-मुरली कृष्णन
ब्रिक्स का सदस्य बनने के लिए पाकिस्तान की कोशिशें जारी हैं। पाकिस्तान ब्रिक्स में सदस्यता पाने के लिए चीन और रूस से समर्थन की उम्मीद कर रहा है। पाकिस्तान ने पिछले महीने ब्रिक्स सदस्यता के लिए आधिकारिक रूप से आवेदन किया। ब्रिक्स दुनिया की 5 बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं भारत, ब्राजील, चीन, रूस और दक्षिण अफ्रीका का एक समूह है।
पाकिस्तान का यह आवेदन ऐसे वक्त में आया है, जब ब्रिक्स के सदस्य देश वैश्विक स्तर पर दक्षिण एशिया की एक प्रभावशाली आवाज बनने की कोशिश कर रहे हैं। वैश्विक स्तर पर इन 5 देशों की पकड़ भी मजबूत हो रही है। ब्रिक्स के सदस्य देशों में दुनिया की 40 फीसदी आबादी रहती है। ये देश विश्व की करीब एक तिहाई अर्थव्यवस्था का भी प्रतिनिधित्व करते हैं।
इस साल हुए ब्रिक्स सम्मेलन में 5 नए देशों- मिस्र, अर्जेंटीना, सऊदी अरब, ईरान, इथियोपिया और संयुक्त अरब अमीरात को शामिल करने का फैसला लिया गया था। इन नए देशों की सदस्यता नए साल से लागू होनी है, लेकिन सरकार बदलने के बाद अर्जेंटीना के ब्रिक्स में शामिल होने पर संशय है।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलोच ने ब्रिक्स को विकासशील देशों का एक अहम समूह बताया। उन्होंने यह भी कहा कि ब्रिक्स से जुड़कर पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सहयोग में बढ़ावा दे सकता है।
क्या ब्रिक्स को ठहरकर सोचने की जरूरत है?
पाकिस्तान के इस आवेदन पर भारत ने आधिकारिक तौर पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन निजी तौर पर भारतीय सुरक्षा और विदेश नीति से जुड़े अधिकारी इसे लेकर संशय में हैं। नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी ने डीडब्ल्यू से कहा कि ब्रिक्स का सदस्य बनने के लिए पाकिस्तान का आवेदन बिल्कुल अभी आया है और यह बेहद शुरुआती दौर में है।
भारतीय अधिकारियों का यह भी कहना है कि ब्रिक्स की सदस्यता लेने की चाह रखने वाले देशों के लिए मजबूत संस्थागत और कठोर न्यूनतम पैमानों को लागू करने की जरूरत है।
पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रह चुके अजय बिसारिया के मुताबिक ब्रिक्स ने इस साल नए देशों को शामिल किया है। अब वक्त है कि ब्रिक्स समय लेकर इस बात पर विचार करे कि इस समूह के उद्देश्य क्या हैं और यह सदस्य देशों के लिए कैसे बेहतर साबित हो सकते हैं। उनका मानना है कि इतनी तेजी से नए देशों को शामिल करने पर उस ब्रिक्स में मतभेद पैदा हो सकते हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य समान विचारधारा, परस्पर हितों और मध्यम-आय वाले देशों को साथ लाना था। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान का आवेदन समय से पहले आ गया है।
सदस्यता के लिए चीन और रूस की ओर देखता पाकिस्तान
ब्रिक्स का सदस्य बनने के लिए पाकिस्तान लगातार इसके सदस्य देशों से बातचीत कर रहा है। पाकिस्तान का ध्यान खासकर चीन और रूस के समर्थन की ओर अधिक है। चीन और पाकिस्तान, एक-दूसरे को हर स्थिति में समर्थन करने वाले दोस्त के रूप में देखते हैं। हाल के कुछ सालों में चीन, पाकिस्तान का सबसे बड़ा आर्थिक सहयोगी बनकर उभरा है। लेकिन रूस का समर्थन भी पाकिस्तान के लिए बेहद अहम है, जहां अगले साल ब्रिक्स सम्मेलन होना है।
मॉस्को में हाल ही नियुक्त किए गए पाकिस्तान के उच्चायुक्त मोहम्मद खालिद जमाली ने टास न्यूज एजेंसी को दिए गए बयान में कहा था, 'पाकिस्तान इस महत्वपूर्ण समूह का सदस्य बनना चाहता है। इसके लिए हम सदस्य देशों, खासकर रूस से बातचीत कर रहे हैं कि वो पाकिस्तान की सदस्यता का समर्थन करे।'
एकजुट नहीं रहा ब्रिक्स
पश्चिमी देशों के नेतृत्व वाले वैश्विक संगठनों के प्रभुत्व को संतुलित करने के लिए उनके बरक्स एक नई वैश्विक व्यवस्था खड़ा करने की तमाम कोशिशों के बीच ब्रिक्स, आर्थिक और राजनीतिक तौर पर एकजुट होकर नहीं उभर पाया है। एक तरफ जहां चीन और रूस ब्रिक्स को अमेरिका और G7 के समक्ष खड़ा करना चाहते हैं, वहीं बाकी सदस्य देशों का रवैया इस मुद्दे पर नरम दिखाई देता है।
सदस्य देशों की राजनीतिक व्यवस्था भी एक-दूसरे से अलग है। भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में जहां लोकतांत्रिक व्यवस्था है, वहीं चीन और रूस में एकतंत्रीय शासन लागू है। सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था भी एक जैसी नहीं है। हर देश की व्यापार नीतियां अलग हैं।
चीन और भारत के बीच जारी कूटनीतिक दुश्मनी भी इस समूह को प्रभावित करती है। यह दुश्मनी ब्रिक्स को वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण आर्थिक और कूटनीतिक समूह बनाने की राह में चुनौती है। भारत में कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चीन ब्रिक्स का इस्तेमाल अपनी भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षा को बढ़ावा देने के लिए करना चाहता है।
बिसारिया के अनुसार अगर पाकिस्तान ब्रिक्स का सदस्य बनता है, तो चीन के साथ उसके खास रिश्ते को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इससे चीन का फायदा ही होगा। उन्होंने यह भी कहा कि यह साफ है कि चीन पाकिस्तान को ब्रिक्स का सदस्य बनाना चाहता है और वह रूस और अन्य देशों पर भी इस बात के लिए जोर डाल सकता है ताकि ब्रिक्स में चीन का प्रभुत्व बढ़े।
ब्रिक्स में चीन का बढ़ता प्रभुत्व
स्वतंत्र रिसर्च फोरम मंत्रया की संस्थापक शांति मैरियट डिसूजा भी इससे सहमत नजर आती हैं। उनका कहना है कि अमेरिका से भारत की घनिष्ठता को देखते हुए चीन, भारत को एक अवरोध की तरह देखता है। उन्होंने बताया कि सरकार का समर्थन करती चीन की मीडिया में ऐसे लेख भी छापे गए हैं, जिनमें कहा गया कि भारत ब्रिक्स में अपनी स्थिति का मूल्यांकन करे क्योंकि वह वैश्विक दक्षिणी देशों को बांट रहा है और विकासशील देशों के बीच चीन की स्थिति कमजोर कर रहा है।
डिसूजा कहती हैं कि ऐसा लगता है, जैसे यह दिखाने की एक योजना बनाई जा रही है कि ब्रिक्स के लिए भारत सही नहीं है। जिससे भारत पर समूह को छोड़ने का दबाव कायम किया जा सके। दूसरी तरफ ऐसे देशों को सदस्य बनाया जाए, जिनकी विदेश नीति और वैश्विक दृष्टिकोण चीन से मेल खाती हो।
डिसूजा ने आगे कहा कि भारत को लगता है कि चीन लगातार यह कोशिश कर रहा है कि ब्रिक्स को चीन के प्रभुत्व वाला समूह बना दिया जाए जो पश्चिम, खासकर अमेरिका के खिलाफ हो। नए देशों को शामिल कर चीन ऐसा इसलिए करना चाहता है ताकि ये नए सदस्य चीन के हर काम का समर्थन करें। भारत इस दिशा में चीन के सामने एक रुकावट बनकर खड़ा है।