाएगी।

ऐसा नहीं है कि यूक्रेन बिल्कुल युद्ध करने या रूस को जवाब देने की स्थिति में नहीं है। वह बिल्कुल कमजोर देश नहीं है। बावजूद रूस जैसे सैन्य महाशक्ति से मुकाबला उसके लिए असंभव है।

सच कहें तो यूक्रेन अकेले रूस जैसी महाशक्ति के समक्ष नहीं टिक सकता। उसमें भी तब जब उसके दो महत्वपूर्ण क्षेत्र व्यवहारिक रूप से रूस के नियंत्रण में हैं। भले वे स्वतंत्र घोषित किए गए हैं लेकिन उनकी स्वतंत्रता ही नहीं पूरी सैन्य नीति पुतिन के हाथों है।

इसके अलावा बेलारूस में रूस पूरी युद्धक विमानों और सामग्रियों के साथ लंबे समय से मौजूद है। वहां उसका युद्धाभ्यास चल रहा है जिसमें परमाणु युद्धाभ्यास भी शामिल है। अमेरिका और यूरोपीय देश केवल धमकियों तक सीमित है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन शाब्दिक हमले कर रहे हैं कि वे और उनके सहयोगी देश माकूल जवाब देंगे। वह क्या जवाब दे सकते हैं?

विश्व का दुर्भाग्य देखिए कि व्लादिमीर पुतिन साम्राज्यवादी नेता की तरह पूर्व सोवियत संघ के राज्यों को अपने नियंत्रण में रखने की निष्ठुर नीति। उनकी एक ही कोशिश है कि वे सभी देश सीधे उनके शासन में नहीं हो तो तो कम से कम वहां ऐसी सरकारें हों जो उनके नीतियों के अनुसार काम करें और उनके नेतृत्व को माने।

यूक्रेन में 2014 में जन विरोध में रूसी समर्थित सरकार के हटने के बाद से ही उनकी आक्रामकता बढ़ती गई। अमेरिका और नाटो ने यूक्रेन की वर्तमान सरकार को सैग मदद दी।

आज कोई उनके लिए लड़ने नहीं आया तो रूस वहां की सरकार को अपदस्थ कर सकता है। जब पूरे विश्व के सभी देश अपनी-अपनी सीमाओं में स्वयं को अकेले मान रहे हों तो शक्तिशाली देश ऐसा ही आचरण करेंगे। यूक्रेन पर हमले को थोड़ा विस्तारित करें तो विश्व में ऐसे कई विवाद हैं जहां इस तरह की घटनाएं सामने आ सकतीं हैं।

ताइवान ऐसा ही क्षेत्र है। चीन की दृष्टि वहां लगी हुई है। बीजिंग ओलंपिक्स यात्रा के दौरान व्लादिमीर पुतिन ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ लंबी बातचीत की। उस बातचीत का विवरण 5300 शब्दों में जारी हुआ। इतना बड़ा वक्तव्य सामान्यतः जारी नहीं होता। बिना स्पष्ट घोषणा किए उसकी भाषा से साफ था कि चीन का समर्थन रूस को मिलेगा।

वास्तव में यूक्रेन के प्रति रूस की नीति तथा ताइवान के प्रति चीन की नीति में काफी हद तक समानता है। जिस तरह पुतिन पूर्व सोवियत संघ के भौगोलिक विस्तार तक रूस को ले जाने की महत्वाकांक्षा पर काम कर रहे हैं ठीक वैसी ही चीनी विस्तारवाद की नीति भी है।

यूक्रेन मामले पर पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप के विरुद्ध चीन खड़ा होता है तो स्थिति विकट होगी। दूसरी ओर चीन कल ताइवान को हड़पने की कोशिश करता है तो रूस भी उसका साथ देगा। पुतिन यूक्रेन में सफल होते हैं तो उनका अभियान यहीं तक नहीं रुकेगा और जॉर्जिया से लेकर कई बाल्टिक देशों तक इस नीति का विस्तार हो सकता है। इसी तरह चीन ताइवान के साथ-साथ मंगोलिया तक जा सकता है। इस आधार पर विचार करें तो विश्व के समक्ष उत्पन्न खतरे और चुनौतियों की भयावहता का आभास हो जाता है।

विश्व युद्ध के खतरों को गलत मानने वाले थोड़ी गहराई से सोचें। वैसी स्थिति में होगा क्या। क्या सारे देश मुंह ताकते रहेंगे? या फिर उन्हें आगे आना होगा? जब वे आगे आएंगे तो क्षेत्रिय युद्ध होगा या विश्वयुद्ध? आखिर द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व ज्यादातर देश हिटलर की साम्राज्यवादी नीति को देखते हुए भी सैनिक टकराव से बचते रहे।

जब हिटलर सीमा से आगे चला गया तब मजबूरी में यूरोपीय देशों को हस्तक्षेप करना पड़ा और फिर महायुद्ध में जैसा भीषण विनाश हुआ वह सबके सामने है। उस स्थिति से बचना है तो जाहिर है किसी देश की विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं को विराम देना ही होगा। यूक्रेन के आंतरिक और रूस के साथ उसके विवाद का निपटारा हो यह विश्व समुदाय के हित में है।

दुनिया में ऐसे बहुत सारे विवाद हैं और सबके समाधान के लिए युद्ध का विकल्प अपनाया जाने से संपूर्ण मानवता का नाश हो सकता है। कम से कम विश्व समुदाय मिल बैठकर विचार अवश्य करे कि इस समस्या से कैसे निपटा जाए। कितने समय तक सामने आ रही समस्याओं से कोई भागेगा? ऐसा ना हो कि जब तक समझ ले तब तक देर हो जाए।
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