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Written By DW
Last Modified: पटना , शनिवार, 20 सितम्बर 2025 (07:54 IST)

बिहार : क्या फिर महिलाओं के भरोसे हैं नीतीश कुमार

nitish kumar
मनीष कुमार
बिहार में मानदेय पर तैनात आशा-ममता कार्यकर्ताओं का पहले मानदेय बढ़ाया गया, फिर आंगनबाड़ी सेविकाओं-सहायिकाओं का और फिर सभी महिलाओं को अपनी पसंद के रोजगार के लिए पहले मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत दस हजार और फिर आवश्यकतानुसार दो लाख रुपये तक देने की घोषणा की गई।
 
सरकार की घोषणाओं में किसानों, युवाओं और उद्यमियों को भी तवज्जो दी जा रही। सड़क संपर्क और यातायात सुविधाओं को बेहतर करने के लिए भी बिहार की डबल इंजन की सरकार काफी संवेदनशील है। ताबड़तोड़ लोकार्पण और शिलान्यास भी किए जा रहे हैं। बीते 15 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में पूर्णिया एयरपोर्ट का उद्घाटन किया, वहीं भागलपुर जिले के पीरपैंती में थर्मल पावर प्लांट का शिलान्यास किया। हालांकि इसके लिए अडानी समूह को जमीन देने पर सवाल उठ रहे हैं।  
 
भारत की राजनीति में चुनाव नजदीक आते ही ऐसी घोषणाएं पक्ष-विपक्ष, दोनों ही तरफ से की जाती हैं। राज्य सरकार की इन घोषणाओं को बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष व लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव महागठबंधन की घोषणाओं की नकल करार देते हैं। तेजस्वी कहते हैं, ‘‘यह सरकार हमारी घोषणाओं को हड़बड़ी में लागू कर रही। जनता भी जान चुकी है कि सरकार ठगी कर रही। इसलिए लोग अब कहने लगे हैं कि हमें नकली नहीं, असली सीएम चाहिए।''
 
दूसरी तरफ राज्य सरकार कह रही कि उन वादों को धरातल पर उतारा जा रहा, जिनकी घोषणा 23 दिसंबर, 2024 से 21 फरवरी, 2025 के बीच मुख्यमंत्री की प्रगति यात्रा के दौरान की गई थी। इसी के तहत नागरिक सुविधाओं, शिक्षा, सडक़-पुल व बुनियादी ढांचों, स्वास्थ्य व चिकित्सा, खेल-पर्यटन तथा हवाई परिवहन और औद्योगिक विकास की पहल की जा रही है।
 
नारी स्वावलंबन का विशेष ख्याल
राजनीतिक समीक्षक समीर सौरभ कहते हैं, ‘‘शायद, इस बार फिर नीतीश कुमार महिलाओं के सहारे सत्ता पाने की जुगत में हैं। जीविका दीदियों के सहारे उनका बड़ा वोट बैंक तैयार हुआ है। प्रगति यात्रा के दौरान उनका संवाद भी महिलाओं, खासकर जीविका दीदियों से हुआ था।''
 
जीविका निधि के जरिए इन सबों की आत्मनिर्भरता बढ़ाने के उद्देश्य से ही जीविका निधि साख सहकारी संघ लिमिटेड को शुरू किया गया और सरकार ने 105 करोड़ की राशि जीविका निधि में ट्रांसफर कर दी। राज्य में 11 लाख से अधिक समूहों से जु़ड़़ी करीब एक करोड़ 40 लाख से अधिक जीविका दीदियां हैं। स्वरोजगार के लिए सरकार ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की शुरुआत की।
 
महिला उद्यमियों के बनाए उत्पादों की बिक्री के लिए गांव से लेकर शहर तक हाट-बाजार भी विकसित किया जा रहा है। जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा कहते हैं, ‘‘यह पहल ना केवल महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक निर्णायक कदम साबित होगा, बल्कि यह प्रदेश में आर्थिक क्रांति का भी सशक्त वाहक बनेगा।''
 
आधी आबादी को पूरा हक 
महिलाओं को केंद्र में रख ऐसी घोषणाएं पहली बार नहीं की गई हैं। इससे पहले मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना, बालिका साइकिल योजना, बालिका पोशाक योजना एवं कन्या विवाह योजना ने पूरे देश का ध्यान खींचा और इसका फायदा भी चुनावों में नीतीश कुमार को मिला।
 
राजनीति शास्त्र की छात्रा कृतिका कुमारी कहती हैं, ‘‘सरकारी सेवाओं में आरक्षण से वाकई महिलाएं सशक्त हुईं। प्राथमिक शिक्षक नियुक्ति में आरक्षण के साथ-साथ बिहार पुलिस तथा अन्य सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिला। इससे महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर तो हुईं ही।''
 
युवाओं पर भी नजर
समीर कहते हैं, ‘‘राज्य सरकार की घोषणाएं ही तस्दीक कर रहीं कि विधानसभा चुनाव अब नजदीक आ चुका है। ऐसा नहीं है कि ये रेवड़ियां किसी एक वर्ग के लिए है। इस कड़ी में महिलाएं तो अव्वल हैं ही, युवाओं-किसानों तथा समाज के बड़े बुजुर्गों का भी ख्याल परिलक्षित होता है।''
 
सामाजिक सुरक्षा पेंशन और पत्रकारों की सम्मान पेंशन को बढ़ाया गया है। बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के तहत उच्च शिक्षा ऋण को ब्याज मुक्त किए जाने की घोषणा की गई। उसके बाद विश्वकर्मा पूजा के मौके पर श्रमिकों को बल देने के उद्देश्य से एक निर्माण श्रमिक को पांच हजार रुपये देने की भी घोषणा हुई।
 
राज्य सरकार का दावा है कि सरकारी क्षेत्र में दस लाख नौकरी दी गई है तथा करीब करीब 39 लाख से अधिक को रोजगार उपलब्ध कराए गए हैं, जबकि अगले पांच वर्षो में एक करोड़ नौकरी व रोजगार देने का लक्ष्य तय किया गया है।
 
पत्रकार अवनीत देशमुख कहते हैं, ‘‘ये घोषणाएं बिहार से बाहर बैठे हम जैसे लोगों को कहीं ना कहीं यह आभास दे रही कि एनडीए सरकार को संभवत: एंटी इंकम्बेंसी का डर सता रहा, इसलिए फ्री-बीज से लंबे समय तक दूर रहने वाले नीतीश कुमार ताबड़तोड़ ऐसी घोषणाएं कर रहे।''
 
प्रदेश का आर्थिक परिदृश्य वाकई कितना बदल सका, यह तो अर्थशास्त्री बताएंगे। यक्ष प्रश्न तो यह है कि इसका बोझ आखिरकार कौन उठाएगा।