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Written By विकास सिंह
Last Updated : शुक्रवार, 24 मई 2019 (16:49 IST)

दुश्मन से दोस्त बने अखिलेश और मायावती का हर दांव मोदी मैजिक के सामने फेल

दुश्मन से दोस्त बने अखिलेश और मायावती का हर दांव मोदी मैजिक के सामने फेल - Akhilesh and Mayawati fails in fornt of Modi Magic
लखनऊ। तमाम कयासों और अटकलों को धराशाई करते हुए मोदी का मैजिक देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भी खूब चला। उत्तर प्रदेश में पिछले 5 सालों से दौड़ रहे बीजेपी के विजयी रथ रोकने के लिए इस बार 25 सालों के धुर विरोधी बसपा और सपा भी एक मंच पर आ गए थे।
 
साल की शुरुआत में जब दुश्मन से दोस्त बनते हुए लखनऊ में बसपा प्रमुख मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव एक मंच पर आकर गठबंधन का एलान किया तो सभी सियासी पंडितों को लगा था कि ये महागठबंधन ऐतिहासिक होगा और भाजपा को उससे निपटना आसान नहीं होगा। अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी अखिलेश यादव और मायावती ने गठबंधन के पीछे सबसे बड़ा कारण वोटों का बंटवारा खत्म कर मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनने से रोकना बताया था।
 
इस गठबंधन के पीछे उत्तर प्रदेश की सियासत के वो जातिगत समीकरण थे जिसके सहारे विरोधी दलों की कोशिश मोदी को रोकने की थी। वहीं गठबंधन ने कांग्रेस का परंपरागत गढ़ माने जाने वाली रायबरेली और अमेठी सीट पर चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। लेकिन नतीजों में भाजपा ने अकेले दम पर उत्तर प्रदेश में 62 सीटों के साथ कांग्रेस की परंपरागत सीट अमेठी पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सपा अध्यक्ष की पत्नी डिंपल यादव को कन्नौज से पटखनी दें विरोधियों को चारों खाने चित्त कर दिया।
 
मुस्लिम-दलित वोटर भाजपा के साथ – चुनाव से पहले पिछड़ा, मुस्लिम और दलित वोटरों को एक पाले में लाने के लिए बनाए गए सपा-बसपा-रालोद के महागठबंधन को मोदी की सुनामी ने पूरी तरह बिखेर दिया। महागठबंधन के तहत सपा 37 और बसपा 38 सीटों पर चुनाव लड़ी थी लेकिन नतीजों में सपा मात्र पांच सीटों और मायावती की पार्टी बसपा मात्र 10 सीटों पर चुनाव जीत सकी।
 
हैरत की बात ये है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव जो महागठबंधन की उम्मीदवार थी वो अपनी परंपरागत सीट कन्नौज से बुरी तरह चुनाव हार गईं।

ये चुनाव नतीजे इस बात को साफ दर्शाते हैं कि उत्तर प्रदेश जो जातिगत राजनीति का अखाड़ा समझा जाता था इस बार उस अखाड़े में सभी दांवपेंच मोदी के सामने नहीं चल सके। न तो सपा का वोट बैंक बसपा को ट्रांसफर हुआ और न बसपा को वोट बैंक सपा को। अगर उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरणों को देखे तो 22 फीसदी दलित और 19 फीसदी मुस्लिम वोटरों ने भी इस बार खुलकर मोदी के समर्थन में अपना वोट डाला।

उत्तर प्रदेश की 37 सीटों पर मुस्लिम और दलित वोट जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाते है। ऐसे में भाजपा जो 62 सीटों पर अकेले जीत हासिल की है उससे साफ है कि दलित और मुस्लिम वोट बैंक फिर एक बार मोदी सरकार के साथ है।