- वरिष्ठ पत्रकार तथा तत्कालीन नईदुनिया के प्रधान संपादक रहे श्री अभय छजलानी समाचार पत्र में संकाय विकास के प्रति प्रतिबद्ध और संवेदनशील रहे। इस गुण के कारण ही अनेक पत्रकार साथी विभिन्न विषयों में रिपोर्टिंग और लेखन के प्रति पारंगत होते गए। देश-विदेश में तत्कालीन नईदुनिया की ख्याति में दिन-दुगुनी और रात चौगुनी वृद्धि होती गई। विशेषीकृत पत्रकारिता के प्रति तत्कालीन नईदुनिया के रूझान ने प्रसार क्षेत्र में पाठकों को अद्यतन और अधिकृत जानकारियां उपलब्ध कराईं, जो आज भी चर्चा में रहती हैं।
तत्कालीन नईदुनिया के संपादकीय मंडल के सदस्य न केवल पत्रकारिता अपितु भारतीय प्रेस परिषद, भारतीय भाषाई समाचार पत्र संगठन और इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी की अनेक गतिविधियों के जानकार होते थे। कारण, अभय जी के इन संस्थानों का पदाधिकारी होने के चलते गतिविधियों की जानकारी साथियों से साझा करना। साथियों में प्रशासनिक क्षमता का विकास भी उनका उद्देश्य रहता था। केवल रिपोर्टिंग और लेख ही नहीं, चिट्ठियां लिखने में पारंगत होने का अवसर भी वे प्रदान करते थे। इसलिए उनके सन्निकट रहे पत्रकार साथी संपादकीय लेखन से लगा सरकारी नोटशीट की भाषा में भी पारंगत होते गए। कोई वित्तीय संस्थान कैसे खड़ा होता है, यह अभय जी ने अपने साथियों को सीखा दिया था। अर्थात वे ऐसे साथी गढ़ते थे, जो जिंदगी के खेल मैदान में 'ऑल राउंडर' हो।
विशेषीकृत पत्रकारिता के साथ अभय जी का रूझान विषय विविधिकरण को प्रोत्साहित करने पर भी रहता था। वे 'मास्टर ऑफ वन एंड जेक ऑफ ऑल' से आगे बढ़ 'मास्टर ऑफ सम और जेक ऑफ ऑल' की ओर ध्यान केंद्रित करने का परामर्श देते थे। उनका कोई साथी जो मूलतः विज्ञान का विद्यार्थी रहा हो और अन्य गैर विज्ञान विषयों पर साधिकार लिखने लगता तो वे अपने प्रयासों को फलित होते देख सूरजमुखी की तरह मुस्कुराते। साथ ही कहते- मैंने कहा था न तुम में विविधिकृत लेखन की योग्यता है!
नईदुनिया में वर्ष 1955 से अभय जी के सक्रिय रूप से जुड़ने के पूर्व श्री राहुल बारपुते (जिन्हें सभी बाबा कहते थे और आज भी कहते हैं), डॉ. रनवीर सक्सेना और प्रो. राजेन्द्र माथुर (रज्जु बाबू) अपनी-अपनी विशेष शैक्षणिक पृष्ठभूमि के साथ जुड़े थे। बाबा और डॉ. साहबइलाहाबाद विश्वविद्यालय के से कृषि अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर तथा रज्जू बाबू अंगरेजी भाषा के प्रोफेसर इधर देश में 'टॉप टेन' में अंगरेजी अखबार छाए थे। पहली बार हिंदी के किसी दैनिक समाचार पत्र के संपादकीय मंडल में विज्ञान और भाषा की समन्वयक पृष्ठभूमि के संपादक आए थे।
इधर साथ में नौजवान अभय जी सक्रिय रूप से जुड़े। लगातार तीन-साढ़े तीन दशकों की मेहनत के बाद टॉप टेन में तत्कालीन 'नईदुनिया' भी सम्मिलित हो गया। फिर लंबे समय तक हिंदी पत्रकारिता के क्षितिज पर छाए रहे इस समाचार पत्र ने अनेक आयाम स्थापित किए। मानव के चंद्रमा पर कदम रखने पर दोपहर में 'नईदुनिया' का विशेष अंक पाठकों तक पहुंचा। उस समय की तकनीक के दौर में ऐसा प्रयास कठिनाई भरा था। नब्बे के दशक में चार राज्यों में भाजपा शासित सरकार बर्खास्त हुई और कुछ सालों बाद माननीय न्यायालय ने केंद्र की इस कार्रवाई के खिलाफ फैसला दिया।
अभयजी फैसले की कॉपी लेकर हम चार साथियों के बीच आए। तीन घंटे साथ बैठ तैयारी करवाई और दोपहर की 'नईदुनिया' पाठकों तक पहुँच गई। अभय जी नवोन्मेष में छोटे से छोटे स्टॉफ साथी की राय को महत्व दे क्रियान्वितकराते। इसलिए हर कोई उन तक आसानी से पहुँच अपनी बात रखता था, चाहे उसके कपड़े प्रिंटिंग प्रेस की स्याही से क्यों न सने हो। अखबार के पृष्ठों पर कॉलम के बीच खींची लाइने हटाने का सुझाव ऐसे ही एक साथी ने दिया था। उसे क्रियान्वित भी कराया गया। फलस्वरूप पृष्ठ आधे घंटे पहले तैयार होने लगे। पृष्ठ भी खुले-खुल लगने लगे।
अभय जी के संपादकीय नेतृत्व में समाचार पत्र ने पर्यावरण, कृषि, जल, सहकारिता, नवीन ऊर्जा, पंचायत राज, खेल और आर्थिक पत्रकारिता पर संकाय विकास कार्यक्रम संचालित किए। अनेक पत्रकार साथी इन विषयों पर विशेषीकृत लेखन और रिपोर्टिंग करने लगे। देश भर तत्कालीन नईदुनिया के ये विषय चर्चा में आने लगे। फिर हिंदी समाचार पत्रों में भी विशेषीकृत पत्रकारिता का दौर चलने लगा। कार्यशाला आयोजन की गति तेज हो गई। इसका लाभ पाठकों को मिलने के साथ उन पत्रकार साथियों को भी मिला जो अपने सौंपे गए दायित्वों के अलावा भी कुछ करने के इच्छुक थे।
देश में अस्सी-नब्बे के दशक में एकीकृत पंचायती राज व्यवस्था पर गाँवों से लगा संसद तक बहस चलने लगी। उस समय अभय जी ने पंचायत राज व्यवस्था पर विशेष परिशिष्टों का प्रकाशन करवाया। संपादकीय साथियों की टीम संपादकीय सामग्री संकलन में लगी। दैनंदिन ड्यूटी के अलावा गांवों तक दौरे किए गए। प्रकाशित परिशिष्टों की जानकारी केंद्र सरकार तक भी पहुंची। इन परिशिष्टों को बुलवाया गया। एकीकृत पंचायत राज विधेयक की तैयारी के समय पाठकों और विशेषज्ञों की प्रकाशित राय को भी महत्व दिया गया।
इंदौर महानगरीय पत्रकारिता की तुलना में लघु स्वरूप में है, किंतु तत्कालीन 'नईदुनिया' की धड़कने केंद्र सरकार तक तुरंत पहुंचती थी। एक बार अंग्रेजी समाचार एजेंसी पर पंचायत राज संबंधी आया समाचार, उसमें गंभीर प्रशासनिक खामी और इस विषय को अभय जी के संज्ञान में लाने के बाद प्रकाशित संपादकीय का प्रतिसाद दोपहर तक ही सामने आ गया। पंचायत राज प्रशासन ने त्रुटि सुधारी और लगभग उसी समय अगले दिन संशोधित समाचार एजेंसी पर जारी हुआ। ऐसे अनगिनत उदाहरण है, जो यह बताते हैं कि तत्कालीन नईदुनिया ने अपने पत्रकारीय दायित्व का निर्वहन पूरी जिम्मेदारी के साथ किया। उनके संपादकीय नेतृत्व को श्रद्धापूर्वक नमन।