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सेंट्रल विस्टा को प्रखर राष्ट्रवाद का प्रतीक बनाने के मायने

सेंट्रल विस्टा को प्रखर राष्ट्रवाद का प्रतीक बनाने के मायने - Meaning of making Central Vista a symbol of intense nationalism
जिन व्यक्तियों और समूहों ने सेंट्रल विस्टा परियोजना को अनर्थकारी बताते हुए विरोध किया था, इसके पहले चरण के उद्घाटन के बाद उनकी मानसिकता बदली होगी या नहीं कहना कठिन है। हालांकि तीन वर्ष पहले इसकी योजना सामने आने से निर्माण प्रारंभ होने तक के विरोध के स्वर कर्तव्य पथ के उद्घाटन के अवसर पर गायब दिखे।

पूरी परियोजना को पर्यावरण से लेकर कानूनी पचड़े तक में उलझाने की कोशिश की गई। भूमिपूजन और शिलान्यास कार्यक्रम पर रोक लगाने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया गया। वास्तव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि और संकल्पबद्धता के कारण ही यह साकार हुआ। आने वाले समय में भारतीय दृष्टि से अनुकूल, सुविधाजनक एवं आकर्षक संसद भवन तथा केंद्रीय सचिवालय देखने को मिलेगा। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर जो बातें कहे उनमें चार प्रमुख है।

एक, गुलामी का प्रतीक चिन्ह यानी राजपथ इतिहास हो गया है और कर्तव्य पथ के रूप में नए इतिहास का सृजन हुआ है। दो, राजपथ का आर्किटेक्चर और भावना गुलामी के प्रतीक थे। अब इसका आर्किटेक्चर भी और आत्मा भी बदली है। तीन, देश के सांसद, अधिकारी, मंत्री जब यहां से गुजरेंगे तो उन्हें देश के प्रति कर्तव्यों का बोध होगा।

चार, कर्तव्य पथ पर नेताजी की प्रतिमा देश को नई ऊर्जा देगी। देश की नीति और निर्णय में उनकी इच्छा की प्रेरणा यह प्रतिमा देगी। इस तरह उन्होंने पूरी परियोजना को गुलामी के अवशेषों को खत्म कर उसकी जगह अतीत, वर्तमान एवं भविष्य के भारत का जीवंत और प्रेरणादायी निर्माण साबित किया। कहा जा सकता है कि जानबूझकर उन्होंने अपनी विचारधारा के अनुरूप राष्ट्रवाद का भावनात्मक चरित्र देने की रणनीति अपनाई।

प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से जिन पांच प्रणों की घोषणा की थी उनमें गुलामी की छोटी से छोटी चीज से भी मुक्ति पाने की बात शामिल थी। संसद भवन सहित समूची सेंट्रल विस्टा परियोजना उनकी इसी सोच का साकार रूप कहा जा सकता है। गहराई से देखें तो कुछ बातें बिल्कुल स्पष्ट होती हैं।

एक, गुलामी की चीजों को मिटाने की सोच केवल नकारात्मक नहीं है। हम केवल इसलिए नहीं मिटाते कि उन्हें औपनिवेशिक शासकों ने बनाया बल्कि उन्होंने अपनी सोच के अनुरूप बनाया जो हमारे अनुकूल नहीं है।

इसी के साथ दूसरा विंदू यह है कि हम अपने अतीत, वर्तमान एवं भविष्य का ध्यान रखते हुए उसकी जगह नया निर्माण करते हैं जो वर्षों प्रेरणा का कारक बना रहता है। तीन, यह निर्माण कराने वालों पर निर्भर है कि किस तरह का प्रतीक बनाएं। इस दृष्टि से देखें तो प्रधानमंत्री ने इसे प्रेरणादायी बनाने की शुरुआत भी कर दी। लोगों से वहां आने और सेल्फी लेकर हैसटैग कर्तव्य पथ के साथ सोशल मीडिया पर डालने की अपील से एक अभियान आरंभ हो गया है। भारी संख्या में लोग आ रहे हैं, तस्वीरें ले रहे हैं। यह ऐसी स्थिति है जिसकी कल्पना मोदी विरोधियों ने नहीं की होगी।

इस अवसर का उपयोग करते हुए मोदी ने सरकार के ऐसे कुछ कदमों का सिलसिलेवार ब्यौरा देकर यही साबित किया कि भारत में पहली बार उनकी सरकार ने ही गुलामी से जुड़े अवशेषों को भारतीय दृष्टि और आवश्यकता के अनुरूप परिणत किया है।

निश्चित रूप से इसके राजनीतिक निहितार्थ ढूंढे जाएंगे। मोदी प्रधानमंत्री के साथ एक पार्टी के नेता हैं और उन्हें आगामी समय में कई विधानसभाओं के साथ 2024 में लोकसभा चुनाव का सामना करना है। प्रखर राष्ट्रवाद का सामूहिक भाव भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से लाभकारी होगा। विरोधियों के लिए पुनर्निर्मित सेंट्रल विस्टा की दृष्टि और उसकी उपादेयता पर भाजपा को होने वाले संभावित राजनीतिक लाभ की चिंता हाबी हो गई होगी। प्रधानमंत्री ने इस विषय को जिस तरह उठाया है उस संदर्भ में भी कुछ बिंदुओं का उल्लेख जरूरी है।

एक, लोग निश्चित रूप से प्रश्न उठाएंगे कि पहले की सरकारों ने किंग्सवे को राजपथ क्यों बनाया? दो, आजादी मिलने के बाद 21 वर्षों तक कैनोपी में जार्ज पंचम पंचम की मूर्ति क्यों लगी रही? तीन, इंडिया गेट पर ब्रिटिश शासन के लिए युद्धों में लड़ने वाले सैनिकों के ही नाम क्यों खुदे ही रहे?

चार,अंग्रेजों द्वारा बनाए गए संसद को स्वतंत्र भारत का संसद भवन तथा वायसराय भवन को राष्ट्रपति भवन के रूप में क्यों स्वीकार किया गया? किसी ने भी इनकी जगह नव निर्माण करने का साहस क्यों नहीं दिखाया? मोदी ने पूरी बहस को यहीं तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने इस संदर्भ में तीन प्रमुख बातें और कहीं। एक, आजादी के बाद अगर भारत सुभाष बाबू की राह पर चला होता तो देश ज्यादा ऊंचाइयों पर होता। न केवल इस महानायक को भुला दिया गया बल्कि उनके विचारों प्रतीकों तक को नजरअंदाज कर दिया गया। दो, कर्तव्य पथ पर नेताजी की प्रतिमा देश की नीति और निर्णयों में उनकी छाप रखने की प्रेरणा देगी। और तीन, राजपथ का अस्तित्व समाप्त होकर कर्तव्य पथ बना है, जॉर्ज पंचम की जगह पर नेताजी की प्रतिमा लगी है तो यह गुलामी की मानसिकता से आजादी की न शुरुआत है न अंत है, यह निरंतर चलने वाली यात्रा है। इसके मायने क्या है? मोदी ने अब तक की सरकारों नेता जी के विचारों का बहुत ही बनाकर कटघरे में खड़ा कर दिया। दूसरे उन्होंने यह संदेश दिया कि  जो कुछ अभी हमने किया वह पहले से कर रहा हूं और आगे भी करेंगे।

जो भी भारतीय इंडिया गेट पर एक साथ वार मेमोरियल, नेताजी की प्रतिमा, कर्तव्य पथ को देखेगा और आगे संसद भवन में सचिवालय आदि देखेगा उसके अंदर क्या भाव पैदा होगा? पूरे क्षेत्र में लोगों का ध्यान रखते हुए सौंदर्यीकरण, लाइटें, फव्वारे से लेकर बैठने, खाने-पीने, टहलने, नौका विहार की संपूर्ण अनुकूल व्यवस्थाएं की गई है। जब आपको आपके अनुकूल व्यवस्थाएं मिलती है तो प्रसन्नता में आपके अंदर सकारात्मक भाव आते हैं। साफ है कि एक ओर यह सब अगर लोगों में भारत के संदर्भ में आत्मगौरव व कर्तव्य बोध कराएगा तो दूसरी ओर उन्हें प्रधानमंत्री और सरकार के प्रति कृतज्ञता भाव भी पैदा करेगा। इस तरह इसका राजनीतिक लाभ मिलने की संभावना ज्यादा बढ़ गई है।

निश्चित रूप से आगे संसद भवन से लेकर केंद्रीय सचिवालय तक के उद्घाटन का कार्यक्रम इससे ज्यादा भव्य,आकर्षक एवं प्रभावी होगा। कहा गया है कि जो साहस और संकल्प दिखाएगा विजय उसे ही प्राप्त होगा। ऐसा नहीं है कि संसद भवन से लेकर केंद्रीय सचिवालय और यहां तक कि इंडिया गेट के पूरे क्षेत्र में परिवर्तन का विचार और योजनाएं पहले नहीं आई। संसद भवन की योजना तो पिछली यूपीए सरकार में भी आई थी। किसी ने न उसे इतना व्यापक दृष्टिकोण न दिया और न साकार करने का साहस दिखाया।

राजनीतिक पार्टियों ने इस परियोजना का तीखा विरोध करके अपनी नकारात्मक छवि निर्मित की। पूरी परियोजना साकार होते-होते प्रधानमंत्री मोदी से लेकर उनके साथी अवश्य ही उन सारे वक्तव्यों और विचारों को जनता के समक्ष रखेंगे। वे जनता के सामने प्रश्न उठायेंगे कि गुलामी के अवशेषों से मुक्ति तथा वर्तमान समय के अनुकूल नव निर्माण का विरोध करने वाले के साथ आप कैसा व्यवहार करेंगे तो आमजन का उत्तर क्या होगा यह बताने की आवश्यकता नहीं।

बदलाव के समर्थकों द्वारा भी यह प्रश्न उठाया जा रहा है कि केवल सड़कों का नाम बदलने या कुछ प्रतीक खड़ा कर देने भर से गुलामी के अवशेष नहीं खत्म जाएंगे? गुलामी मानसिकता में होती है और जब तक पूरी व्यवस्था भारतीयता नहीं हो हम गुलामी से मुक्ति का दावा नहीं कर सकते मोदी ने बिना यह प्रश्न उठाए नई शिक्षा नीति की चर्चा की।

वास्तव में नई शिक्षा नीति गुलामी की सोच को तोड़ने और भारतीय दृष्टि पैदा करने का बड़ा आधार साबित होगा। न्यायालयों की भाषा, नौकरशाही की औपनिवेशिक संरचना आदि में बदलाव आवश्यक है। न्यायालयों की भाषा का प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में उल्लेख किया है। काफी संख्या में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून बदले हैं। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और काशी विश्वनाथ धाम का पुनर्निर्माण आदि को इससे अलग करके नहीं देख सकते। इन सबको एक साथ मिलाकर देखेंगे तो निष्कर्ष यही आएगा कि आजाद भारत में गुलामी के अवशेषों से मुक्ति और भारतीय राष्ट्रीयता की आत्मा के अनुरूप बदलाव और निर्माण के निरंतरता में इतने कदम उठाने की कभी कल्पना तक नहीं की गई। 
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