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Last Modified: गुरुवार, 23 मार्च 2023 (22:38 IST)

अभय छजलानी : हिंदी पत्रकारिता की आत्मा के वासी

अभय छजलानी : हिंदी पत्रकारिता की आत्मा के वासी - Abhay Chhajlanis funeral
काफी समय पहले हमारे दोस्त पत्रकार दीपक असीम ने अभय छजलानी जी उर्फ अब्बू जी का अभय प्रशाल में इंटरव्यू किया था। बातों-बातों में अब्बू जी ने कहा था, मैं पत्रकारिता में अपनी पारी की समाप्ति की घोषणा कर चुका हूं। उसके बाद प्राय: वे अभय प्रशाल में ही बैठने लगे थे।

अभयजी के सुपुत्र विनय जी वेब पत्रकारिता में नया सवेरा लेकर आए थे। उन्होंने पिलानी इंजीनियरिंग संस्थान और थामसन प्रेस लंदन से अर्जित ज्ञान के आधार पर वेबदुनिया पोर्टल की स्थापना की, जो हिंदी का पहला वेब पोर्टल था और जो तमाम अन्य भारतीय संवैधानिक भाषाओं में आज भी सबसे तेज और विश्वसनीय पोर्टल माना जाता है।

अभय जी खुद थामसन प्रेस के पास आउट थे। क्या खूब संयोग है कि जो वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी वेबदुनिया के पहले संपादक नियुक्त किए गए थे, वे भी सरकारी नौकरी छोड़कर नईदुनिया में उप संपादक बने थे। वे एक कोठरीनुमा कमरे से वेबदुनिया को जमाने में ऐसे लगे कि जैसे लंबे समय तक अपने घर का रास्ता ही भूल गए हों।

अभयजी ने स्व. राहुल बारपुते उर्फ़ बाबा और स्व. राजेंद्र माथुर उर्फ स्व. रज्जू बाबू के साथ मिलकर नईदुनिया को हिंदी पत्रकारिता की रुह या आत्मा बनाने में अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया। नईदुनिया तब बुलंदियों के पार जाने वाले नए पत्रकारों का जैसे रसोई घर हुआ करता था, जिसमें मालवा का प्रसिद्ध भोजन दाल-बाफले यदि अभयजी शुरू-शुरू में बनाते, तो बाबा और रज्जू बाबू उसकी सिकाई करते।

यदि बाबा और रज्जू बाबू शब्दों की लपटें नईदुनिया के मार्फत निकालते तो अभयजी उन्हें एक सुविचारित और सुअनुशासित आकल्पन या लेआउट के जरिए हर दिन का एक नया दस्तावेज बना देते। इसीलिए नईदुनिया को सालों तक छपाई और साज-सजावट में राष्ट्रीय स्तर के प्रथम पुरस्कार मिलते रहे। तब एक भी प्रति में स्याही कम या ज्यादा हो जाती तो अभय जी बीसियों कॉपी रद्द करवा देते।

एक बार तो हिंदी का एक शब्द गलत टाइप हो गया तो इंदौर भर की सारी कलमें (पेन) उसे ठीक करने के लिए खरीदी गईं। एक बार मध्यप्रदेश से बाहर रहने वाले हिंदी के विश्वविद्यालय के रीडर को त्रुटियां निकालने के लिए ऊंचा मेहनताना देकर अलग से नियुक्त किया गया था।

अभयजी ही किसी हिंदी अखबार में तीन कंप्यूटर से जुड़ी आफसेट ओरिएंट मशीन लाए, जिसमें कीकर भी लगा हुआ था और तब ही उक्त तीनों मशीनें चार पेज का रंगीन परिशिष्ट अलग से छाप सकती थीं। अभयजी एक-एक शब्द को विज्ञापन के रेट से जोड़ने में भी माहिर थे। यदि अंत में किसी पंक्ति में सिर्फ है शब्द रह गया है तो वे कोई ऐसी तरकीब निकालते कि है शब्द भी रह जाता और पंक्ति की जगह भी बेकार नहीं जाती।

अभयजी खुद कम से कम लिखते थे, लेकिन नए बंदों से ज्यादा से ज्यादा लिखवाते थे। एक जमाने में उनका साप्ताहिक कॉलम गुजरता कारवां पढ़ने के लिए लोग अखबार संबंधित पन्ने ही खोलते थे। पेज बनवाते समय शीर्षक में से एकाध शब्द को इधर-उधर करवाकर हेडिंग को वे ऐसा कस देते थे कि उसे बार-बार पढ़ने को जी चाहता था। लगता था यार, अपने में इतनी सृजनात्मकता, सौंदर्यबोध और भाषा शैली की ऐसी समग्रता कब और कैसे आएगी। जैसे जब स्काई लेब गिरा था तो उन्होंने ही हेडिंग लगवाया था छपाक... इंदौर में जब एक बार बेइंतहा बादल फटे तो अभयजी की कलम से शीर्षक गुजरा पानी ही पानी, पानी ही पानी।।

राज्यसभा टीवी के पूर्व संपादक प्रिंट और इलेक्ट्रानिक माध्यम के ख्यातनाम राजेश बादल और वरिष्ठ पत्रकार और वेब पत्रकारिता में डॉक्टरेट कर चुके प्रकाश हिंदुस्तानी, वरिष्ठ पत्रकार शाहिद मिर्ज़ा आदि को अभयजी ने बच्चों की तरह पाला-पोसा। एक बार जब प्रकाश जी और शाहिद के कमरे में बरसात का पानी घुस गया तो अभयजी ने उन दोनों को नईदुनिया परिसर में एक कमरा उपलब्ध करवाकर लंबे समय सुबह-शाम का भोजन घर से भिजवाया और अक्सर उनका हालचाल पूछने उनके कमरे पर भी जाते।

शाहिद मियां थोड़े अलग किस्म के प्राणी थे। वे अभयजी या रज्जू बाबू से बीच महीने में न लौटाने की शर्त पर नकद नोट ही मांग लिया करते थे। ऐसी शरारतें करने की तब नईदुनिया में छूट हुआ करती थी, लेकिन काम के दौरान आप सीट पर से उठ भी नहीं सकते थे। चाय, पानी सब डेस्क पर ही आते थे।

राजेश बादल और प्रकाश हिंदुस्तानी को जब वे इंदौर रेसीडेंसी में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह से मिलवाने ले गए तो उनसे उन दोनों का यह कहकर परिचय करवाया कि ये दोनों हमारे जवान साथी या सहयोगी हैं। वे टेबल टेनिस के अच्छे खिलाड़ी थे।

इंदौर में स्व. लता मंगेशकर अलंकरण समारोह उन्हीं के प्रयासों से प्रारंभ हो सका। अपने सुदर्शन व्यक्तित्व, स्पष्ट और गहरी आवाज़ से समां बांध देते थे। जो त्वरित स्पंदन, न्यूज सेंस और तात्कालिकता उनमें थी, वह इंदौरी पत्रकारिता की एक खास ठसके वाली पहचान थी।

अभयजी की स्मृतियों को शत- शत नमन। धन भाग हमारे कि वे हम जैसे नाकुछ युवाओं के जीवन में पधारे।
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