बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की हार के 4 बड़े कारण, तेजस्वी को राहुल से दोस्ती करना पड़ा भारी
बिहार विधानसभा चुनाव में NDA की प्रचंड जीत और महागठबंधन की करारी हार से सियासी विश्लेषकों और चुनावी पूर्वानुमान को भी धवस्त कर दिया है। राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान भले ही महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरे तेजस्वी यादव की रैलियों में भीड़ खूब आई हो लेकिन चुनाव नतीजे बताते है कि महागठबंधन को बिहार की जनता ने बुरी तरह खारिज कर दिया है। अब तक के रुझान और नतीजे बता रहे है कि बिहार में NDA गठबंधन अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल करने जा रही है।
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बिहार में NDA गठबंधन 200 सीटों के आसपास का आंकड़ा छूता हुआ दिखाई दे रहा है। वहीं महागठबंधन 50 से कम सीटों पर सिमटता हुआ दिखाई दे रहा है। ऐसे में ऐसे क्या कारण है कि बिहार मे महागठबंधन की रैलियों में आने वाली भीड़ को उसके नेता अपने ही वोट में नहीं बदल पाए। बिहार में महागठबंधन की हार को कारणों का विश्लेषण किया जाए तो एक नहीं कई कारण दिखाई देते है।
1-महागठबंधन में टिकट बंटवारे पर मतभेद- बिहार में महागठबंधन की हार का बड़ा कारण चुनाव से ठीक पहले टिकट बंटवारे को लेकर जिस तरह से कांग्रेस और आरजेडी में मतभेद खुलकर सामने आए वह महागठबंधन की हार का सबसे कारण नजर आ रहा है। पहले चरण में 122 सीटों पर नामांकन के बाद भी महागठबंधन के बीच सीटों का बंटवारा नहीं हो पाना महागठबंधन की हार का बड़ा कारण सबित हो रहा है। वहीं राहुल और तेजस्वी जो चुनाव की तारीखों के एलान से पहले एक साथ नजर आ रहे थे वहां बाद में एक साथ नहीं दिखाई दिए जबकि NDA नेता पूरे चुनाव में एकजुट नजर आए वहां महागठबंधन पर बहुत भारी पड़ा।
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2-'लालूराज' और 'जंगलराज' को लेकर NDA का अक्रामक कैंपेन-बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव प्रचार में जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में जिस तरह से भाजपा और जेडीयू नेताओं ने लालूराज और जंगलराज को मुद्दा बनाकर अक्रामक चुनावी कैंपेन किया गया वह महागठबंधन की हार का बड़ा कारण बनता हुआ दिखाई दे रहा है। लालूराज में जिस तरह से बिहार में अपराध का बोलबाला रहा है, उसको चुनाव में NDA ने खूब उछाला। खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से अपने चुनावी रैलियों में कहा कि अगर भैया की सरकार आई तो कट्टा और फिरौती का दौर फिर से लौट आएगा। चुनाव नतीजे बताते है कि यह मुद्दा खुब चला और वोटर्स ने NDA के पक्ष में खूब मतदान किया।
3-तेजस्वी पर भारी पड़ी नीतीश का चेहरा- बिहार विधानसभा चुनाव में दोनों ही गठबंधन मुख्यमंत्री चेहरे के साथ चुनावी मैदान में उतरे थे। महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री चेहरे थे तो NDA की तरह से नीतीश कुमार ही चेहरे थे, ऐसे में चुनाव दो चेहरों के बीच था और अब चुनाव नतीजे बताते है कि तेजस्वी यादव पर नीतीश का चेहरा भारी पड़ गया। NDA गठबंधन ने जिस तरह से पूरा चुनाव में नीतीश के चेहरे को आगे रखा वह कारगर होता हुआ दिखाई दिया। NDA नेताओं ने जिस तरह से चुनाव में तेजस्वी के चेहरे को लालू यादव से जोड़ा वह चुनावी दांव चल गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेजस्वी यादव के लगातार भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी होने का मुद्दा उठाया उसने युवाओं में तेजस्वी के क्रेज को फीका करने में अहम फैक्टर साबित हुआ।
4-नीतीश सरकार के प्रति प्रो इनकंबेंसी-बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते है कि चुनाव में नीतीश सरकार के खिलाफ प्रो इनकंबेंसी थी। दो तिहाई सीटों पर जीत हासिल कर एक बार सत्ता में नीतीश कुमार की वापसी हो रही है वह इस बात का प्रमाण है कि नीतीश के सुशासन राज पर बिहार की जनता ने अपना विश्वास जताया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिस तरह से समाज के हर वर्ग को साधने का दांव चला और भाजपा ने जिस तरह से गठबंधन में नीतीश के चेहरे को आगे रखकर चुनाव लड़ा, उससे यह साफ है कि चुनाव में नीतीश सरकार के प्रति एक प्रो इनकंबेंसी बनाने का काम किया।
5-राहुल से तेजस्वी की दोस्ती पड़ी भारी- बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे बता रहे है कि तेजस्वी यादव को एक बार राहुल गांधी से दोस्ती यानि कांग्रेस से गठबंधन भारी पड़ गया। बिहार में कांग्रेस 61 सीटों पर चुनाव लड़ी और वह 6 सीटों के आसपास आगे या जीतती हुई दिखा दे रही है, यानि कांग्रेस मात्र 10 फीसदी सीटों पर जीत हासिल कर पाई जो महागठबंधन की हार का बड़ा कारण साबित हुई।